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वसंत के संदेशवाहक महुआ के फ़ूल

स्वराज करुण 
(ब्लॉगर एवं पत्रकार )

महुआ और पलाश के खिलते हुए फूल वसंत के संदेशवाहक हैं, जो हमें ऋतुराज के आगमन की सूचना देते हैं. महुए के पेड़ों के नीचे बहुत जल्द उनके सुनहरे ,पीले फूलों की बारिश होगी। वसंत के इस मौसम में अभी महुए की कलियां धीरे -धीरे कुचिया रही हैं। जैसे ही फूल बनकर धरती पर उनका टपकना शुरू होगा , वनवासियों के लिए मौसमी रोजगार के भी दिन आ जाएंगे ।

स्वादिष्ट और पौष्टिक होने के कारण महुए के फूल मनुष्यों के साथ -साथ जंगली भालुओं को भी बहुत पसंद हैं। महुआ झरने के दौरान उनके पेड़ों के आस -पास भालू भी मंडराने लगते हैं। इस वजह से उन दिनों भालुओं के आतंक और आक्रमण की कुछ घटनाएं भी होती हैं।

लेकिन इसके बावज़ूद ग्रामीण माताएं ,बहनें तमाम ख़तरे उठाकर भी सुबह -सवेरे महुआ बीनने पहुँच जाती हैं। किशोर उम्र के बच्चे भी उनके साथ महुआ बीनते हैं। महुआ एक ऐसा पेड़ है जो ग्रामीणों को वर्ष में दो बार आमदनी का अवसर देता है। एक बार तो फागुन और चैत के महीने में।

ग्रामीण इसके फूलों को बीनकर उन्हें लघु वनोपज सहकारी समितियों में बेचने पर उन्हें सरकार की ओर से निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्त हो जाता है , दूसरी बार उसके फल यानी ‘डोरी’ को बेचकर भी वो कुछ पैसे कमा लेते हैं।
शहरी लोगआम तौर पर महुआ को सिर्फ़ देशी शराब या ठर्रा के नाम से जानते हैं, लेकिन आयुर्वेद की दृष्टि से देखें तो यह वृक्ष मनुष्य को प्रकृति का एक अनमोल वरदान है। यह स्वास्थ्यवर्धक भी होता है. इस पेड़ का प्रत्येक अंग हमारे स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है।

महुआ के पत्तों से दोना -पत्तल भी बनाया जाता है। इसकी छाल का उपयोग ब्रोंकाइटिस, मधुमेह, गठिया, उच्च रक्तचाप आदि बीमारियों के इलाज में लाभदायक होता है। इसकी जड़ें सूजन ,दस्त और बुखार कम करने में सहायक होती हैं। इसकी टहनियों का दातौन की तरह इस्तेमाल दांतों और मसूड़ों की बीमारियों में फायदेमंद होता है।

इसके फल यानी ‘डोरी’ का तेल जहाँ चर्म रोगों के इलाज में उपयोगी है, वहीं यह तेल रसोई के भी काम आता है। डोरी तेल दर्द मिटाने में भी मददगार होता है। डोरी तेल को बैलगाड़ी के चक्कों की धुरी पर लगाने से यह चक्कों में चिकनाई लाकर उनके घूमने की गति बढ़ाता है। यानी एक तरह से लुब्रिकेशन का काम करता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि महुआ एक मूल्यवान वृक्ष है। यह ज़मीन पर गिरे पड़े अपने बीजों से स्वयं अंकुरित होकर पेड़ बन जाता है।

लेकिन तेज गति से हो रहे शहरीकरण और असंतुलित औद्योगिक विकास के फलस्वरूप देश के ग्रामीण इलाकों और वनों में विभिन्न प्रजातियों के अनेक बहुमूल्य वृक्ष विलुप्त होते जा रहे हैं। शहरीकरण का यह संकट महुआ पर भी मंडरा रहा है और हमें डरा रहा है कि यह मूल्यवान वृक्ष एक दिन हमारी धरती से कहीं हमेशा के लिए गायब न हो जाए ! इसके संरक्षण और संवर्धन पर सबको संज़ीदगी से ध्यान देने और काम करने की जरूरत है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं ब्लॉगर हैं।

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