छत्तीसगढ़ की परंपरा, आस्था और वैज्ञानिक चेतना का उत्सव जुड़वास
तुरमा-भाटापारा/ छत्तीसगढ़ अपनी लोक परंपराओं, तीज-त्योहारों और सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है। यहां हर त्योहार सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं होता, बल्कि सामाजिक समरसता, प्राकृतिक संतुलन और पारंपरिक ज्ञान का जीवंत प्रतीक होता है। ऐसी ही एक विशिष्ट परंपरा है – जुड़वास, जिसे विशेष रूप से आषाढ़ मास में मनाया जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार देवशयनी एकादशी के साथ ही चौमासे की शुरुआत हो जाती है। इस अवधि में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और धरती पर वर्षा ऋतु का आगमन होता है। इसी समय छत्तीसगढ़ अंचल के ग्रामीण अंचलों में ‘माता पहुंचनी’ और ‘जुड़वास’ पर्व की परंपरा जीवंत हो उठती है। यह पर्व विशेषकर शीतला माता की आराधना से जुड़ा हुआ है, जिन्हें रोग निवारण और शीतलता प्रदान करने वाली देवी माना जाता है।
जुड़वास पर्व का अर्थ है—जीवन की व्याधियों, मानसिक और शारीरिक तापों से मुक्ति पाकर एक सामूहिक शांति और ठंडक का अनुभव। इस अवसर पर ग्रामवासी परंपरागत रीति से हल्दी मिले पानी और नीम की डाली से स्नान करते हैं, जो प्रतीकात्मक रूप से शरीर और वातावरण की शुद्धि का कार्य करता है। यह केवल धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ी जनमानस की उस वैज्ञानिक सोच का उदाहरण है जो प्रकृति और स्वास्थ्य के मध्य गहरे संबंध को समझता है।
भाटापारा अंचल के ग्राम तुरमा में इस वर्ष जुड़वास पर्व अत्यंत श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया। ग्राम के बैगा मंसाराम निषाद के मार्गदर्शन में समस्त ग्रामीणों ने हल्दी-नीम स्नान किया, मां शीतला की पूजा की और एक स्वर में प्राणी मात्र की सुख-शांति की कामना की। इस अवसर पर ग्राम पंचायत की सरपंच श्रीमती लीला बाई मनहरे ने सामूहिक प्रसाद वितरण की परंपरा का शुभारंभ करते हुए खीर-पूड़ी का वितरण किया।
गांव के सभी समुदायों ने एक साथ बैठकर भोजन किया और लोक गीतों, भजन-कीर्तन और आपसी संवाद के माध्यम से अपने सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों को और अधिक मजबूत किया। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक था, बल्कि सामाजिक एकता, सहभागिता और लोक चेतना का सुंदर उदाहरण भी बना।
इस आयोजन में गांव के अनेक गणमान्य नागरिकों की सक्रिय भागीदारी रही। उपसरपंच जीवराखन यदु, जय मां महामाया युवा प्रभाग के संस्थापक तीजराम पाल, अध्यक्ष परस मनहरे, सचिव गोपाल निषाद, कोषाध्यक्ष बेदप्रकाश पाल, ग्राम विकास समिति की महिला प्रकोष्ठ अध्यक्ष कीर्ति बघेल, पंच श्रीमती शीला बाई पाल, और अनेक वरिष्ठजन एवं ग्रामीण जनों ने मिलकर इस पर्व को एक गौरवपूर्ण स्वरूप प्रदान किया।
हल्की रिमझिम बारिश ने इस आयोजन को और भी सौंदर्यपूर्ण बना दिया। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे प्रकृति स्वयं भी इस लोक पर्व में सम्मिलित होकर अपने आशीर्वाद की वर्षा कर रही हो।
आज जबकि अनेक लोग परंपराओं को अंधविश्वास का नाम देकर उन्हें नकारने का प्रयास करते हैं, ऐसे आयोजनों की विशेषता यह है कि वे हमें याद दिलाते हैं कि हमारी संस्कृति केवल आस्था पर आधारित नहीं है, बल्कि उसमें प्राकृतिक विज्ञान, स्वास्थ्य ज्ञान और सामूहिक जीवन शैली के सूत्र गहराई से जुड़े हुए हैं।
हल्दी एक प्रभावशाली एंटीबायोटिक है, नीम बहुगुणी औषधीय वृक्ष है – इनका उपयोग रोग निवारण के साथ-साथ वातावरण की शुद्धता के लिए भी किया जाता है। इस प्रकार जुड़वास पर्व केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि हमारे पूर्वजों की जीवनदर्शी सोच और प्राकृतिक विज्ञान से जुड़ी परंपराओं का प्रमाण है।
आज आवश्यकता है कि हम अपने इन तीज-त्योहारों को केवल परंपरा के रूप में न देखें, बल्कि उनके पीछे छिपे वैज्ञानिक कारणों और सामाजिक उद्देश्यों को भी समझें और अगली पीढ़ी को भी समझाएं।
प्रेषक
तीजराम पाल
शोधार्थी, ग्राम तुरमा