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कारगिल युद्ध में भारत की विजय के कर्णधार : कारगिल विजय दिवस

किसी भी राष्ट्र के लिए उसकी सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण होती है। सीमाओं की सुरक्षा के साथ नागरिकों की एवं उनके जान माल की सुरक्षा भी सम्मिलित है। यदि सीमा का कोई अतिक्रमण होता है तो उसकी रक्षा के लिए भीषण उत्तर देना पड़ता है। राष्ट्र की रक्षा का दायित्व सेना होता है, जो की अपनी जान की परवाह किये बिना शस्त्रों से राष्ट्र की सुरक्षा करती है। इसलिए कहा गया है कि ‘शस्त्र रक्षिते राष्ट्रे शास्त्र चर्चा प्रवर्तते।

भारत भी दो तरफ़ से दुश्मनों से घिरा हुआ है। एक तरफ़ पाकिस्तान है तो दूसरी तरफ़ चीन। इन दोनों के साथ सीमा को लेकर विवाद बना ही रहता है। 1999 में पाकिस्तानी सेना ने दुस्साहक करके भारत के पर्वतीय क्षेत्रों की कुछ चोटियों पर कब्जा कर लिया। इन घुसपैठियों को भगाने में भारतीय सेना ने अपने पराक्रम दिखाए तथा उन्हें मार भगाया तथा ऊंचाई वाले चौकियों को वापस हासिल किया था।। इस घटना की याद में प्रतिवर्ष 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है।

कारगिल युद्ध की शुरुआत मई 1999 में हुई थी, जब भारतीय गश्ती दल ने नियंत्रण रेखा (LoC) के पार पाकिस्तानी सैनिकों और कश्मीरी आतंकवादियों की उपस्थिति का पता लगाया। जहाँ पाकिस्तानी सैनिकों ने ऊंचाई वाली चौकियों पर कब्जा कर लिया था, ताकि सियाचिन ग्लेशियर और राष्ट्रीय राजमार्ग 1A को बाधित किया जा सके।

भारतीय सेना ने त्वरित कार्रवाई की और ऑपरेशन विजय के तहत इन क्षेत्रों को वापस हासिल करने के लिए एक विस्तृत सैन्य अभियान चलाया। इस अभियान में भारतीय वायुसेना ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और ऑपरेशन ‘सफेद सागर’ के तहत हवाई हमले किए। युद्ध लगभग दो महीने तक चला और जुलाई के अंत तक भारतीय सेना ने सभी कब्जे वाले क्षेत्रों को वापस हासिल कर लिया।

कारगिल विजय दिवस हमारे सैनिकों की वीरता, साहस और बलिदान को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन, देश भर में सैनिकों के सम्मान में उनके बलिदान की समृति में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जिनमें हुतात्माओं को श्रद्धांजलि दी जाती है और उनके बलिदान को याद किया जाता है। दिल्ली के इंडिया गेट स्थित अमर जवान ज्योति और जम्मू-कश्मीर के द्रास युद्ध स्मारक पर विशेष समारोह आयोजित होते हैं।

कारगिल विजय दिवस हमें याद दिलाता है कि हमारी सेना ने कितनी वीरता से हमारे देश की रक्षा की है और यह दिन हमारे सैनिकों के अदम्य साहस और शौर्य का प्रतीक है। जानिए ऐसे पाँच सैनिको के विषय में जिन्होंने अदम्य साहक का परिचय देकर कारगिल की लड़ाई जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी

1. जनरल वेद प्रकाश मलिक
जनरल वेद प्रकाश मलिक भारतीय सेना के प्रमुख थे जब 1999 में कारगिल युद्ध हुआ। उनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने कठिन परिस्थितियों में अद्वितीय वीरता और साहस का प्रदर्शन किया। युद्ध के दौरान, जनरल मलिक ने सेना को संगठित और प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कारगिल युद्ध के समय, जब पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सीमा में घुसपैठ की, तब जनरल मलिक ने तुरंत ऑपरेशन विजय की योजना बनाई और उसे लागू किया। उनकी रणनीतिक सोच और निर्णायक नेतृत्व ने भारतीय सेना को युद्ध के मोर्चे पर प्रभावी ढंग से लड़ने और दुश्मन को परास्त करने में मदद की।

उन्होंने विभिन्न सैन्य इकाइयों के बीच समन्वय स्थापित किया और सुनिश्चित किया कि हर सैनिक को आवश्यक समर्थन और संसाधन मिलें। उनके नेतृत्व में, भारतीय सेना ने दुश्मन के कब्जे वाले ऊंचाई वाले क्षेत्रों को सफलतापूर्वक वापस हासिल किया।

जनरल मलिक ने सैनिकों का मनोबल ऊंचा रखने और उनकी हौसला-अफजाई के लिए फ्रंटलाइन पर भी दौरे किए। उनके साहसी नेतृत्व और स्पष्ट दृष्टिकोण ने भारतीय सेना को एकजुट किया और विजय की ओर अग्रसर किया।

जनरल वेद प्रकाश मलिक का योगदान कारगिल युद्ध में अत्यंत महत्वपूर्ण था, और उनके नेतृत्व के बिना इस युद्ध में विजय प्राप्त करना बहुत कठिन होता। उनकी रणनीति, साहस और प्रेरणादायक नेतृत्व ने भारतीय सेना को गौरवपूर्ण जीत दिलाई।

2. लेफ्टिनेंट जनरल मोहिंदर पुरी
लेफ्टिनेंट जनरल मोहिंदर पुरी कारगिल युद्ध के दौरान 8 माउंटेन डिवीजन के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (GOC) थे। उनके नेतृत्व में, इस डिवीजन ने युद्ध के महत्वपूर्ण मोर्चों पर निर्णायक भूमिका निभाई।

कारगिल युद्ध के समय, 8 माउंटेन डिवीजन को महत्वपूर्ण ऊंचाई वाले क्षेत्रों को वापस हासिल करने का कार्य सौंपा गया था, जिसमें टोलोलिंग, टाइगर हिल और कई अन्य महत्वपूर्ण बिंदु शामिल थे। जनरल पुरी ने इन अभियानों की योजना बनाने और उन्हें सफलतापूर्वक निष्पादित करने में अहम भूमिका निभाई।

उन्होंने कठिन परिस्थितियों में अपने सैनिकों का मनोबल ऊंचा रखा और उन्हें प्रेरित किया। जनरल पुरी ने युद्ध के दौरान बेहतरीन नेतृत्व कौशल का प्रदर्शन किया, जिससे उनके नेतृत्व में सैनिकों ने अत्यंत कठिन और खतरनाक परिस्थितियों में भी साहस और दृढ़ता का प्रदर्शन किया।

उनके नेतृत्व में, 8 माउंटेन डिवीजन ने टोलोलिंग और टाइगर हिल जैसी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चोटियों को वापस हासिल किया, जो कारगिल युद्ध में भारतीय सेना की विजय के लिए महत्वपूर्ण थे। इन जीतों ने न केवल भारतीय सेना की स्थिति को मजबूत किया बल्कि दुश्मन के मनोबल को भी कमजोर किया।

लेफ्टिनेंट जनरल मोहिंदर पुरी की नेतृत्व क्षमता, रणनीतिक सोच और साहसिक निर्णयों ने कारगिल युद्ध में भारतीय सेना की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उन्हें एक प्रतिष्ठित सैन्य नेता के रूप में स्थापित किया।

3. लेफ्टिनेंट जनरल किशन पाल
लेफ्टिनेंट जनरल किशन पाल कारगिल युद्ध के दौरान 15 कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (GOC) थे। उनकी भूमिका कारगिल युद्ध में अत्यंत महत्वपूर्ण थी, क्योंकि 15 कोर जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा (LoC) की सुरक्षा और संचालन के लिए जिम्मेदार था।

कारगिल युद्ध के समय, लेफ्टिनेंट जनरल किशन पाल ने दुश्मन की घुसपैठ का पता लगाने और उसे नियंत्रित करने के लिए व्यापक रणनीति तैयार की। उन्होंने भारतीय सेना को युद्ध के मैदान में प्रभावी ढंग से तैनात करने के लिए समन्वय किया और सुनिश्चित किया कि सैनिकों को पर्याप्त समर्थन और संसाधन मिलें।

उनके नेतृत्व में, 15 कोर ने ऊंचाई वाले क्षेत्रों में लड़ाई के लिए विशेष अभियानों की योजना बनाई और उन्हें सफलतापूर्वक अंजाम दिया। लेफ्टिनेंट जनरल पाल ने युद्ध के दौरान विभिन्न ब्रिगेडों और बटालियनों के बीच समन्वय स्थापित किया, जिससे सभी इकाइयाँ एकजुट होकर कार्य कर सकीं।

उन्होंने फ्रंटलाइन पर जाकर सैनिकों का मनोबल बढ़ाया और उन्हें प्रेरित किया। उनकी रणनीतिक सोच और नेतृत्व के कारण भारतीय सेना ने दुश्मन के कब्जे वाले क्षेत्रों को सफलतापूर्वक वापस हासिल किया।

लेफ्टिनेंट जनरल किशन पाल के नेतृत्व और निर्णय लेने की क्षमता ने कारगिल युद्ध में भारतीय सेना की विजय में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके साहसिक नेतृत्व ने भारतीय सेना को एकजुट और प्रेरित किया, जिससे विजय प्राप्ति संभव हुई।

4. ब्रिगेडियर एम. पी. एस. बाजवा
ब्रिगेडियर एम. पी. एस. बाजवा कारगिल युद्ध के दौरान 192 माउंटेन ब्रिगेड के कमांडर थे। उनके नेतृत्व में, इस ब्रिगेड ने युद्ध के कुछ सबसे महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण अभियानों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। कारगिल युद्ध के समय, 192 माउंटेन ब्रिगेड को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चोटियों, जैसे टाइगर हिल और टोलोलिंग, को वापस हासिल करने का काम सौंपा गया था।

ब्रिगेडियर बाजवा ने इन अभियानों की योजना बनाने और उन्हें निष्पादित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी रणनीतिक सोच और कुशल नेतृत्व ने उनके सैनिकों को कठिन परिस्थितियों में भी साहस और दृढ़ता से लड़ने के लिए प्रेरित किया। ब्रिगेडियर बाजवा ने अपने सैनिकों का मनोबल ऊंचा रखने के लिए फ्रंटलाइन पर व्यक्तिगत रूप से उपस्थिति दर्ज कराई और उन्हें प्रेरित किया।

उनके नेतृत्व में, 192 माउंटेन ब्रिगेड ने दुश्मन के कड़े प्रतिरोध के बावजूद टाइगर हिल और टोलोलिंग जैसी महत्वपूर्ण चोटियों को वापस हासिल किया। इन जीतों ने न केवल भारतीय सेना की स्थिति को मजबूत किया बल्कि कारगिल युद्ध में निर्णायक मोड़ भी लाया।

ब्रिगेडियर बाजवा के नेतृत्व और साहस ने 192 माउंटेन ब्रिगेड को महत्वपूर्ण विजय दिलाई, जिससे कारगिल युद्ध में भारतीय सेना की सफलता सुनिश्चित हुई। उनके योगदान को आज भी भारतीय सेना में उच्च सम्मान के साथ याद किया जाता है और उनके साहसी नेतृत्व के लिए उनकी प्रशंसा की जाती है।

5. कैप्टन विक्रम बत्रा
कैप्टन विक्रम बत्रा, परमवीर चक्र (PVC) से सम्मानित, कारगिल युद्ध के नायक थे, जिन्होंने अपने अद्वितीय साहस और नेतृत्व से भारतीय सेना को विजय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे 13 जम्मू और कश्मीर राइफल्स (JAK Rifles) में सेवा कर रहे थे।

कारगिल युद्ध के दौरान, कैप्टन बत्रा को 5140 प्वाइंट पर कब्जा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जो एक महत्वपूर्ण दुश्मन की चौकी थी। उन्होंने अपनी टुकड़ी का नेतृत्व करते हुए अद्वितीय बहादुरी दिखाई और दुश्मन की भारी गोलीबारी के बावजूद सफलता प्राप्त की।

इस मिशन के दौरान, उनके नेतृत्व और साहसिक कार्य ने दुश्मन के कई सैनिकों को हताहत किया और चौकी पर भारतीय तिरंगा फहराया। इसके बाद, उन्हें 4875 प्वाइंट (अब बत्रा टॉप) पर कब्जा करने के लिए भी भेजा गया। इस मिशन में, उन्होंने फिर से अपनी टुकड़ी का नेतृत्व किया और

भारी संघर्ष के बाद इस महत्वपूर्ण स्थान को भी दुश्मन से मुक्त कराया। इस अभियान के दौरान, उन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए अपने एक घायल साथी को बचाया और दुश्मन के कई बंकरों को नष्ट किया। कैप्टन विक्रम बत्रा के इस साहसिक कार्य और सर्वोच्च बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

उनका प्रसिद्ध नारा “यह दिल मांगे मोर” आज भी भारतीय सेना और देशवासियों के दिलों में गूंजता है। उनका अद्वितीय साहस और बलिदान भारतीय सेना की वीरता का प्रतीक है और हमेशा याद किया जाएगा।

इस तरह हम देखते हैं कि भारतीय सेना एवं उसके जवानों ने प्राणों की बाजी लगाकर घुसपैठियों के चिथड़े उड़ाकर, उनके द्वारा कब्जाई गई सभी चोटियों पुन; नियंत्रण पाया। एक बार फ़िर भारतीय सेना ने साबित कर दिया कि वह दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सेना है तथा वह दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब देकर उसका मान मर्दन कर सकती है, देश की रक्षा कर सकती है। हम यह जानते हैं कि भारत सुरक्षित हाथों में है तथा कारगिल की हुतात्माओं को हम नमन कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

 

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