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स्वाधीनता के सूर्योदय के लिये निर्णायक आँदोलन का उद्घोष

9 अगस्त : काॅकोरी काँड और भारत छोड़ो आँदोलन

भारत के स्वाधीनता आँदोलन 9 अगस्त वह ऐतिहासिक तिथि है जब स्वतंत्रता केलिये निर्णायक संघर्ष का उद्घोष हुआ था। इसलिए  इसे अगस्त क्रान्ति कहा जाता है। स्वाधिनता आँदोलन के इतिहास में यह नौ अगस्त की तिथि दो महत्वपूर्ण स्मृतियों से जुड़ी है। पहली तिथि 9 अगस्त 1925 है इसदिन क्राँतिकारी आँदोलन को गति देने केलिये काकोरी रेल्वे स्टेशन पर सरकारी खजाना लूटा गया था।

दूसरी तिथि 9 अगस्त 1942 है जब अहिसंक आँदोलन को निर्णायक स्वरूप देने के लिये अंग्रेजो भारत छोड़ो आँदोलन आरंभ हुआ था। इस आँदोलन का आव्हान गाँधी जी ने किया था पर एक रात पहले ही 8 अगस्त को गाँधी जी सहित सभी कांग्रेस नेता बंदी बना लिये गये थे इसलिए इस आँदोलन में अधिकांश भागीदारी जन सामान्य की थी। जन सामान्य की भागीदारी के कारण ही इस आँदोलन को अगस्त क्राँति नाम मिला।

क्राँतिकारी आँदोलन में सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगतसिंह सहित विभिन्न क्राँतिकारियो को फाँसी और जेल में डाल देने से भले सशस्त्र क्रांति का धारा में कुछ शिथिलता आई पर काकोरी काँड से पूरी अंग्रेज सरकार हिल गई थी। इसकी गूँज लंदन तक हुई थी। तब अंग्रेज सरकार ने दो काम किये। एक दो कुछ नागरिक अधिकार देना आरंभ किये और दूसरे अंग्रेज विरोधी क्राँतिकारियों के दमन का।

यह क्राँतिकारी आँदोलन का दबाव ही था कि अंग्रेजों ने कुछ तटस्थ लोंगो को विश्वास में लिया और नागरिक अधिकार देने का क्रम बनाया। इसके लिये लंदन से कुछ अध्ययन दल आये और आगे चलकर स्थानीय असेंबलियों के चुनाव हुये। काकोरी काँड के नायक चन्द्रशेखर आजाद थे। क्रांतिकारियों को धन की आवश्यकता थी। वे अंग्रेजों को भारत से बाहर करने के लिये निर्णायक लडाई छेड़ना चाहते थे। इसके लिये धन जुटाने के अनेक प्रयत्न हुये।

तभी पता चला कि ट्रेन से सरकारी खजाना जाने वाला था। कहने केलिये यह खजाना सरकारी था अंग्रेज यह पैसा लंदन से लेकर नहीं आये थे। यह भारतीयों का ही पैसा था। जो अंग्रेज ने बल पूर्वक वसूला था। क्रान्तिकारियों ने भारत की स्वतंत्रता केलिये सशस्त्र आँदोलन में इस पैसे को लगाने का संकल्प किया और पता लगाया कि यह पैसा कब और किस ट्रेन से ले जाया जायेगा। जिस ट्रेन से यह खजाना जाने वाला था वह आठ डाउन पैसेंजर थी।

इस खजाने को लूटने की योजना बनी इसमें सत्रह क्रान्तिकारियों की टोली ने हिस्सा लिया। चन्द्र शेखर आजाद के नेतृत्व में बनी इस योजना में रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, योगेशचन्द्र चटर्जी, प्रेमचन्द खन्ना, मुकुन्दीलाल, विष्णु शरण, सुरेश चन्द्र भट्टाचार्य,  रामकृष्ण खत्री, मन्मन्थनाथ गुप्त,  राजकुमार सिंह ठाकुर, रोशन सिंह,  राजेन्द्र लाहिड़ी, गोविन्द शरण, रामदुलारे त्रिवेदी,  रामनाथ पांडे,  शचीन्द्रनाथ सान्याल,  भूपेश सान्याल, प्रणवेशकुमार, ।

इसके चार जर्मनी निर्मित माउजर रिवाल्वर जुटाये गये। माउजर की खास बात यह होती है कि यदि इसके बट में लकड़ी का हैन्डिल लगा दिया जाये तो इसे बंदूक की तरह उपयोग किया जा सकता है। गाड़ी जैसे ही काकोरी से सहारनपुर के लिये रवाना हुई तो इसे चेन खींचकर रोका गया और ट्रेन पर धावा बोल दिया और खजाना लूट लिया। बाद में अंग्रेजों ने 40 क्रान्ति कारियों को बंदी बनाया गया। इनमें चार को फांसी बारह को उम्र कैद कालीपानी और बाकी को चार चार साल का कारावास का दंड मिला।

भारत छोड़ो आन्दोलन

9 अगस्त 1945 को भारत छोड़ो आंदोलन आरंभ हुआ। इस आँदोलन के पीछे अंग्रेजों द्वारा अपने उस आश्वासन से पीछे हट जाना था। अंग्रेजों ने द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ होने पर कांग्रेस से सहयोग माँगा और आश्वासन दिया कि वे भारत को स्वतंत्र कर देंगे। और इसकी प्रक्रिया तुरन्त आरंभ कर देंगे और युद्ध समाप्त होते ही भारत स्वतंत्र हो जायेगा। द्वितीय विश्व युद्ध 1939 में आरंभ हुआ था। इसे आरंभ होने को तीन वर्ष बीत गये थे पर भारत की स्वतंत्रता के लिये कोई प्रक्रिया आरंभ न हो सकी।

तब 4 जुलाई 1942 में काँग्रेस ने बैठक की और अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता केलिये प्रक्रिया आरंभ करने का स्मरण दिलाया पर कुछ नतीजा न निकला। 9 अगस्त 1942 से निर्णायक आँदोलन आरंभ करने का निर्णय हुआ। इसके लिये मुम्बई का पार्क तय हुआ। अब इस पार्क को अगस्त क्रांति मैदान का नाम दे दिया गया  है। यद्यपि 4 जुलाई 1942 को हुई इस महत्वपूर्ण बैठक में निर्णायक आँदोलन चलाने के निर्णय पर मतभेद थे कुछ नेता चाहते थे कि द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने तक प्रतीक्षा करना चाहिए।

इन नेताओं में चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य प्रमुख थे। जबकि पंडित जवाहरलाल लाल नेहरू और मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ने आँदोलन से पहले अंग्रेजों से बात करने का सुझाव दिया तो सरदार वल्लभभाई पटेल आदि नेता तीन साल बीत जाने पर भी कोई कदम न उठाने पर नाराज थे और तुरन्त आँदोलन छेड़ने के पक्ष में थे। अंततः अंग्रेजों को एक माह की अवधि दी गई और नौ अगस्त से आँदोलन करने का निर्णय हुआ ।बैठक में आँदोलन का विरोध कर रहे चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया ।

अंग्रेजों ने आँदोलन का नोटिश मिलने के बाद भी भारत की स्वतंत्रता केलिये कोई प्रक्रिया आरंभ नहीं की। उल्टे आँदोलन का दमन करने का निर्णय लिया और आँदोलन की तिथि नौ अगस्त से दो दिन पहले सात अगस्त से ही देश भर में गिरफ्तारियां शुरु कर दी। गांधी जी और अन्य प्रमुख नेता 8 अगस्त बंदी बना लिये गये। पर देश व्यापी गिरफ्तारियों के बाद भी आँदोलन न रुका और जन सामान्य तिरंगा हाथ में लेकर निकल पड़ा।

भारत का संभवतः कोई नगर और कस्बा न बचा जहाँ लोग हाथ में तिरंगा लेकर घर से न निकले। पुलिस ने पचास से अधिक स्थानों पर गोलियां चलाई जिसमें सैकड़ो लोग मारे गये। यह आँदोलन महीनों चला। अंततः विवश होकर नवम्बर 1942 में अंग्रेजों ने गाँधी जी चर्चा की और समझौता हुआ। गिरफ्तार लोग रिहा हुये। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में यह आँदोलन अंतिम और निर्णायक था। इस आँदोलन का भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और मुस्लिम लीग ने विरोध किया था। नमन उन हुतात्माओं को जिनके बलिदान सै हम स्वतंत्र हवा में श्वास ले रहे हैं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं टिप्पणीकार हैं।

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