लुधियाना पश्चिम उपचुनाव: वोट प्रतिशत में सुधार के बावजूद सीट से दूर भाजपा, मंथन की ज़रूरत पर ज़ोर
पंजाब में लुधियाना पश्चिम विधानसभा उपचुनाव का परिणाम एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए चिंतन का विषय बन गया है। किसान आंदोलन के बाद से लगातार यह देखा गया है कि भाजपा को राज्य में पर्याप्त वोट तो मिल रहे हैं, लेकिन वह उन्हें सीट में बदलने में असफल रही है। यही वजह है कि पार्टी के भीतर अब “गंभीर आत्ममंथन” की मांग ज़ोर पकड़ रही है।
इस उपचुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) ने जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही। भाजपा तीसरे स्थान पर रही, हालांकि वह अपने पूर्व सहयोगी शिरोमणि अकाली दल (शिअद) से आगे रही। भाजपा को कुल 22.5% वोट मिले, लेकिन सीट नहीं जीत सकी।
भाजपा का आंतरिक संघर्ष और रणनीतिक सवाल
पंजाब भाजपा अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने इस परिणाम को “आप को आईना दिखाने वाला” बताया और दावा किया कि पंजाब के लोग अब आप और कांग्रेस से आगे सोच रहे हैं। लेकिन पार्टी के भीतर से आवाजें उठ रही हैं कि केवल वोट प्रतिशत बढ़ाना काफी नहीं है।
एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “अब समय आ गया है कि हम 2027 विधानसभा चुनाव की तैयारी अभी से शुरू करें। सिर्फ दूसरा या तीसरा स्थान पाना या ज़मानत बचाना पर्याप्त नहीं है। ज़रूरत है स्पष्ट रणनीति, संगठनात्मक सुधार और जमीनी काम की।”
शिअद का दावा और बढ़ता आत्मविश्वास
हालांकि शिरोमणि अकाली दल की स्थिति इस चुनाव में भाजपा से पीछे रही, लेकिन पार्टी के प्रवक्ता अर्शदीप कालर ने इसे उत्साहजनक बताया। उन्होंने कहा, “हमने पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले अपने वोट प्रतिशत को दोगुना किया है, जो कांग्रेस और भाजपा दोनों नहीं कर सके।”
भाजपा की रणनीति और नाकामी
भाजपा ने इस चुनाव में भारी भरकम प्रचार किया। दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता, हरियाणा के सीएम नायब सिंह सैनी, केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी और रवनीत बिट्टू जैसे बड़े नेताओं को प्रचार में उतारा गया। इसके बावजूद पार्टी को 2022 के मुकाबले कम वोट मिले। उस समय भाजपा ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस और शिअद (संयुक्त) के साथ गठबंधन में 24.2% वोट हासिल किए थे। दोनों सहयोगी अब भाजपा में विलीन हो चुके हैं।
लगातार दोहराता ट्रेंड और असमंजस
2022 के संगरूर लोकसभा उपचुनाव से लेकर 2024 के लोकसभा चुनाव तक, भाजपा ने कई सीटों पर वोट प्रतिशत में इजाफा तो किया है, लेकिन सीटें नहीं जीत सकी। जालंधर वेस्ट, गिद्दड़बाहा, चब्बेवाल, डेरा बाबा नानक और बरनाला जैसे उपचुनावों में भी पार्टी तीसरे या चौथे स्थान पर रही।
पार्टी ने कई नामचीन चेहरों को मैदान में उतारा — जैसे पूर्व मंत्री मनप्रीत सिंह बादल, पूर्व स्पीकर निर्मल सिंह काहलों के बेटे रवि करण काहलों, और चार बार के विधायक सोहन सिंह थंडल — लेकिन कोई विशेष सफलता नहीं मिली। थंडल अब वापस शिअद में लौट चुके हैं।
पंजाब भाजपा का भविष्य और अनिश्चितता
लोकसभा चुनावों में एक भी सीट न जीत पाने के बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने इस्तीफे की पेशकश की थी, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने अब तक कोई फैसला नहीं लिया है। इससे प्रदेश इकाई में असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
2027 के विधानसभा चुनावों में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने की इच्छा रखने वाली भाजपा के लिए यह स्पष्ट संकेत है कि महज़ वोट प्रतिशत से संतुष्ट रहना अब संभव नहीं होगा। पार्टी को जमीनी स्तर पर संगठन मजबूत करने, प्रभावशाली उम्मीदवारों की पहचान करने और रणनीति में व्यापक बदलाव की आवश्यकता है।