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हर प्रश्न का उत्तर और हर समस्या का समाधान देने वाला कालजयी ग्रंथ गीता

अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव आरंभ हो गया है। इस वर्ष एक दिसंबर को दुनिया के चालीस देशों में गीता जयंती का मुख्य आयोजन होगा। श्रीमद्भगवद्गीता कालजयी है और इतनी व्यापक भी कि आधुनिक विज्ञान से जीवन की हर समस्या के समाधान सूत्र इसमें मिलते हैं।

श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच का यह संवाद महाभारत युद्ध आरंभ होने के कुछ क्षण पहले हुआ था। वह स्थल कुरुक्षेत्र था, जो अब हरियाणा प्रदेश में है। इस संवाद की तिथि मार्गशीर्ष माह शुक्ल पक्ष की एकादशी थी। इस वर्ष यह तिथि 30 नवंबर को रात 9 बजकर 29 मिनट से आरंभ हो रही है और एक दिसंबर को शाम 7 बजकर 1 मिनट तक रहेगी। इसलिए गीता जयंती एक दिसंबर को है।

इस वर्ष गीता जयंती महोत्सव दुनिया के चालीस देशों में होगा और इसका समन्वय भारत सरकार का विदेश विभाग कर रहा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस वर्ष श्रीमद्भगवत्गीता की 5154वीं जयंती है। यद्यपि तिथि को लेकर कुछ विद्वानों में मतभेद हैं, लेकिन समुद्र में द्वारिका की खोज और कुरुक्षेत्र के उत्खनन से प्राप्त प्रमाण बताते हैं कि महाभारत की घटना ईसा से लगभग 3100 वर्ष पूर्व हुई मानी जाती है। इसके अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता का संदेश कम से कम पाँच हजार वर्ष पहले दिया था।

श्रीमद्भगवद्गीता में कुल सात सौ श्लोक हैं। इनमें धृतराष्ट्र द्वारा पूछा गया प्रश्न एक श्लोक है, संजय उवाच के बयालीस श्लोक, अर्जुन उवाच के चौरासी श्लोक तथा भगवान श्रीकृष्ण उवाच के पाँच सौ तिहत्तर श्लोक शामिल हैं। इन श्लोकों को उनके संदर्भ के अनुसार अठारह अध्यायों में विभाजित किया गया है। हर अध्याय का विषय विशिष्ट है, जिन्हें “योग” नाम दिया गया है।

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अर्जुन के मन में उत्पन्न विषाद से प्रश्न उपजे थे, इसलिए पहले अध्याय को ‘विषाद योग’ कहा गया है। इसके बाद क्रमशः सांख्य योग, कर्म योग, कर्म ज्ञान योग, कर्म संन्यास योग, आत्मसंयम योग (अर्थात ध्यान योग), ज्ञान विज्ञान योग, अक्षर ब्रह्म योग, राजगुह्य योग, विभूति योग, विश्वरूप विराट योग, भक्ति योग, क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग, गुणत्रय विभाग योग, पुरुषोत्तम योग, दैवासुर संपद्विभाग योग, श्रद्धात्रय विभाग योग और मोक्ष संन्यास योग में प्रत्येक विषय का विस्तार मिलता है।

श्रीमद्भगवद्गीता एक कालजयी ग्रंथ है। इसमें हर जिज्ञासा के समाधान सूत्र हैं। समय बदलने से चुनौतियाँ और समस्याएँ बदलती हैं, लेकिन उनके समाधान हेतु जो मार्गदर्शन चाहिए, वह इसमें स्थायी रूप से उपलब्ध है। जीवन की सार्थकता और सफलता व्यक्तित्व निर्माण में है। व्यक्ति ही परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व की नींव है। यदि व्यक्ति के चरित्र में आदर्श, सत्य, पराक्रम, पुरुषार्थ, प्रज्ञा, दृढ़ता, समयानुकूल चिंतन और संकल्पशीलता हो, तो वह सदैव लोककल्याण के मार्ग पर चलता है।

भगवान श्रीकृष्ण ने आदर्श जीवनशैली और सही आचरण पर जोर दिया है। व्यक्ति का चिंतन संकुचित न हो और उसका चरित्र आदर्श हो तो उसकी, परिवार की और राष्ट्र की प्रगति कोई रोक नहीं सकता। श्रीकृष्ण ने इन गुणों के साथ आचरण को भी महत्वपूर्ण बताया है। व्यक्ति का आचरण ऐसा होना चाहिए कि वह स्वयं भी प्रतिष्ठित हो और अन्य लोग भी उसका अनुसरण करें। यह संतुलित विचार और राग-द्वेष से परे रहने की जीवन शैली है।

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श्रीमद्भगवद्गीता की एक विशेषता यह भी है कि इसमें दृश्य और अदृश्य दोनों प्रकार की समृद्धि के सूत्र मिलते हैं। मन, विवेक, चित्त, वृत्ति, स्वभाव से लेकर धरती, आकाश, जल, अग्नि और वायु की केंद्रित चेतना तक, सबका उल्लेख इसमें मिलता है।

यह ग्रंथ समस्या से पलायन नहीं, डटकर उसका सामना करने का संदेश देता है। अर्जुन युद्ध छोड़ना चाहता था, संन्यास लेना चाहता था, लेकिन श्रीकृष्ण ने उसे रोका। समस्या देखकर घबराना या भागना समाधान नहीं है। उसे समझकर संकल्प के साथ उसका समाधान करना ही जीवन की उन्नति है। श्रीकृष्ण के प्रत्येक वाक्य में यही संदेश है।

सामान्य जीवन के कर्म-कर्तव्य, परिश्रम, पुरुषार्थ, प्रकृति के रहस्य, आत्मा का अस्तित्व, ब्रह्म के द्वैत और अद्वैत स्वरूप तक सभी प्रश्नों का समाधान गीता में मिलता है। लक्ष्य प्राप्ति और समस्या समाधान के लिए वर्णित सूत्र हर काल में प्रासंगिक हैं।

संसार के अधिकतर देशों ने गीता का अपनी-अपनी भाषा में अनुवाद किया है। अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच के साथ-साथ अरबी, फारसी और उर्दू में भी अनुवाद उपलब्ध हैं। अमेरिका और ब्रिटेन के कुछ विश्वविद्यालयों में गीता को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। भारत में भी किसी अन्य ग्रंथ की तुलना में सबसे अधिक भाष्य गीता पर लिखे गए हैं। इनमें आध्यात्मिक, साहित्यिक, समाज सुधारक और राजनेताओं सभी वर्गों के मनीषियों के विचार शामिल हैं।

आदि शंकराचार्य जी के भाष्य में अद्वैत दर्शन मिलता है, रामानुजाचार्य जी के भाष्य में सगुण भक्ति का भाव है। ओशो ने ज्ञान और कर्म के आधार पर गीता को समझाया है। गांधीजी, लोकमान्य तिलक और विनोबा भावे ने भी गीता के संदेश को अपने जीवन में उतारा। आदिशंकराचार्य जी द्वारा धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा, रामानुजाचार्य जी द्वारा भक्ति का प्रकाश, गांधीजी और तिलक द्वारा स्वाधीनता संग्राम की दिशा, और विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में गीता का प्रभाव स्पष्ट दिखता है।

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संविधान की मूल प्रति के चौथे भाग में भी श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए चित्र अंकित है। यह भाग “राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत” से संबंधित है। संभवत: संविधान निर्माताओं ने नीति-नियमों में निष्पक्षता और कर्तव्य-बोध का संदेश देने के लिए इस चित्र का चयन किया होगा।

गीता व्यक्तित्व, समाज, राष्ट्र और संसार को सुखी बनाने के सूत्र प्रदान करती है। यह भारत में सबसे अधिक पढ़ा और वितरित किया जाने वाला ग्रंथ है। इसकी मान्यता न्यायालय और संविधान दोनों में है। लेकिन दुर्भाग्य से इसे पढ़ने और समझने वालों की संख्या कम है। जो समाज गीता पर हाथ रखकर शपथ लेता है और गीता वितरित करता है, यदि वह इसे समझे तो आज की कई समस्याएँ स्वतः समाप्त हो सकती हैं।

भारत सरकार अब इस दिशा में प्रयासरत है। गीता महोत्सव अब अंतरराष्ट्रीय रूप ले चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 नवंबर को कुरुक्षेत्र जाकर इसका शुभारंभ किया। इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय समाज में गीता को समझने और उसके अनुरूप आचरण करने की भावना मजबूत होगी।