उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का सुप्रीम कोर्ट पर फिर हमला: “सर्वोच्च सत्ता संसद, संविधान के मालिक जनप्रतिनिधि”
देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक बार फिर भारत के संविधान में संसद और न्यायपालिका की भूमिका को लेकर बड़ा बयान दिया है। दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि “संसद सर्वोच्च है” और “जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि ही संविधान के वास्तविक मालिक हैं… उनके ऊपर कोई भी सत्ता नहीं हो सकती।”
धनखड़ ने पहले दिए अपने बयानों की आलोचना को खारिज करते हुए कहा, “संविधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों का हर शब्द राष्ट्रहित से प्रेरित होता है।” उन्होंने स्पष्ट रूप से सर्वोच्च न्यायालय के कुछ ऐतिहासिक निर्णयों पर सवाल उठाए, खासकर संविधान की प्रस्तावना को लेकर 1967 के ‘गोलकनाथ केस’ और 1973 के ‘केशवानंद भारती केस’ में आए विरोधाभासी निर्णयों को लेकर।
उन्होंने कहा, “कभी सुप्रीम कोर्ट कहती है कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है, तो कभी कहती है कि है… लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि संविधान का अंतिम स्वरूप चुने हुए जनप्रतिनिधि तय करेंगे। कोई भी संस्था उनके ऊपर नहीं हो सकती।”
आपातकाल के समय सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पर भी उन्होंने सवाल उठाए। उन्होंने बताया कि किस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने नौ हाई कोर्ट्स के फैसलों को पलटते हुए आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों को निलंबित करने को जायज़ ठहराया था। “यह भारतीय लोकतंत्र का सबसे अंधकारमय दौर था,” उन्होंने कहा।
अनुच्छेद 142 को बताया “परमाणु मिसाइल”
धनखड़ ने अनुच्छेद 142 के प्रयोग को लेकर भी तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि यह अनुच्छेद अब “लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24×7 उपलब्ध परमाणु मिसाइल” बन चुका है। यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट के उस हालिया निर्णय के बाद आई, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने की समय-सीमा तय की गई थी।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ और विवाद
कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने उपराष्ट्रपति की टिप्पणी को अनुचित बताया। उन्होंने कहा, “राष्ट्रपति ऐसे विषयों पर टिप्पणी नहीं करते, और यही परंपरा उपराष्ट्रपति को भी निभानी चाहिए।” साथ ही उन्होंने अनुच्छेद 142 के उपयोग को “पूर्ण न्याय” के लिए ज़रूरी बताया।
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे द्वारा सुप्रीम कोर्ट पर की गई टिप्पणी—कि “अब सब कुछ सुप्रीम कोर्ट से तय होना है, तो संसद और विधानसभाएं बंद कर देनी चाहिए”—भी विवादों में है। हालांकि बीजेपी ने इसे उनका “व्यक्तिगत बयान” बताया और खुद को इससे अलग कर लिया।
न्यायपालिका की अवमानना को लेकर दुबे के खिलाफ आपराधिक अवमानना की प्रक्रिया शुरू करने की मांग पर अटॉर्नी जनरल से अनुमति मांगी गई है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “संस्था पर रोज़ हमला होता है, पर हम इससे विचलित नहीं हैं।”
‘ज्यूडिशियल ओवररीच’ पर न्यायपालिका का पलटवार
इस विवाद के बीच, न्यायमूर्ति बीआर गवई, जो अगली बार मुख्य न्यायाधीश बनने वाले हैं, ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हुए कहा, “अब तो लोग चाहते हैं कि हम राष्ट्रपति को भी निर्देश दें… वैसे भी हम पर कार्यपालिका में हस्तक्षेप के आरोप लग रहे हैं।”
पूर्व न्यायाधीश अजय रस्तोगी ने ‘ज्यूडिशियल ओवररीच’ के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि अगर संसद को किसी निर्णय से असहमति है, तो उसे संविधान में संशोधन का अधिकार है।
इस पूरे विवाद ने देश में संविधान, संसद और न्यायपालिका की सीमाओं को लेकर नई बहस छेड़ दी है, जो आगे और तेज़ होने की संभावना है।
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