किशन बाहेती : घुमक्कड़ी एक चलती फिरती पाठशाला है।
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1 :-आप अपनी शिक्षा दीक्षा, अपने बचपन का शहर और बचपन के जीवन के विषय में पाठको को बताये की वह समय कैसा था?
सयुंक्त भरा पूरा परिवार होने के कारण बचपन बड़ा शानदार रहा। पिताजी और छ: भाइयों का परिवार सभी एक साथ रहते थे, तो आप समझ सकते है कि प्यार और स्नेह कितना मिला होगा।
बचपन की बात क्या लिखूँ और क्या छोड़ूँ समझ नहीं आता, खेलकूद, शरारत, मौज-मस्ती और पढ़ाई किसी में भी हम पीछे नहीं थे, कोई ऐसा कोई आभ्यंतर खेल (इंडोर) और मैदानी खेल (आउटडोर) नही जो हमने नही खेला। मै समझता हूँ कि मोबाइल और कंप्यूटर उस समय नहीं था तो अच्छा ही था। हम पाँच दोस्त अपनी शरारतों के कारण प्रसिद्ध थे। इसके अगर किस्से सुनना चालू करूँ तो कई पन्ने कम पड़ेंगे। हर दिन हर पल एक यादगार पल था, कोई लौटा मेरा बचपन …
रविवार के दिन पिताजी या चाचाजी और के साथ कहीं न कहीं घूमना हो ही जाता था। इसके अलावा साल में एक या दो बार कलकत्ता के बाहर की घुमक्कड़ी हो जाती थी ।
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2 :- वर्तमान में आप क्या करते है एवं परिवार कौन कौन है?
आज भी हम सभी पिताजी के भाई संयुक्त परिवार की तरह ही रहते है, एक घर न सही पर एक दूसरे के दिल में। त्यौहार और पारिवारिक कार्यक्रम सब एकत्रित होकर मनाते है। वर्तमान परिवार में माँ-पिताजी, अर्धांगिनी (कृष्णा) और एक पुत्र (तनमय) है, जो अभी आठवीं में है।
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3 :- घूमने को रूचि कहाँ से जागृत हुई?
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4 :- किस प्रकार की घुम्मकड़ी आप पसंद करते है, ट्रैकिंग, रोमांचक खेल भी क्या सम्मिलित है, कठिनाई बताये?
वैसे भी घुमक्कड़ किसी भी बंधन से परे होता है। रिवर राफ्टिंग, पैरा ग्लाइडिंग आदि करने का मौका मिला है। अगर घर से बाहर घुमक्कड़ी के लिए निकलते है तो थोड़ी बहुत कठिनाई का सामना तो करना ही पड़ेगा। पर किसी भी कठिनाई को बाधा न मानकर सतत बढ़ते रहना ही घुमक्कड़ की निशानी है।
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5 :- उस यात्रा के बारे में बताये जहाँ पहली बार घूमने गए और क्या अनुभव रहा?
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6:- घुमक्कड़ी के दौरान आप परिवार और शौक के बीच किस तरह सामंजस्य बिठाते है?
@ इसके लिए मुझे कभी दिक्कत नहीं हुई, क्योकि मेरी इस घुमक्कड़ी में परिवार का पूरा सहयोग रहा। ज्यादातर घूमना परिवार या मित्रो के साथ ही होता है। जो एक ही विचार धारा वाले है। जैसा देश वैसा भेष में रहने में किसी को कभी आपत्ति नहीं हुई।
7 :- अपनी अन्य रुचियों के साथ बताएँ और आपने ट्रेवल ब्लॉग कब, क्यों प्रारम्भ किया?
@ घुमक्कड़ी के अलावा फोटोग्राफी, चलचित्र, किताबे पढ़ना और थोडा (बहुत) खाने का शौक है। जो कहीं न कहीं घुम्मकड़ी से ही सबंधित है। लिखने के मामले में थोडा आलसी हूँ, अपना एक ब्लॉग भी बना रखा है यात्रा द यादे पर वहा अभी तक कोरा कागज पड़ा है।
सफ़र है सुहाना में मेरी कुछ पोस्ट प्रेषित है। इसके अलावा घुमक्कड़ी दिल से के फेसबुक पन्ने पर कभी कभी भड़ास निकाल लेता हूँ। वैसे सही कहे तो अपनी घुमक्कड़ी के साथ उसके यादो को संजो रखने का ब्लॉग से बेहतर कोई साधन नहीं। इसके अलावा कहीं न कहीं इससे दूसरे घुमक्कड़ों और सैलानियों को काफी मदद मिलती है।
8 :- आपकी सबसे रोमांचक यात्रा कौन सी थी, अभी तक कहाँ कहाँ की यात्राएँ की और उन यात्राओ से क्या सीखने मिला?
@ यूँ तो अब तक की गयी हर छोटी बड़ी यात्रा किन्ही न किन्ही कारणों से रोमांचक रही है, चाहे वो सुंदरवन के मैंग्रोव जंगल में बाघ को देखना हो, चाहे सम के मरुधर मे कंपकंपी छुड़ा देनी वाली रात में, खुले आसमान के नीचे सोना।
हाल ही में लद्दाख यात्रा का एक वाकया कभी नहीं भूल सकता । पेंगोंग में एक रात गुजारने के बाद, हम सुबह 9 बजे लेह के लिए रवाना हुए । जिसके बीच चांगला से होते हुए जाना था। यूँ तो मौसम ठंडा ही था पर ज्यों ज्यों हमारी गाड़ियाँ चांगला के दर्रे के करीब जा रही थी तापमान शून्य से कम होते होते माइनस पहुच गया। सड़क और आस पास के हरियाली रहित पहाड़ सुनहली वर्फ की चादर से ढक गए थे। चारों तरफ का नजारा बेहद खूबसूरत और मनमोहक लग रहा था। सडकों पर बर्फ जमकर कड़ी हो चुकी थी, जिससे गाड़ी को चलने में दिक्कत हो रही थी और बिल्कुल धीमी गति से चल रही थी। हमने अपने वाहन चालक रेंचो को पहिये में चैन बांधने की सलाह दी, जिससे बर्फ पर पहिये की पकड़ मजबूत रहे। पर जल्दबाजी के कारण वो लोहे की सांकल लाना भूल गया। अब बस राम राम करते हुए हम चले जा रहे थे कि अचानक एक मोड़ पर जैसे ही रेंचो गाड़ी को मोड़ने लगा तभी गाड़ी पूरी तरह से संतुलन खोकर कर फिसल कर खाई की तरफ जाने लगी। पल भर में सारे देवता के नाम स्मरण हो गए, रेंचो जिसका पैर वैसे भी ब्रेक पर था पूरा जोर लगा कर ब्रेक लगाने की कोशिश की । 2 इंच के खाई के तरफ फासले पर गाड़ी फिसलते हुए रुकी । सभी को नीचे खाई दिख रही थी, यूँ तो मौसम के कारण पहले से हाथ-पैर ठन्डे पड़े थे, अब मस्तिष्क पूर्ण रूप से शून्य पड़ गया। गाड़ी हमें यमराज के भैंसे सी प्रतीक हो रही थी। मुँह से कोई शब्द नहीं निकल रहे थे न तो मरा न तो राम। कुछ क्षण बाद जब रेंचो को गाड़ी से बाहर निकलते देखा तब थोडा होश सा आया। उसने सड़क के किनारे की बर्फ को हटाकर मट्टी को निकालकर गाड़ी के पहियो पर लगा दी और फिर से चलने को तैयारी की। हम किंकर्तव्यविमूढ़ होकर 10 km के इस सफ़र में बैठे रहे। रेंचो धीमी गति से आगे के किसी बाहन के चक्र चिन्हों के ऊपर चलता रहा। चांगला दर्रे पहुँच कर जान में जान आई। आज भी इस बात को याद करके धड़कन तेज हो जाती है ।
अभी तक भारत के 21 राज्यो को छू चूका हूँ, आप सोच रहे होगा छू चुका का क्या मतलब हुआ? तो बता दूँ कि हमारा भारत इतना बड़ा है कि कोई भी इसे एक जन्म में तो पूर्ण रूप से घुम्मकड़ी करके ख़त्म नहीं कर सकता इसके लिए कई जन्म कम पड़ेंगे ।
21 राज्यो में किए गए खास जगहों का ब्यौरा इस प्रकार- तीर्थाटन:- चार धाम (बद्रीनाथ, पुरी, रामेश्वरम और द्वारका) 11 ज्योतिर्लिंग और पशुपतिनाथ, हरमंदिर साहेब आदि।
एतिहासिक स्थल :- लाल किला, ताजमहल, जलियावाला बाग, चार मीनार, अजंता-ऐलोरा की गुफाएं, खुजराहो, कोणार्क मंदिर, इंडिया गेट, हवा महल, महाबली पुरम और मैसूर पैलेस आदि अदि।
पर्वतीय स्थल :- ऊटी-कोडाइकनाल और मुन्नार, श्रीनगर-गुलमर्ग और लद्दाख, दार्जलिंग-गंगटोक आदि आदि।
9:- घुमक्कड़ी से क्या देखा और सीखा?
@ घुमक्कड़ी अपने आप में एक चलती फिरती पाठशाला है जो नित नए पाठ पढ़ाती। भिन्न भिन्न जीवन शैली, खान-पान, लोक संस्कृति आदि देखने और सीखने को मिलती है। हरमंदिर साहब के यहाँ मानव सेवा धर्म किसे कहते है ये जाना, मणिकर्णिका घाट पर जीवन का असली सत्य मृत्यु है ये फिर से ज्ञान बोध हुआ, पुरी के मंदिर पर हवा के विरुद्ध लहराती ध्वजा को देख ईश्वर के प्रति आस्था और दृढ हो गयी, पहाड़ों पर लोगो के रहन सहन को देखकर विषम परिस्थितियों में जीने की कला का ज्ञान हुआ। यहाँ तक गोआ में विदेशी लोगों को प्राणायाम करते देख खुद पर शर्मिन्दिगी आ रही थी कि हम तो अपनी सुसंस्कृति को छोड़ कर विदेशी कूसंस्कृति अपना रहे है और वो हमारी अच्छी चीजो को जीना चाहते है।
10 :- नए घुमक्कड़ों के लिए क्या सन्देश है?
@ कई योनियों के बाद अपने सुकर्मो के कारण हमे मनुष्य योनि मिली है। इसे हम कूपमंडूक बनकर न जिएँ, प्रकृति बाहें फैलाये आपका स्वागत कर रही है, घुमक्कड़ बनकर सिर्फ सड़को और पहाड़ो की खाक छानने से बेहतर ऐसा कुछ कार्य साथ में करें कि समाज और प्रकृति दोनों का कल्याण हो। अपने घुमक्कड़ी जीवन में सामाजिक, पारिवारिक और प्राकृतिक तालमेल को बनाये रखे। इसमें महिलाओं का भी योगदान उतना होना चाहिए जितना की पुरुषों का। इसके लिए जरुरी है की अपने यात्रा अनुभव को चित्रों और लेखनी के माध्यम से दुनिया में साझा करें, वर्ना आपका ज्ञान और अनुभव आप तक ही सीमित रह जायेगा।
वाह किशन जी, बहुत कुछ जानने मिला । लद्दाख यात्रा तो आजीवन अविस्मरणीय हो गयी । वैसे सुनहली बर्फ होने का क्या कारण था ? ललित जी का विशेष आभार
सबसे पहले मै ललित जी को धन्यवाद और आभार व्यक्त करना चाहुगा जिन्होंने मुझे ये मंच दिया ।
लद्दाख की पहाड़ी पर हरियाली न होने के कारण सूर्य को किरणे सीधी बर्फ पर पड़ रही थी , जिससे पहाड़ पर उसका रंग सुनहला सा प्रतीत हो रहा था ।
तर्क सहित पूरा जीवन चक्र कह दिये। अवविस्मरणीय लद्दाख की यात्रा तो बहुत रोमंचित करता है ।
कपिल भाई ,
धन्यवाद ,
जीवन में मै जैसा हु और जैसा अनुभव किया बस वही दिल से लिखा है
Kya baat hai kishan ji. Bahut hi sunder shabdon se sja interview hai aapka.padhkar bahut hi acha lga.aise hi ghumte rahiye aur apne anubhav hm sb kath bant te rahiye…lalit ji apka bahut bahut dhnawad dil se.
ये सब आप सभी घुम्मकड़ और ब्लॉगर मित्रो को संगती का असर है ।
खासकर मुकेश जी , रितेश जी और ललित जी जिन्होंने बार बार लिखने के लिया उत्साहित किया ।
धन्यवाद
बहुत दिनों बाद अपने किशन लल्ला के जीवन के वर्क टटोलने ओर उनको पढ़ने का मौका मिला इसके लिए ललित सर सचमुच बधाई के हकदार है।क्योंकि उनके सामने सभी अपना दिल खोल कर रख देते है और आज का हीरा खोज लाये है —हमारे एडमिन को भी बधाई हो-
लद्धाख का खतरनाक अनुभव सुनकर वाकई में होश फ़ाख्ता हो गए। घुमक्कड़ी में कब क्या हो जाये इसके लिए भी हमको तैयार रहना चाहिए।
घुमक्कड़ी दिल से —-
मिलेंगे फिर —जय हिंद -^-
बुआजी
आखिर मन की मुराद पूरी हो ही गयी और मुझे भी अपनी ब्लोगेर श्रेणी में शामिल कर ही दिया ।
ललित जी को इसके लिए साधुवाद । कठिनाई से लड़कर भी घूमने वालो को घुम्मकड़ कहते है ।
धन्यवाद दिल से
मिलेगे फिर से
जय हो, बहुत बहुत आभार ललित सर इस घुमक्कड़ जंक्शन पर घुमक्कड़ों के बारे में जानकारिया देने के लिए.
किशन जी आपसे जब हमारी पहली बार मेरी साउथ इंडिया की यात्रा पर हुई थी तभी आपकी आत्मीयता का पता लग गया था, और आज तो आपके बारे में विस्तृत जानकारी पढ़कर दिल गार्डन गार्डन ओह सॉरी बाग़ बाग़ हो गया, अब तो मिलने का दिन भी आ रहा है, इंतज़ार में। ……
ये तो आप लोगो का प्रेम है । मैंने तो बस आपको जानकरी प्रदान कर अपना घम्मकड़ मित्र का कर्तव्य निभाया ।
मिलेगे फिर से
घुम्मकड़ी दिल से
किसन जी के जीवन के बारे में ओर नजदीकी से जानकारी मिली। वैसे वह एक अच्छे दोस्त होने के साथ एक बेहतरीन घुमक्कड़ है। किसन दा आपको सैल्यूट.. ।
धन्यवाद घुम्मकड़ी दिल से मंच का जिसके कारण आप जैसे अच्छे और सच्चे मित्रो से मुलाकात हुई ।
दिल से धन्यवाद
वाह किशन जी आपकी घुमक्कड़ी सभी को प्रेरित करेगी. ऐसे ही घूमते रहिये. मुझे ख़ुशी है की मैंने आप के साथ दो बार घुमक्कड़ी की और आपसे बहुत कुछ सीखने को मिला.
चंद्रेश जी
आपकी घुम्मकड़ी से हमे भी बहुत कुछ सिखने को मिलता है ।
बस झोला उठाये और चल दिए ।
आपसे हुई मुलाकात सदैव याद रहेगी ।
हर मुलाकात में एक छुपे हीरे का दर्शन करा देते है ।
धन्यवाद दिल से
बढ़िया किशन भाई….सच कहा आपने घुमक्कड़ी एक चलती फिरती पाठशाला है..?
डॉ साहब
मै इस पाठशाला का छात्र हु , आपलोग अध्यापक है जिनसे नित कुछ न कुछ सिखने मिल रहा है ।
धन्यवाद दिल से
किशन जी के बारे में लिखने के लिए मेरे शब्दकोष में शब्द नहीं हैं। जितने अच्छे घुमक्कड़ हैं उससे कहीं ज्यादा अच्छे इंसान हैं। आपकी यात्राएं सर्वदा हमारे लिए प्रेरक रही है, खासकर आपकी नेपाल यात्रा के चित्र देखने के बाद तो एकबारगी ऐसा लगा जैसे अभी उड़कर चला जाऊं उन स्थानों को देखने, लेकिन अभी तक वो सुअवसर नहीं आया। पिछले तीन वर्षों से कोलकाता आकर आपसे मिलने की तमन्ना को दिल में पाल कर रखा है, शायद अगले वर्ष वो पूरी हो जाए। आप सर्वदा खुश रहें, स्वस्थ रहें, संपन्न रहें और घूमते रहें, ईश्वर से यही प्रार्थना है।
मेरी घुम्मकड़ी को नया आयाम देने का श्रेय कही न कही आपको और आपके द्वारा बनाये गए समूह / परिवार घुम्मकड़ी दिल दे को जाता था । आपसभी से पर्यटक और घुम्मकड़ का फर्क पता चला ।
मिलेगे फिर से
घुम्मकड़ी दिल से
बहुत ही सुन्दर और शानदार साक्षात्कार ! मेरा परम सौभाग्य है कि किशन जी से कुछ देर की मुलाकात हुई है !! एक बढ़िया घुमक्कड़ का बढ़िया परिचय !!
धन्यवाद जी
सोभाग्य हमरा जो आप जैसे मित्र मिले ।
वो चन्द लम्हों की मुलाकात
जिंदगी भर की याद बन गयी
वाह मजा आ गया पढ कर।चांगला का रोमांचक सफर तो अभी पता लगा,पहले कभी बताया नही आपने।
पहाडी यात्रा का रोमांच आपसे बेहतर कौन जान सकता है ।
आपसे ये रोमाँच अगर पहले साँझा कर देता तो अभी पढ़ने में आनंद न आता ।
धन्यवाद दिल से
अनुज अभिषेक ,
आपसे न मिलने का कारण एक समय में आपकी कोलकाता यात्रा मेरी लद्दाख यात्रा थी ।
बहुत जल्द इस अफ़सोस को भी दूर कर देगे ।
धन्यवाद
व्यवसाय से वक्त निकालकर घुमक्कडी करना सचमुच बहुत बड़ा काम है। सीखते रहिए इस चलती-फिरती पाठशाला से और बांटते रहिए अनुभव। हार्दिक शुभकामनाएं…
बस वक्त मिलते ही निकल पड़ता हु , प्रकृति से कुछ नया सीखने ।
धन्यवाद दिल से
Bahut acha lagaa ….
Bahut acha lagaa …. Really interested life travel ..
धन्यवाद जी
सुन्दर और शानदार साक्षात्कार .आपके बारे में पहले से ही काफी मालूम था फिर भी कुछ नहीं बातें जानने को मिली . मुझे ख़ुशी है कि आप जैसे सज्जन मित्र से सपरिवार मिल चूका हूँ .
ललित जी को भी धन्यवाद .
कोलकाता गंगासागर यात्रा के दौरान आपसे हुई मुलाकात को मेरे पिताजी अभी भी याद करते है । आपका शांत स्वाभाव और मृदु भाषित उन्हें भा गयी ।
धन्यवाद दिल से
वाह बाबू मोशाय
बंधन में बंध कर रहना सुहाता नहीं और यहाँ “घुमक्क्ड़ी दिल से ” के बंधन में पता है कितनो को बाँध दिया! इसी से पता चल जाता है की आपका व्यक्तिवे कितना चुंबकीय है ..बिलकुल लदाख के मैग्नेटिक हिल ही तरह …
कठिनाई को बाधा न मानकर सतत बढ़ते रहना ही घुमक्कडी है और आपकी इसी बात को सार्थक करते हुए हम सब एक साथ ऐसा कुछ कार्य जरूर करते रहेंगे जो समाज और प्रकृति दोनों के लिए कुछ तो कल्याणकारी होगा और उसे भी एक दिन कोरे कागज पर उतार कर हमेशा के लिए …..यात्रा द यादे बना देंगे
इसी आशा में की जल्द ही मुलाकात होगी और यही कहेंगे .. मिलेंगे फिर से घुमक्क्ड़ी दिल से
मिलेंगे फिर से
घुम्मकड़ी दिल से
प्रिय किशन जी,
आपका शाब्दिक परिचय और फिर साक्षात् परिचय तो मुझे ओरछा में मिला था जब आपके आने से पहले हर कोई आपको ही याद कर रहा था, आप कहां तक पहुंच चुके हैं, कितने मिनट में पहुंचने वाले हैं, ये सब जानकारी ऐसे ही मिल रही थी जैसे TV पर क्रिकेट मैच की कमेंटरी में हर बॉल के बाद X runs required in Y balls. Required run rate Z ” बताते चलते हैं।
फिर भी, ललित जी द्वारा लिया गया ये साक्षात्कार आपके व्यक्तित्व और आपके जीवन के उन अनबूझे पन्नों को खोल रहा है, जिनको हम शायद और किसी तरीके से जान ही नहीं सकते थे। अपने बारे में बहुत सारी बातें हम खुद ही बतायें तो बतायें, हमारे दोस्त भी हमसे वह सब बातें पूछते हुए संकोच करेंगे! ऐसे में इस जैसे साक्षात्कार अमूल्य होते हैं क्योंकि हम खुद ही अपने पन्ने खोलते चले जाते हैं।
आपको बधाई और शुभ कामनाएं !
धन्यवाद ,
ये आप सभी का प्रेम था और मिलने की प्यास थी जो मुझे ओरछा खीची ले आयी ,
जितना आप लोग इंतजार कर रहे थे उतना ही मुझे आप सभी से मिलने का था ।
जब सबसे दिल से जुड़ गए तो दिल खोल कर रख दिया ।
बाकि ललित जी का साधुवाद इसके लिए
वाह बहुत खूब बेहतरीन जानकारी पूर्ण लेख
धन्यवाद