जम्मू-कश्मीर: 32 साल पुराने आतंकी हत्या के मामले में हिजबुल आतंकवादी को उम्रकैद की सजा
बांदीपोरा (जम्मू-कश्मीर): बांदीपोरा जिले की एक अदालत ने 32 साल पुराने हत्या के मामले में हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादी अब्दुल वहिद मीर को उम्रकैद की सजा सुनाई है। यह फैसला उस हत्याकांड में आया है जिसमें 7 दिसंबर 1993 को ओनागाम गांव के निवासी और कालीन बुनकर मोहम्मद शफी हाजम की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
तीन धाराओं में सजा
बांदीपोरा के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुशील सिंह ने अब्दुल वहिद मीर को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत उम्रकैद, धारा 201 के तहत 3 साल की कठोर कारावास और आर्म्स एक्ट की धारा 7/27 के तहत 7 साल की कठोर सजा सुनाई। सभी सजाएं एक साथ चलेंगी।
बंद केस दोबारा खुला
इस मामले को 1994 में पुलिस ने “अज्ञात” कहकर बंद कर दिया था, लेकिन पीड़ित परिवार के लगातार प्रयासों के बाद 2004 में दोबारा खोला गया।
प्रत्यक्षदर्शियों के बयान
मामले में कई गवाहों ने कोर्ट में गवाही दी कि मीर और एक अन्य आतंकवादी अली मोहम्मद ख्वाजा उर्फ खान, हाजम के घर आए और उन्हें उनकी स्कूटर सहित अपने साथ ले गए। इसके बाद मीर ने हाजम को गांव के कब्रिस्तान में ले जाकर माथे पर गोली मार दी। हत्या के बाद मीर ने शव को मिट्टी का तेल डालकर जलाने की कोशिश की, लेकिन ग्रामीणों ने हस्तक्षेप कर शव को बचा लिया।
डर का माहौल
गांव में पोस्टर लगाकर हाजम को “सूचक” बताया गया था और उसके परिवार को धमकी दी गई थी कि जो भी उनका साथ देगा, उसका भी वही हाल होगा। इससे परिवार लंबे समय तक खुलकर शोक भी नहीं मना सका।
एक आरोपी बरी, एक को दोषमुक्त किया गया
इस मामले में सह-आरोपी अली मोहम्मद ख्वाजा को कोर्ट ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष उसके खिलाफ आरोप सिद्ध नहीं कर सका।
विधिक सहायता और पीड़ित परिवार को मुआवज़ा
जम्मू-कश्मीर विधिक सेवा प्राधिकरण को अदालत ने निर्देश दिया कि पीड़ित के माता-पिता को 1 लाख रुपये का मुआवज़ा 2013 के पीड़ित मुआवजा योजना के तहत दिया जाए।
उम्र और पहले से हिरासत में रहने को लेकर मौत की सजा नहीं
जज ने माना कि अपराध जघन्य था और समाज की आत्मा को झकझोर देने वाला था। लेकिन आरोपी की उम्र (55 वर्ष) और लंबे समय से जेल में रहने को देखते हुए मृत्युदंड नहीं दिया गया। वह वर्तमान में केंद्रीय जेल आगरा में बंद है और वहीं से सजा जारी रहेगी। हालांकि, अंतिम मुहर जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख हाईकोर्ट की मंजूरी के बाद ही लगेगी।
एल-जी का पीड़ित परिवारों को न्याय का भरोसा
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा है कि पिछले 35 वर्षों में आतंकी हमलों में मारे गए लोगों के परिजन आगे आएं और पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाएं। सरकार उन्हें पूरी सुरक्षा और न्याय का भरोसा देगी। साथ ही, ऐसे परिवारों को सरकारी नौकरियों में राहत देने की भी योजना बनाई गई है, जिनके केस अभी तक लंबित थे।