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एस्क्लुसिव स्टोरी : जानिए भगवान जगन्नाथ के रथ का निर्माण कैसे किया जाता है?

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है, जिसे आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। इस दिन लकड़ी के रथ पर भगवान जगन्नाथ अपने निज गृह से बाहर आते हैं भक्तों को दर्शन देने के लिए। भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा की चर्चा तो सभी करते हैं परन्तु रथ निर्माण की प्रक्रिया की जानकारी लोगों तक नहीं पहुंच पाती।

दारु (लकड़ी) पूजन के लिए जाता हुआ पुजारियों का समूह

रथ निर्माण प्रक्रिया को जानने के लिए मैने जगन्नाथ पुरी निवासी प्रकाश कुमार बिस्वाल जी से सम्पर्क कर रथ निर्माण की पूरी प्रक्रिया की फ़ोटोग्राफ़ी करने कहा। उन्होंने बसंत पंचमी से लेकर आज तक पांच महीने की सतत फ़ोटोग्राफ़ी कर मुझ तक भेजी है, जिससे हम रथ निर्माण की प्रक्रिया जान सकें।

प्रति वर्ष पुरी में भगवान जगन्नाथ एवं उनके भाई बहन बदभद्र एवं सुभद्रा की रथ यात्रा निकाली जाती है। रथ यात्रा के विषय में लाईव टेलीकास्ट होता है परन्तु रथ निर्माण एवं उसे बनाने वाले परम्परागत कारीगरों के विषय में जानकारी कम ही मिलती है।
रथ यात्रा के तीन रथों का निर्माण होता है, जिस पर भगवान जगन्नाथ एवं उनके भाई बहन की सवारी निकलती है। इसके पीछे मान्यता है कि जो लोग मंदिर के भीतर आकर भगवान के दर्शन नहीं कर पाते, उनके लिए वर्ष में भगवान एक बार मंदिर से बाहर आकर उन्हें दर्शन देकर कृतार्थ करते हैं।

रथ के लिए चक्कों का निर्माण

भगवान जगन्नाथ के लिए सबसे बड़े रथ नंदीघोष का निर्माण किया जाता है, जिसकी ऊंचाई 45.6 फीट होती है, उसके पश्चात बलराम जी तालध्वज रथ 45 फीट ऊंचा एवं सुभद्रा जी का दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा तैयार होता है। इन रथों का परिमाप प्राचीन काल से तय है, इससे एक इंच कम ज्यादा नहीं बनाया जाता।

रथ निर्माण कार्य

रथ का निर्माण भगवान विश्वकर्मा के वंशज परम्परागत शिल्पकार महाराणा करते हैं, ये शिल्पकार उड़ीसा में प्राचीन काल से स्थापत्य एवं निर्माण कार्य करते हैं। कोणार्क के मंदिर का निर्माण करने वाले शिल्पकार विसु महाराणा का उल्लेख तेहरवीं शताब्दी में मिलता है, जिसमें कोर्णाक मंदिर निर्माण की योजना तैयार की एवं उसका निर्माण किया।

रथ में काष्ठ सिंह का निर्माण

रथ निर्माण के लिए ये शिल्पकार अपने पूर्वजों से प्राप्त ज्ञान एवं परिमाप का प्रयोग करते हैं। लकड़ी लाने से लेकर रथ के निर्माण तक की प्रक्रिया कई माह में सम्पन्न होती है। बसंत पंचमी की सरस्वती पूजा के पश्चात रथ निर्माण के लिए लकड़ी लाने का का कार्य प्रारंभ होता है।

रथ निर्माण

रथों के लिए लकड़ी की पहचान करने जगन्नाथ मंदिर की एक खास समिति का गठन किया जाता है। इन सभी रथों को नीम की पवित्र एवं परिपक्व काष्ठ यानी लकड़ियों से बनाये जाते है। जिसे दारु कहते हैं। इसके लिए नीम के स्वस्थ और शुभ पेड़ की पहचान की जाती है।

सूचिकारों द्वारा वस्त्रावरण का कार्य

पुरी से लगभग सौ किमी दूर नयागढ़ जिले के दसपल्ला जंगल से ही रथ निर्माण के लिए पेड़ चुने जाते हैं। सबसे पहले बाड़ा रौला ठकुराइन के मंदिर जाकर उनकी पूजा की जाती है, ये गांव की देवी हैं. पहला पेड़ काटने से पहले इस स्थान पर प्रकृति देव की पूजा एवं आराधना की जाती है तथा रथ निर्माण के लिए लकड़ी काटने की आज्ञा ली जाती है।

रथ निर्माण प्रक्रिया

रथ निर्माण के लिए वृक्ष चयन हेतु छोटी छोटी मान्यताओं एवं प्राचीन निर्देशों का ध्यान रखा जाता है। सभी वृक्षों के तनों के माप तय होता है। इन लकड़ियों को जंगल से काट छांट कर मंदिर के समीप निर्माण स्थल पर लाया जाता है, जहां बांस एवं नारियल के पत्तों से अस्थाई रुप से निर्माण परिसर तैयार किया जाता है। इसी परिसर में रथ के अलग अलग हिस्से तैयार किए जाते हैं। इस स्थान को रथखाल कहा जाता है।

चित्रकार की चित्रकला

अक्षय तृतीया को शुभ मुहूर्त में रथ निर्माण कार्य प्रारंभ होता है, इस दिन चंदन यात्रा भी प्रारंभ होती है। कटे हुए तनों को मंत्रोच्चार कर पंडित धोते हैं, पुष्पाहार अर्पित करते हैं, प्रमुख महाराणा तनों पर अक्षत श्रीफ़ल अर्पित करता है तथा इसके पश्चात वनयज्ञ सम्पन्न होता है, इसके पश्चात मंदिर के पुजारी चांदी की कुल्हाड़ी से वृक्ष को छीलने की रस्म पूरी करते हैं फ़िर रथ निर्माण कार्य प्रारंभ हो जाता है।

रथ खींचने वाला अश्वदल

भगवान विश्वकर्मा की आराधना के पश्चात रथ निर्माण का कार्य प्रमुख शिल्पकार के कुशल निर्देशन में प्रारंभ होता है। रथ निर्माण के लिए आज भी उसी प्रक्रिया का पालन किया जाता है जो सदियों पूर्व शिल्पकारों के पूर्वज करते थे। रथ निर्माण के लिए ये शिल्पकार अपने पूर्वजों से प्राप्त ज्ञान एवं परिमाप का प्रयोग करते हैं। लकड़ी लाने से लेकर रथ के निर्माण तक की प्रक्रिया कई माह में सम्पन्न होती है।

नंदी घोष रथ

रथ निर्माताओं को विश्वकर्मा सेवक कहा जाता है, रथ निर्माण एवं संयोजन के विभिन्न अंग होते हैं जिन्हें विभिन्न नामधारी शिल्पकार सम्पन्न करते हैं। गुणकार, लकड़ियों को छील कर काटकर रथ के उपयोग योग्य बनाते हैं। पहि महाराणा, पहीयों का निर्माण करते हैं। कमरकंट नायक (ओझा महाराणा) कील, पिन, बाकी लोहे की चीजें तैयार करता है।

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा को तैयार तीनो रथ

चंदाकार नामक शिल्पकार सभी हिस्सों को एकत्र कर उन्हें रथ में लगाने का काम करते हैं। रुपकार एवं मूर्तिकार रथ में लगाने के लिए मूर्तियों का निर्माण करते हैं। चित्रकार रथ को चित्रों से सजाने का काम करते हैं। सूचिकार/दर्जी सेवक रथ में लगने वाले कपड़ों का निर्माण करते हैं तथा रथ भोई शिल्पकारों की मदद करने का काम करते हैं, इनका मुखिया भोई सरदार कहलाता है।

आओ जरा नच लें जगन्नाथ पुरी में

इस तरह भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के लिए रथ निर्माण एक पूरी परियोजना है, जिसे प्रतिवर्ष सम्पन्न किया जाता है। इसके निर्माण में किसी एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक पूरे समूह का श्रम लगता है। इस वर्ष भी रथ यात्रा आयोजन कल हो रहा है, शिल्पकारों के श्रम से निर्मित रथ पर भगवान जगन्नाथ आरुढ़ होकर भक्तों को दर्शन देंगे।

फ़ोटो – प्रकाश बिसवाल

 

 

 

 

 

 

आलेख
ललित शर्मा

3 thoughts on “एस्क्लुसिव स्टोरी : जानिए भगवान जगन्नाथ के रथ का निर्माण कैसे किया जाता है?

  • July 13, 2018 at 16:22
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    जगन्नाथ यात्रा के अनूठे रथ निर्माण प्रक्रिया की अनूठी जानकारी व शानदार चित्रों ने आँखों देखा सा अनुभव करवाया है। बहुत बहुत आभार

  • July 13, 2018 at 18:38
    Permalink

    अगले महिने जा रहा हूँ ।

  • July 13, 2018 at 18:42
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    शानदार कवरेज। ललितजी दिल से साधुवाद।

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