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पटरियों से परे जीवन के अनकहे सफर

यात्रा का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। उद्देश्यों में भिन्नता हो सकती है पर बिना यात्रा के किसी लक्ष्य तक पहुंचना सम्भव है। घर बैठे सारी व्यवस्था का लाभ लेना हो तो भी छोटी ही सही यात्रा तो करनी ही पड़ती है। यात्राएं कई तरह की होती हैं। पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक इत्यादि। यात्राओं के साधन भी भिन्न होते हैं जैसे पदयात्रा, बैलगाड़ी, हाथी, घोड़ा, खच्चर गाड़ी, साइकिल, स्कूटर, मोटरसाइकिल, बस, रेल, वायुयान से यात्रा। विकास के साथ साधन बनते गए परन्तु यात्रा की यात्रा निरन्तर चल रही, साधन चाहे जो हो।

मानव जीवन की यात्रा माँ के गर्भ से आरंभ होती है और जन्म के पश्चात इस लोक में आकर प्राणी जीवन की यात्रा सांसारिकता एवं संघर्ष के साथ ईश्वर द्वारा प्रदत्त सांसों के तारतम्य में जन्म से मृत्यु तक चलायमान रहती है। बस और रेल की यात्रा सभी करते हैं। परन्तु इन दोनों की यात्राओं में बहुत अंतर है। मनुष्य कभी जीवन की गाड़ी की तुलना बस से नहीं करता। संभवतःरेलगाड़ी के आविष्कार के साथ ही मनुष्य ने रेलगाड़ी से तुलना करना प्रारंभ किया उसके पहले तो बैलगाड़ी या घोड़ा की रस्सी को कसकर पकड़कर नियंत्रित किया जाता था। तभी तो आज तक किसी व्यक्ति को नियंत्रित करने के लिए लगाम लगाने को कहता है अर्थात नियंत्रण रखने के उपायों की ओर संकेत किया जाता है।

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बस की यात्रा और रेलयात्रा में बहुत अंतर है। बस से कच्चे-पक्के, ऊबड़-खाबड़, टेढ़े-मेढ़े सब प्रकार के मार्गों से यात्रा कर सकते हैं। आवश्यकतानुसार कहीं भी, कभी भी रूक कर पुनःप्रारंभ की जा सकती है। यात्रीगण सुविधानुसार अपने अपने गन्तव्य स्थानों में उतरते चले जाते हैं। कहीं कोई बाध्यता नहीं होती। किंतु रेल गाड़ी के लिए कुशल एवं प्रशिक्षित इंजीनियरों, मैकेनिकों द्वारा बड़ी सावधानी पूर्वक रेल की पटरियों का निर्माण किया जाता है, मार्ग निर्मित कर उन्हें बिछाया जाता है।

रेल में हजारों यात्री एक साथ यात्रा करते हैं। जैसे इस धरती पर अनगिनत लोग जन्म लेकर अपनी जीवन यात्रा प्रारंभ करते हैं। रेल केवल अपनी पटरी में ही चलती है। जैसे जीवन क्रम निश्चित होता है। उसी पर जीवन चलता रहता है। रेल के स्टेशन और रुकने का निश्चित समय होता है। वह पटरी पर बड़ी तीव्रता से दौड़ती है। रेल पर चढ़ने उतरने की पूरी जिम्मेदारी स्वयं यात्रियों की होती है।

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रेल किसी की प्रतीक्षा नहीं करती। निश्चित स्टेशन पर निश्चित समय तक ही रुकती है। जैसे रेलगाड़ी का अपनी पटरी से विचलित होने पर दुर्घटना होना निश्चित है साथ ही समस्याओं का उत्पन्न होना प्रारंभ हो जाता है। इसी तरह मनुष्य का जीवन एक पटरी पर चलता रहता है। सबके अपने कर्म निश्चित हैं। सबके विश्राम का समय, स्थान भी तय है।

मनुष्य अपने अच्छे-बुरे कर्मो के आहार पर जीवन मे सुख-दुःख भोगता है। यदि कर्म अच्छे होंगे तो आनन्द की प्राप्ति होगी। अर्थात मर्यादित जीवन शैली से सुखी जीवन और नियमों के विरुद्ध कर्म एवं कार्यो से दुख -कष्ट मिलेगा। मनुष्य सुखद जीवन यात्रा का स्वप्न देखता है। यात्रा प्रारंभ होने पर उल्लासित होता है। मानों शीघ्रता से गन्तव्य तक आराम से पहुंच जाएंगे। परन्तु वास्तव में कोई भी यात्रा उतनी सुखद व सरल नहीं होती जितनी हमने सोच रखी थी।

यदि सुखद यात्रा का लाभ लेना है तो सामान कम तथा मन में बोझ कम और मस्तिष्क खुला रखें। फ़क्कड़ी से घुमक्कड़ी करते रहें और मौज लेते रहें। बाकी जीवन के झमेले कभी खत्म होने से रहे! इसलिए जब समय मिले यात्रा में अवश्य जाएं। परन्तु यह यात्रा स्वयं की प्रसन्नता और आत्मसंतुष्टि के लिए होनी चाहिए न कि किसी उत्तरदायित्व निर्वहन के लिए।

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लेखिका हिन्दी व्याख्याता एवं साहित्यकार हैं।