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कबीर जयंती पर कवियों ने बांधा शमा

कबीर दास जयंती के शुभ अवसर पर ‘ सम्भवम् ‘ संस्था, आगरा ने एक संगोष्ठी और काव्य गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया, जिसमें देश भर के तमाम कवियों ने शिरकत की और अपने काव्य और विचार प्रस्तुत किए। युवा कवि विजय प्रकाश ने मां शारदे से कबीर बनने की विनती की और यह काव्य प्रस्तुत किया।
धैर्य धारणा के हित मन अधीर हो जाए .
वह कृपा करो मां यह मन कबीर हो जाए.

तो वहीं डॉ. दौलत राम शर्मा ने ईश्वर से यह प्रार्थना अपने गीत के जरिए की।

हमारी है मेरी बिगड़ी सवारेंगे मेरे प्रभु राम
मुझे भाव पर निश्चय ही उतारेंगे मेरे प्रभु राम।

सुखराज सिंह ने मुहब्बत की राहों के दर्द को कुछ यूँ शब्दों में उकेरा।

मुहब्बत की राहों पे, कैसे चला मैं,
मिरी जां ज़रा, लड़खड़ा कर तो देखो।

काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहीं सम्भवम् संस्था की अध्यक्षा वरिष्ठ साहित्यकार व शिक्षाविद् डॉ. शुभदा पाण्डेय ने आज के समय में कबीर के पुनः आह्वान की आवश्यकता बताते हुए यह काव्य प्रस्तुत किया।
‘तुम्हें हमेशा उनकी चिंता रही
जिन्हें मिलीं उपेक्षाऐं
जिनका अस्तित्व गुमनाम रहा, मगहर तुम यूँ ही नहीं गये,
आमी की आकुलता देखी नहीं गयी।

डॉ. कपिल कुमार ने कबीर की रचनाओं की मीमांसा करते हुए बताया कि उनकी रचनाएं कहीं सहज हैं, तो कहीं जटिल। कबीर ने हर वर्ग को ध्यान में रखते हुए दोहे रचे।

डॉ. सुमित कुमार पाण्डेय ने कबीर को एक बेहतरीन पत्रकार बताते हुए आज के पत्रकारों को उनसे पत्रकारिता के तेवर उधार लेने की सलाह दी। साथ ही उन्होंने कबीर दास जी को एक मँझे हुए मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक की संज्ञा देते हुए उनके दोहों की मीमांसा की।

ओम वार्ष्णेय जी ने दोहाकार को अपने दोहों से आयातित किया.
डा. राहुल कुमार ने भी कबीरदास जी के दोहों का पाठ किया।

समारोह की विशिष्ट अतिथि डा. मुक्ता ने कहा कि —-
तन्हा जिंदगी, तन्हा हर इंसान है.
हर इंसान यहाँ खुद से परेशान है.

पश्चिम बंगाल से डा. कल्पना सिंह ने भव्य रचना सुना कर स्तब्ध किया.
काव्य गोष्ठी का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. दौलत राम शर्मा ने किया।

इस अवसर पर आरती की विशेष उपस्थिति रही. मनोज अलीगढ़ी ने आरंभ में सबको अपनी शुभकामनायें दीं. सुधी ‌श्रोतागण ने करतल ध्वनि से सबका उत्साह बढाया.

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