हिंदी थोपने के विरोध में एकजुट हुए ठाकरे बंधु, 5 जुलाई को साझा प्रदर्शन की घोषणा
महाराष्ट्र की राजनीति में एक अभूतपूर्व मोड़ आया है, जहां दो दशकों से एक-दूसरे से अलग राह पर चल रहे उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे अब एकजुट होकर राज्य सरकार की शिक्षा नीति के खिलाफ मैदान में उतरने जा रहे हैं।
राज्य सरकार द्वारा पहली से पाँचवीं कक्षा तक हिंदी भाषा को अनिवार्य किए जाने के फैसले के विरोध में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने 5 जुलाई को एक साझा विरोध मार्च निकालने की घोषणा की है। यह कदम मराठी अस्मिता और भाषाई विविधता को बचाने के उद्देश्य से उठाया गया है।
शिवसेना (उबीटी) के सांसद और प्रवक्ता संजय राउत ने सोशल मीडिया पर दोनों नेताओं की एक साथ तस्वीर साझा करते हुए लिखा, “अब हिंदी थोपने के खिलाफ एकजुट आवाज़ उठेगी। जय महाराष्ट्र!”
गौरतलब है कि पहले दोनों नेताओं ने अलग-अलग प्रदर्शन की घोषणा की थी — जहां राज ठाकरे ने 6 जुलाई को गिरगांव चौपाटी से ‘विराट मोर्चा’ निकालने की बात कही थी, वहीं उद्धव ठाकरे ने 7 जुलाई को आजाद मैदान में आयोजित प्रदर्शन को समर्थन दिया था। इससे जनता और समर्थकों के बीच भ्रम की स्थिति पैदा हो गई थी।
संजय राउत ने बताया कि गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद राज ठाकरे ने उन्हें कॉल कर सुझाव दिया कि मराठी भाषा जैसे गंभीर मुद्दे पर दो अलग-अलग प्रदर्शन का कोई औचित्य नहीं है, और इसे एकजुट होकर किया जाना चाहिए। इस विचार पर तुरंत उद्धव ठाकरे ने भी सहमति जताई और 5 जुलाई को साझा मार्च की योजना बनी।
मनसे नेता संदीप देशपांडे ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा, “यह केवल एक विरोध प्रदर्शन नहीं, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया अध्याय होगा। जब मराठी लोग एकजुट होते हैं, तो बदलाव की लहर शुरू होती है। यह 2.0 संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन की शुरुआत है।”
महाराष्ट्र सरकार ने 16 अप्रैल को एक आदेश जारी कर राज्य बोर्ड के मराठी और अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य किया था। इस पर सामाजिक संगठनों, शिक्षकों और क्षेत्रीय नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी।
विवाद के बाद सरकार ने संशोधित आदेश जारी करते हुए स्पष्ट किया कि हिंदी अब अनिवार्य नहीं रहेगी और यदि किसी कक्षा में 20 या उससे अधिक छात्र कोई अन्य भारतीय भाषा चुनना चाहें, तो उन्हें विकल्प दिया जाएगा।
फिर भी, ठाकरे बंधुओं का यह कदम स्पष्ट संकेत है कि मराठी अस्मिता से जुड़े किसी भी मुद्दे पर वे अब एकजुट होकर सरकार को चुनौती देने को तैयार हैं।