हर घटना की एक ही कहानी : लव जिहाद
आधुनिकता और प्रगति के नाम पर पहले हिन्दू समाज को जड़ों से काटना, नाम बदल कर हिन्दू लड़कियों संपर्क बनाना, निकटता बढ़ाकर शारीरिक संबंध बनाना, और फिर धर्मान्तरण केलिये दबाब बनाना। यह किसी एक नगर की नहीं अपितु देशभर घटी अधिकांश घटनाओं की कहानी है । इसीलिये इसे सुनियोजित माना गया और “लव जिहाद” कहा गया । बरेली जिला अदालत ने भारत के लिये एक गंभीर संकट माना है।
भारत में भारत के साँस्कृतिक स्वरूप का रूपांतरण करने केलिये कई प्रकार की शक्तियाँ काम कर रहीं हैं। उनमें परस्पर कितना तालमेल है यह नहीं कहा जा सकता पर इस बात से इंकार नहीं किया जा कि उनके काम एक दूसरे के सहायक हैं। एक समूह आधुनिकता के नाम पर भारतीय परंपराओं, मान्यताओं और रीति रिवाज को पिछड़ापन बताता है, व्यंग करता है और बदलाव के सुझाव देता है ताकि भारतीय समाज अपनी जड़ों से दूर हो, दूसरा समूह दिखावट सजावट की भ्रामकता फैलाकर व्यसनों में उलझा रहा है जिससे समाज सत्य समझने की क्षमता से परे हो। और तीसरा पक्ष अपनी ओर आकर्षित करने का अभियान चला रहा है। इन तीनों शक्तियों की एक जुटता राजनीति और समाज जीवन दोनों में स्पष्ट देखी जा है। फिर भी इन तीनों की एकजुटता समझने केलिये तीन उदाहरण ही पर्याप्त हैं।
दक्षिण भारत से आवाज उठी थी, सनातन धर्म को डेंगू मलेरिया समान बताकर समाप्त करने की। देश की अनेक राजनैतिक शक्तियों ने इसका समर्थन किया था। दूसरा एक समाज ने अपनी महिलाओं को पूरे शरीर को ढके कपड़ों के बावजूद उसके ऊपर हिजाब पहनने का आदेश जारी किया था। कुछ समाजशास्त्रियों और चिकित्सा विज्ञानियों ने इस आदेश को महिला अधिकारों तथा चिकित्सा विज्ञान के विरुद्ध बताया था। तब कुछ सार्वजनिक कार्यकर्ताओं ने उन्हें यह कहकर चुप कर दिया था कि यह किसी समाज और धर्म विशेष का निजी अधिकार है। लेकिन जब एक संत ने महिलाओं से छोटे और तंग कपड़े पहनने की अपील की थी तब अनेक तथाकथित समाज सेवियों ने संत पर इतना शाब्दिक हमला बोला था कि संत महाराज ने चुप्पी साध ली थी और तीसरी आवाज तब सुनी गई थी जब अयोध्या में राम जन्मस्थान पर मंदिर के शिलान्यास की तैयारी हो रही थी।
तब कुछ स्वर ऐसे थे कि वहाँ मंदिर के स्थान पर अस्पताल बनना चाहिए। लेकिन जब एक लड़की को कोई धोखा देता है, नाम और पहचान बदलकर संपर्क बढ़ाता है, अपने प्रेम जाल में फँसाकर शारीरिक संबंध बनाता है और लड़की के गर्भवती होने पर अपनी असली पहचान दिखाकर धर्मान्तरण का दबाव बनाता है तब इन तीनों में कोई एक शब्द नहीं बोलता। धोखे का शिकार बनी इस लड़की के समर्थन की बात तो दूर कुछ शक्तियाँ इसे प्रेम संबंध बताकर ऐसी घटनाओं की गंभीरता को कम कर देते हैं। ऐसी घटनाओं में यदि कोई पीड़ित लड़की के बचाव में आता है तो उसे राजनीति से जोड़कर समर्थन कमजोर करने का प्रयास किया जाता है। बात यहीं तक समाप्त नहीं होती। प्रेम के नाम पर षड्यंत्र करने वाले आरोपियों को कानूनी सहायता देने केलिये सक्रिय हो जाते हैं।
इस तरह की घटनाएँ यदि किसी एकाध नगर में घटती तो सामान्य अपराध माना जा सकता था, किन्तु ऐसी घटनाएँ तो देशभर में घट रहीं हैं। भारत विविधता से भरा देश है। विविधता भाषा, भूषा, भोजन में ही नहीं जीवन शैली में भी है। लेकिन नाम और पहचान बदलकर पहले हिन्दू लड़कियों से परिचय करना, निकटता बढ़ाकर शारीरिक संबंध बनाना गर्भवती होने पर धर्मान्तरण केलिये दबाब बनाने की घटनाएँ पूरे देश में एक समान हैं। केरल से लेकर उत्तराखंड और असम से लेकर राजस्थान तक कहानी एकसी है।
ऐसी घटनाओं में निरंतर वृद्धि हो रही है। केवल सितम्बर माह में देश के विभिन्न प्राँतों में ऐसी बीस से अधिक प्रकरण पुलिस थानों तक पहुँचे हैं। सबसे अधिक उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड से हैं। इन दोनों प्राँतों में ही दस घटनाएँ घटीं। अकेले लखनऊ शहर में दो। ये घटनाएँ तो वे हैं जो पुलिस थानों तक पहुँची हैं। जो प्रकरण पुलिस तक नहीं पहुँचे उनकी तो गिनती नहीं है। मध्यप्रदेश में भोपाल या इंदौर जैसे महानगरों में ही नहीं बैतूल जैसे अर्धनगरीय क्षेत्र से और छत्तीसगढ के रायगढ़ में भी प्रकरण थाने पहुँचे हैं। घटनाओं को अलग अलग देखने से गंभीरता स्पष्ट नहीं होती लेकिन सबको मिलाकर देखने से जो चित्र बनता है वह भयावह है। इसी भयाभयता को स्पष्ट किया है उत्तरप्रदेश की बरेली जिला अदालत ने। इस प्रकरण में अदालत ने आरोपी को दोषी पाये जाने पर केवल सजा ही नहीं सुनाई है अपितु समाज को भी चेताया है।
बरेली का प्रकरण
इस तरह के प्रकरण पुलिस तक तो पहुँचते हैं लेकिन अदालत में सबूतों के अभाव में आरोपियों को दंड नहीं मिल पाता। इसके तीन कारण देखे गये। पहला याचिका कर्ता द्वारा पुलिस में दिये गये ब्यान और अदालत में दिये गये ब्यानों मेें अंतर होना। दूसरा पुलिस जांच में कमजोरी अथवा समय के साथ दोनों पक्षों में समझौता हो जाना। लेकिन बरेली के इस प्रकरण में इस प्रकार की कोई विसंगति न आ सकी और यह ऐतिहासिक निर्णय आ गया। जिला न्यायालय ने मुख्य आरोपी मोहम्मद आलिम को आजीवन कारावास और पिता मोहम्मद साबिर को दो वर्ष के कारावास की सजा सुनाई।
पुलिस में दर्ज रिपोर्ट के अनुसार पीड़िता बरेली के राजेंद्र नगर क्षेत्र स्थित एक कंप्यूटर सेन्टर में कोचिंग के लिये जाती थी। यहीं पर उसका परिचय मोहम्मद आलम से हुआ। आलम ने अपना नाम आनंद बताया। दोनों में परिचय हुआ और यह प्रेम संबंध में बदल गया। पीड़िता गर्भवती हुई तो आरोपी ने मंदिर ले जाकर माँग भी भरदी थी और शारीरिक संबंध बनाये। इतना ही नहीं आरोपी ने उसका अश्लील वीडियो बनाकर उसे धमकाया भी। पीड़िता जब आरोपी के घर पहुंची तब उसे पता चला जिसे वो आनंद समझ रही थी वो मोहम्मद आलिम है.
मोहम्मद आलिम के परिवार वालों ने पीड़िता के साथ मारपीट की और धर्म परिवर्तन का दबाव बनाया। पीड़िता का एक बार गर्भपात भी कराया। इस बीच मुख्य आरोपी मोहम्मद आलिम एवं उसके पिता ने धर्मान्तरण के लिये दबाव डाला और अनेक बार मारपीट की। अंत में पीड़िता ने देवरनिया थाने में शिकायत की। दोषियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(n), 323, 504, 506 के अंतर्गत प्रकरण दर्ज किया गया। मुकदमा फास्ट ट्रैक पर चला और छै माह में यह निर्णय आ गया जिसमें दोनों मुख्य आरोपी आरोपियों को सजा सुनाई गई।
न्यायालय की कठोर टिप्पणी
इस प्रकरण में न्यायालय ने अपना निर्णय सुनाने के साथ एक गंभीर टिप्पणी भी की। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री रवि कुमार दिवाकर ने अपने अपने 42 पृष्ठ के आदेश में इसे सामान्य प्रेम नहीं माना। नाम बदलकर संपर्क बढ़ाना, पीड़िता के गर्भवती होने के बाद सच्चाई बताकर धर्मान्तरण का दबाब बनाने को सुनियोजित ही बताया और कहा कि इसका मुख्य उद्देश्य जनसांख्यिकीय युद्ध और अंतरराष्ट्रीय साजिश अंतर्गत ‘विशेष धर्म के कुछ अराजक तत्वों’ द्वारा भारत पर वर्चस्व और प्रभुत्व स्थापित करना लगता है। उन्होंने दबाब और शारीरिक प्रताड़ना देकर कराये गये धर्मान्तरण को अवैध माना और कहा कि इस प्रकार अवैध धर्मांतरण किसी बड़े उद्देश्य को पूरा करने के लिए किया जाता है।
न्यायालय के आदेश में यह भी कहा गया है कि हिन्दू लड़कियों को प्रेम जाल में फंसाकर अवैध धर्म परिवर्तन का अपराध बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। जिसमें गैर-मुस्लिम, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी समुदाय के कमजोर वर्गों के लोगों, महिलाओं और बच्चों का ब्रेनवॉश करके, उनके धर्म के बारे में गलत बातें बोलकर, देवी-देवताओं के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करके, मनोवैज्ञानिक दबाव बनाकर और उन्हें शादी, नौकरी आदि जैसे विभिन्न प्रकार के प्रलोभन देकर बहला-फुसलाकर भारत में भी गंभीर हालात पैदा किए जा रहे हैं।”
अदालत ने यह भी कहा कि इसे रोका जाना चाहिए। यदि भारत सरकार समय रहते इस प्रकार अवैध धर्मांतरण को नहीं रोकती है तो भविष्य में देश को ‘गंभीर परिणाम’ भुगतने पड़ सकते हैं। अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे प्रकरणों को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। अवैध धर्मांतरण देश की एकता, अखंडता एवं संप्रभुता के लिए खतरा है। भारत का संविधान भले ही सभी लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार एवं संरक्षण देता है लेकिन अगर इसकी आड़ में दूसरे धर्मों के अस्तित्व को लालच देकर, असमायक दबाव या अन्य माध्यमों का प्रयोग करके दुष्प्रभावित किया जाएगा तो निश्चित रूप से अन्य सभी धर्मों के संरक्षण का हनन होगा ।
अदालत की यह चिंता पूरे देश को कितना सावधान कर पायेगी यह आज नहीं कहा जा सकता किन्तु स्कूल, कालेज, कोचिंग सेन्टर, मसाज पार्लर, ब्यूटी पार्लर, फेसबुक, इन्टाग्राम आदि पर फर्जी एकाउंट, फर्जी नाम से लड़कियों से परिचय करते हैं प्रेम जाल में फँसाते हैं और फिर मतान्तरण का दबाब बनाते हैं। चार वर्ष पहले भारत के एक बड़े मीडिया हाउस ने प्रेम विवाह और लव जिहाद पर सर्वे किया था। उस सर्वे में 53 प्रतिशत लोगों ने अपना नाम और पहचान बदलकर लड़कियों को फँसाने को “लव जिहाद” ही माना था और 33 प्रतिशत ने इंकार किया।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं टिप्पणीकार हैं।
सटीक विवेचन