20 मई 1932 सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी विपिन चंद्र पाल का निधन
भारतीय स्वाधीनता संग्राम में दो प्रकार की विभूतियाँ हुईं एक वे जिन्होंने स्वयं संघर्ष किया और बलिदान दिया एवं दूसरे वे जिन्होंने स्वयं भी संघर्ष किया और क्रांति के लिये एक पूरी पीढ़ी तैयार की । विपिन चंद्र पाल ऐसे ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी है जिन्होंने बंगाल में
स्वाधीनता संग्राम की गति तेज की। उन्होंने स्वयं भी तीखा संघर्ष किया और क्राँति केलिये पीढ़ी तैयार की। स्वतंत्रता आँदोलन में “लाल बाल और पाल” के रूप में त्रिदेव माने जाने वाली विभूतियों में एक हैं।
भारत में 1857 की क्रान्ति की एक विशेषता रही । उस क्राँति में शासकों के साथ जन सामान्य भी सक्रिय हुआ था। यह परंपरा आगे बढ़ी। इस परंपरा में आगे जन जागरण का अभियान भी चला और सशस्त्र क्राँति का भी।लाल बाल और पाल के रूप में त्रिदेवों के इस समूह ने दोनों प्रकार के कार्यकर्ता तैयार किये। एक ओर स्वत्व जागरण केलिये वंदेमातरम् गीत भी सार्वजनिक रूप से गाया जाने लगा था, और दूसरी ओर क्राँतिकारियों के शस्त्र भी गरजने लगे। स्वतंत्रता आँदोलन में ये दोनों धाराएँ 1905 में बंगाल विभाजन के समय स्पष्ट दिखीं। इन दोनों धाराओं के अग्रणी नेताओं में विपिन चंद्र पाल भी थे। ऐसे व्यापक चिंतक और विचारक विपिन चंद्र जी पाल का जन्म 7 नवंबर 1858 को बंगाल के हबीबगंज जिले में हुआ । अब यह क्षेत्र बंगलादेश में है । विपिनचंद्र पाल आरंभ से ही एक संकल्प वान जीवन जीने के लिये जाने जाते हैं। सामाजिक जागरण में भी उन्होंने प्रकार के काम किये। अंग्रेजों से भारत की मुक्ति केलिये सामाजिक चेतना और दूसरा विदेशी सत्ता के कुप्रभाव से आईं समाजिक बुराइयों को भी दूर करने का अभियान चलाया। वे बहुत स्पष्टता और दो टूक शब्दों में अपनी बात रखते थे।
उनकी स्पष्टवादिता से परिवार असहमत हुआ तो उन्होंने परिवार से भी नाता तोड़ लिया । वे अपनी धुन और संकल्प के पक्के थे। वे गाँधीजी के स्वदेशी विचारों से तो सहमत थे लेकिन अहिसंक संघर्ष में पूर्ण स्वराज्य के मुद्दे पर असहमत थे। गाँधी जी आरंभ में पूर्ण स्वराज्य के मुद्दे को पीछे करके समान नागरिक सम्मान और अधिकार पर जोर दे रहे थे। और पूर्ण स्वतंत्रता केलिये अंग्रेजों को चर्चा से सहमत करना चाहते थे। गाँधी जी के पक्ष के समर्थकों को “नरम दल” कहा गया। जबकि स्वतंत्रता सेनानियों का एक बड़ा समूह पूर्ण स्वाधीनता के लिये किसी भी तरीके को अनुचित नहीं मानता था। इस समूह को गरम दल गया। विपिन चंद्र पाल की गणना गरम दल के नेताओं में होती थी। काँग्रेस के अधिवेशनों में यह मतभेद स्पष्ट दिखता था।विपिन चंद्र पाल की गणना स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रसेवी होने के साथ शिक्षक, पत्रकार, विचारक, लेखक एवं ओजस्वी वक्ता के रूप में भी होती थी। उनके साथ जो उनके विचारों की जो टोली बनी उनमें लाला लाजपत राय पंजाब से, बालगंगाधर तिलक महाराष्ट्र से थे। क्षेत्र और भाषा के इस अंतर के बावजूद समान विचारों से यह टोली । त्रिदेव के रूप में प्रसिद्ध हुई इन्हें “लाल, बाल, और पाल कहा जाने लगा। त्रिदेवों की इस टोली ने ही 1905 में बंगाल विभाजन का निर्णय बदलने केलिये अंग्रेजी शासन के विरुद्ध आंदोलन आरंभ किया था। जिसे पूरे देश में समर्थन मिला। स्वत्व जागरण की चेतना फैली। इसका मंत्र वंदेमातरम था। इस अभियान से मानों अंग्रेजी सत्ता की नींव हिल गई । पूरे देश में विदेशी विचारों, वस्तुओं और वस्त्रों के वहिष्कार करने का आव्हान हुआ। यह आव्हान भी इन्ही त्रिदेवों ने किया था । इसका आरंभ करने वाले विपिन चंद्र पाल ही थे । इनमें ब्रिटेन में तैयार उत्पादों, विदेशी मिलों में तैयार कपड़ों की होली सबसे पहले विपिन चंद्र पाल जी के आव्हान पर ही जलाई गई । इसके अतिरिक्त उनके आँदोलन में औद्योगिक तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में हड़ताल आदि थे । जीवन भर राष्ट्रहित के लिए संघर्ष करने वाले पाल का 20 मई 1932 को निधन हो गया । भारत सरकार ने उनकी जन्म शताब्दी वर्ष 1958 में उनकी स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया गया था ।