भीड़ प्रबंधन में लापरवाही की कीमत : जश्न या जान

हम भारतीय उत्सवधर्मी हैं। हर अवसर, हर त्योहार को उत्साह के साथ मनाते हैं। जिसके चलते हम कई बार इतने उत्साहित हो जाते हैं कि वास्तविकता भूल जाते हैं। हमें लगता है कि आज नहीं तो कभी नहीं। इसी धारणा के चलते हम आज में इतना खो जाते हैं कि कल को खो बैठते हैं। या यूं कहूं कि हम किसी भी जश्न को आखरी जश्न की तरह मनाते हैं, मानो आज के बाद हमें कोई ऐसा अवसर नहीं मिलेगा, जिसे हम मना सकें। हर बार यही होता है और हम अपने कितने ही अपनों की जान से हाथ धो बैठते हैं।
आई.पी.एल. 2025 में आर.सी.बी की जीत के बाद चिन्नास्वामी स्टेडियम बेंगलुरु में आयोजित विजय परेड जिसमें कर्नाटक के मुख्यमंत्री सहित प्रदेश के तमाम उच्च अधिकारी मौजूद थे, में यही तो हुआ। कितने हैरान करने वाली बात है कि ना आयोजकों को पता है ना शामिल होने वाले दर्शकों को, की स्टेडियम की क्षमता क्या है और कितने दर्शकों को बुलाना है या कितनों को जाना चाहिए। परिणाम हम सभी के सामने है। अब आप खुद बताइए कि जरूरी क्या जान या जश्न ?
ऐसा नहीं है कि यह कोई पहली बार हुआ है। पर हम किसी भी घटना या दुर्घटना से केवल कुछ घंटों अथवा कुछ दिनों के लिए प्रभावित होते हैं और फिर भूल जाते हैं। आजादी के बाद से भगदड़ के कारण हुए बड़े हादसों को देखें तो अपुष्ट जानकारी के अनुसार 1954 में कुंभ मेला, इलाहाबाद में मौनी अमावस्या के दिन बेकाबू हाथी के कारण भगदड़ में लगभग 500 लोग मारे गए। जबकि 1986 में हरिद्वार कुंभ मेले में भीड़ प्रबंधन की कमी और संकरे रास्तों के कारण 200 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी।
11 मार्च 1986 को गठित राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने 1996 से भगदड़ की घटनाओं का व्यवस्थित डेटा संकलन शुरू किया, लेकिन उससे पहले की घटनाएँ समाचार रिपोर्टों और ऐतिहासिक अभिलेखों पर आधारित हैं। ऐसा माना जाता है कि 1947 से 2025 तक, अनुमानित 5,000 से अधिक लोग भगदड़ में अपनी जान गँवा चुके हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के डाटा के अनुसार 1996 से 2022 तक 3,935 भगदड़ की घटनाएँ दर्ज की गईं, जिनमें 3,074 लोगों की मृत्यु हुई। इनमें 70% पुरुष और 30% महिलाएँ थीं।
वर्ष 2005 में मंधरदेवी मंदिर, महाराष्ट्र में फिसलन भरी सीढ़ियों और भीड़ के दबाव के कारण 265, वर्ष 2008 में नैना देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन की अफवाह से मची भगदड़ में 145, वर्ष 2008 में ही चामुंडा देवी मंदिर, राजस्थान में बम की अफवाह के कारण 250, वर्ष 2010 में राम जानकी मंदिर, उत्तर प्रदेश मुफ्त भोजन और कपड़े वितरण के दौरान 63, वर्ष 2013 में रतनगढ़ मंदिर, मध्य प्रदेश में नवरात्रि के दौरान पुल टूटने की अफवाह से 115, वर्ष 2022 में वैष्णो देवी मंदिर, जम्मू-कश्मीर में संकरे प्रवेश द्वार पर भीड़ के कारण 12, वर्ष 2024 में हाथरस, उत्तर प्रदेश में भोले बाबा के सत्संग में 121 लोगों की मुत्यु हुई।
जबकि 2025 में अभी तक महाकुंभ मेला, प्रयागराज में 30, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर गलत घोषणा के कारण 18 और अब बेंगलुरु चिन्नास्वामी स्टेडियम में 10 से 11 लोगों की मृत्यु का समाचार है। इसके अतिरिक्त भी अनेक ऐसी दुर्घटनाएं भगदड़ के कारण हुई हैं जिसकी जानकारी आपके पास होगी या उपलब्ध स्त्रोतों से आपको मिल जाएगी।
अगर इस प्रकार की दुर्घटनाओं के कारणों पर विचार करें तो अनियंत्रित भीड़, घटना स्थल पर क्षमता से अधिक लोगों की उपस्थिति, संकरे रास्ते, अपर्याप्त प्रवेश-निकास मार्ग, अफवाह, प्रशासनिक प्रबंधन में समन्वय का अभाव, अस्थायी निर्माणों में आग और बिजली में खराबी आदि बड़े कारण हैं जो ऐसी दुर्घटनाओं को जन्म देते हैं। इसके अतिरिक्त एक सबसे बड़ा और दुखद कारण है इन परिस्थितियों के शिकार बने लोगों का खुद की जिम्मेदारियों को नजर-अंदाज करना।
ऐसे घटनाओं को रोकने के लिए समाज के हर पक्ष को अपना योगदान देना होगा। भीड़ प्रबंधन, सुव्यवस्थित निगरानी, पर्याप्त जन सुरक्षा प्रबंधन, आग-बिजली से सुरक्षा प्रबंधन और समुचित निकास मार्ग के साथ-साथ सुदृढ़ आपातकालीन व्यवस्था की जानी चाहिए। आजकल तो लाइव मॉनिटरिंग (सजीव निगरानी) और ए.आई. भी इसमें बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
पुलिस, जिला प्रशासन और अन्य एजेंसियों के बीच बेहतरीन तालमेल सुनिश्चित किया जाए। किसी भी बड़े आयोजन से पहले सुरक्षा ऑडिट के अलावा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के 2014 दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन होना चाहिए। लेकिन मुझे लगता है कि प्रशासनिक स्तर पर बैठे अधिकारियों और नेताओं से ज्यादा आम आदमी को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।
जन सामान्य को किसी भी आयोजन में भागीदार होने से पहले व्यक्तिगत जिम्मेदारी समझकर खुद का ध्यान रखना होगा। अपनी जान को किसी भी आयोजन के लिए जोखिम में डालना उचित नहीं है। भीड़-भाड़ से बचें, सफल आयोजन के लिए जारी किए गए निर्देशों का पालन करें, अपने साथ-साथ दूसरों की जान बचाने का प्रयास करें और हर परिस्थितियों में जागरूक रहें।
इतिहास की कोई भी भगदड़ की घटना हो उसमें सामाजिक और प्रशासनिक ढांचे, दोनों की कमियाँ उजागर होती रही हैं। 1954 के कुंभ मेला से लेकर 2025 के चिन्नास्वामी स्टेडियम की दुर्घटना तक, ये त्रासदियाँ हमें एक ही सबक देती हैं: रोकथाम के लिए पहले से तैयारी और समन्वय जरूरी है। सरकार, आयोजकों और नागरिकों को मिलकर काम करना होगा। NDMA के दिशानिर्देशों का प्रभावी कार्यान्वयन, प्रौद्योगिकी का उपयोग, और जागरूकता अभियान
इन घटनाओं को कम कर सकते हैं। यह समय है कि हम अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं को सुरक्षित और सम्मानजनक तरीके से मनाएँ, ताकि हर आयोजन आनंद का स्रोत बने, न कि त्रासदी का। हमें अपनी आदतों को यथार्थ को अनुसार बदलना होगा। इसलिए ‘इलाज से परहेज अच्छा’ के सिद्धांत को धारण करते हुए भगदड़ जैसी त्रासदियों को इतिहास का हिस्सा ना बनाएँ। स्मरण रखें, ‘जान है तो जहान है।‘