मजबूत आर्थिक संकेतकों के बावजूद रुपया कमजोर: गिरावट के असली कारण

माह जनवरी 2025 में भारतीय रुपए का अंतरराष्ट्रीय बाजार में मूल्य 85.79 रुपया प्रति अमेरिकी डॉलर था। 3 दिसम्बर 2025 को रुपए का बाजार मूल्य लगभग 5 प्रतिशत घटकर 90.19 रुपया प्रति डॉलर हो गया। पिछले कुछ समय से अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए का बाजार मूल्य लगातार गिर रहा है और हाल ही के समय में रुपए के बाजार मूल्य में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज हुई है।
जबकि वित्तीय वर्ष 2025-26 की द्वितीय तिमाही में भारत की आर्थिक विकास दर पिछली 8 तिमाहियों में सबसे अधिक 8.2 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ी है तथा खुदरा मुद्रा स्फीति की दर 0.25 प्रतिशत के निचले स्तर पर आ गई है। भारत में वृहद अर्थव्यवस्था के विभिन्न मानदंडों के मजबूत बने रहने के बावजूद एशियाई देशों के बीच भारतीय रुपए की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में सबसे तेज गति से गिरी है।
दरअसल, अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपए की कीमत में गिरावट के मुख्य कारण वैश्विक स्तर पर आर्थिक जगत में घट रही कुछ घटनाओं में छुपे हुए हैं। अन्यथा भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत स्थिति में बनी हुई है। ट्रम्प प्रशासन द्वारा विभिन्न देशों से अमेरिका में होने वाले आयात पर टैरिफ की दरों में वृद्धि किए जाने से वैश्विक स्तर पर विदेश व्यापार पर दबाव बना हुआ है।
भारत से अमेरिका को होने वाले उत्पादों के निर्यात पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया गया है, जिसके चलते रेडीमेड गारमेंट्स, कृषि उत्पाद, लेदर उत्पाद, समुद्री जीवों से जुड़े उत्पाद, जेम्स और ज्वेलरी आदि का निर्यात प्रभावित हो रहा है। इससे भारत को अमेरिकी डॉलर का अंतरप्रवाह कम हो रहा है और व्यापार घाटा बढ़ रहा है।
पिछली तिमाही में भारत का कुल आयात 18,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर रहा, जबकि निर्यात केवल 10,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा। इस प्रकार 8,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का व्यापार घाटा दर्ज हुआ। अक्टूबर 2025 में भी भारत का विदेशी व्यापार घाटा 4,100 करोड़ अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड स्तर के ऊपर रहा। यह भारत के लिए अच्छी खबर नहीं है। इससे अमेरिकी डॉलर की मांग बढ़ी है और रुपए के मूल्य पर दबाव पड़ा है।
दूसरे, विदेशी संस्थागत निवेशक अपने पुराने निवेश पर लाभ अर्जित करने और अन्य उभरते बाजारों में निवेश बढ़ाने के उद्देश्य से भारतीय शेयर बाजार से निकासी कर रहे हैं। वर्ष 2025 में अब तक उन्होंने 1.48 लाख करोड़ रुपए (1,640 करोड़ अमेरिकी डॉलर) की निकासी की है। चूंकि यह निकासी डॉलर में होती है, इसलिए इससे डॉलर की मांग बढ़ती है और रुपए का मूल्य गिरता है।
सामान्यतः अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोई भी देश चाहता है कि उसकी मुद्रा मजबूत रहे, जिससे स्थिरता बनी रहे और विदेशी निवेश को प्रोत्साहन मिले। लेकिन यदि किसी मुद्रा का अवमूल्यन होता है तो आयात महंगे हो जाते हैं। हालांकि अवमूल्यन से निर्यातकों को लाभ होता है क्योंकि उन्हें प्रत्येक डॉलर के बदले अधिक रुपए प्राप्त होते हैं। इसी सिद्धांत के अनुसार, रुपए के गिरने से आयातित वस्तुएं महंगी हो सकती हैं और भारत में बाहरी मुद्रास्फीति का दबाव आ सकता है।
उदाहरण के लिए, यदि कच्चे तेल के आयात की कीमत रुपए के अवमूल्यन के कारण बढ़ती है, तो भारत में मुद्रास्फीति बढ़ेगी। वहीं, निर्यातकों को अधिक रुपए मिलने के कारण लाभ की संभावना बढ़ जाती है।
इन परिस्थितियों में आरबीआई आमतौर पर डॉलर की उपलब्धता बढ़ाकर बाजार में हस्तक्षेप करता है। मध्य सितम्बर 2025 तक आरबीआई 2,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर बाजार में उपलब्ध करा चुका था, लेकिन हाल में हस्तक्षेप नहीं किया गया। वस्तुतः वैश्विक व्यापारिक अस्थिरता के बीच भारतीय निर्यातकों को राहत देने के उद्देश्य से रुपए के अवमूल्यन को सहन किया जा रहा है।
भारत के पास 68,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर का मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार उपलब्ध है, जिससे जब भी आवश्यकता पड़े, बाजार में डॉलर की उपलब्धता बढ़ाई जा सकती है। लेकिन दीर्घकालिक समाधान यही है कि भारत आयात को कम करे और निर्यात बढ़ाए। भारत मुख्यतः कच्चे तेल और स्वर्ण का भारी आयात करता है।
कच्चे तेल के आयात को कम करने और ऊर्जा की जरूरत पूरी करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा बढ़ाना अनिवार्य है। केंद्र सरकार विंड पावर और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में लगातार प्रगति कर रही है। स्वर्ण के आयात को कम करने के लिए घरेलू स्तर पर उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता है।
उत्पादों की लागत कम कर भारत अपने उत्पादों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बना सकता है। इसके लिए देश में कच्चे माल के उत्पादन को बढ़ाना होगा और पूंजी की लागत कम करनी होगी। इसी उद्देश्य से 5 दिसम्बर 2025 को आरबीआई ने रेपो दर को 5.50 प्रतिशत से घटाकर 5.25 प्रतिशत किया है।
21 नवम्बर 2025 से चार श्रम संहिताएं लागू की गई हैं। इनसे 29 पुराने श्रम कानून सरल और कारगर बनाए गए हैं। इन संहिताओं को भारतीय श्रमबल के लिए सामाजिक सुरक्षा, सुरक्षित कार्य वातावरण और उचित वेतन सुनिश्चित करने की दिशा में बड़ा सुधार माना जा रहा है। इससे औद्योगिक विकास, उत्पादन लागत में कमी और वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ने की संभावना है।
भारत के विदेशी मुद्रा भुगतान संतुलन को मजबूत बनाने के लिए धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा देने की जरूरत है। इससे विदेशी पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी और विदेशी मुद्रा अर्जित होगी। अयोध्या, वाराणसी, वैष्णोदेवी, उज्जैन, प्रयागराज, गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ जैसे तीर्थस्थलों पर आधुनिक सुविधाएं विकसित की गई हैं, जिससे यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या बढ़ रही है।
कुल मिलाकर, वैश्विक परिस्थितियों के बीच कई देश अपनी मुद्रा का अवमूल्यन होने देते हैं और यह कदम अक्सर लंबी अवधि में देशहित में माना जाता है।
लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।

