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तानवट में पहली बार आयोजित हुआ लालसिंह मांझी शहीद गौरव दिवस, प्रतिमा स्थापना और वार्षिक आयोजन का संकल्प

रायपुर, 23 नवंबर 2025/ आजादी की लड़ाई में लगभग 165 वर्ष पहले शहीद हुए आदिवासी क्रांतिकारी लालसिंह मांझी को अब भुलाया नहीं जाएगा। उनके बलिदान और शौर्य को सम्मान देने के लिए पहली बार उनके गृहग्राम तानवट (सीमावर्ती ओडिशा) में 22 नवंबर को विशेष जनसभा और कलश यात्रा आयोजित की गई। यह कार्यक्रम जनजातीय गौरव दिवस और शहीद लालसिंह मांझी गौरव दिवस के अंतर्गत ग्राम्य उन्नयन कमेटी, तानवट द्वारा आयोजित किया गया।

कार्यक्रम में महासमुंद (छत्तीसगढ़) के पूर्व लोकसभा सांसद चुन्नीलाल साहू और नुआपाड़ा (ओडिशा) के नवनिर्वाचित विधायक जय ढोलकिया विशेष रूप से उपस्थित थे। तानवट सहित आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में आदिवासी समाज सहित अन्य समुदायों के लोग भी शामिल हुए। शहीद लालसिंह मांझी के कई वंशज सेमरिया गांव (खरियार रोड के पास) से इस आयोजन में पहुंचे। कलश यात्रा में महिलाओं की सक्रिय और उत्साहपूर्ण भागीदारी देखने को मिली। सीमावर्ती पंचायतों के अनेक जनप्रतिनिधियों ने भी कार्यक्रम में भाग लिया।

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जनसभा को संबोधित करते हुए पूर्व सांसद चुन्नीलाल साहू ने कहा कि 1857 की क्रांति में छत्तीसगढ़ और पश्चिम ओडिशा के कई वीरों ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसके बावजूद उन्हें इतिहास में उचित स्थान नहीं मिल पाया। उन्होंने कहा कि लालसिंह मांझी जैसे भूले-बिसरे क्रांतिकारियों की शौर्य गाथाओं को सामने लाना हमारा कर्तव्य है। ग्रामीणों ने इस आयोजन को हर वर्ष आयोजित करने पर सहमति दी।

गांव में लगेगी लालसिंह मांझी की प्रतिमा

नुआपाड़ा के विधायक जय ढोलकिया ने जनसभा में लालसिंह मांझी की कर्मभूमि तानवट में उनकी प्रतीकात्मक प्रतिमा स्थापना के लिए 5 लाख रुपये देने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि इस गांव को “स्वाधीनता संग्रामी ग्राम” घोषित करवाने के लिए वे ओडिशा सरकार से आग्रह करेंगे। इस पर चुन्नीलाल साहू ने विधायक ढोलकिया का धन्यवाद व्यक्त किया और उपचुनाव में मिली बड़ी जीत पर उन्हें बधाई दी।

ग्रामीणों ने कहा कि इस आयोजन की सफलता को देखते हुए इसे हर वर्ष शहीद की स्मृति में आयोजित किया जाना चाहिए। विधायक ढोलकिया और पूर्व सांसद साहू दोनों ने इसके लिए हर संभव सहयोग का आश्वासन दिया।

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चुन्नीलाल साहू ने सभी ग्रामीणों को कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि तानवट के जमींदार लालसिंह मांझी ने सोनाखान (छत्तीसगढ़) के अमर शहीद वीर नारायण सिंह के सुपुत्र को अपने गांव में संरक्षण दिया था। इसी कारण अंग्रेजी शासन ने उन पर कड़ी कार्रवाई करते हुए उन्हें कालापानी की सजा देकर अंडमान भेज दिया था। उन्होंने कहा कि ऐसे वीरों की कहानियों को नई पीढ़ी तक पहुंचाना हमारी जिम्मेदारी है।

कालापानी से कभी वापस नहीं लौट सके लालसिंह मांझी

चुन्नीलाल साहू ने बताया कि अंग्रेजों ने 6 और 8 नवंबर 1860 को तानवट में लालसिंह मांझी के घर पर लगातार दो हमले किए, लेकिन उन्हें गिरफ्तार नहीं कर पाए। इसके बाद बंगाल प्रेसिडेंसी के गवर्नर के दबाव में खरियार के राजा कृष्णचंद्र देव से लालसिंह मांझी को आत्मसमर्पण करवाया गया। 22 नवंबर 1860 को राजा ने उन्हें अंग्रेजों के हवाले कर दिया। उसी दिन उन्हें कालापानी (अंडमान) भेज दिया गया, जहां से वे कभी लौट नहीं सके। यही दिन उनके बलिदान दिवस के रूप में माना जाता है।

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पहले यह इलाका छत्तीसगढ़ का हिस्सा था

साहू ने बताया कि तानवट गांव पहले छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के अंतर्गत महासमुंद तहसील का हिस्सा था। वर्ष 1936 में ब्रिटिश हुकूमत ने इसे ओडिशा में शामिल कर दिया। आज भी इस क्षेत्र में छत्तीसगढ़ी बोली और छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक छाप स्पष्ट रूप से दिखती है।

~स्वराज्य करुण