प्रतिभा का विज्ञापन लघुकथा
प्रतिभा के सम्मान के तरीके भी बदल दिए गए हैं। आजकल परिणामों के दिन हैं और अखबारों के समूचे पन्नों पर छात्रों की तस्वीरें होती हैं।
उसी में सब्जी वाले की लड़की, कुली का बेटा, कुल्फी वाले की भतीजी, चूड़ी वाले की बेटी, बर्तन मांजने वाली का बेटा ये सारे विशेषण उन प्रतिभाओं के साथ लगा कर पेश किए जाते हैं।
एक पत्रकार महोदय जब इसी तरह की एक छात्रा से संवाद किए तो, उसने साफ़ मना कर दिया कि मेरे परिचय में ऐसा कुछ मत लिखिए।
वो मुझे सम्मान देने के बदले सहानुभूति की स्थिति में ला देता है। परिश्रमी और मेधावी छात्र होता है। जिन परिस्थितियों से वो आगे बढ़ चुका है, उसी में समेट कर उसे यश नहीं दया मिलती है।
वो भी एकाध कोई हो तो सोचें भी, यहां ये अनिवार्य होता जा रहा है।
पत्रकार महोदय मंथन करते रहे और उस छात्रा की बातों से सहमत हो गए।