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अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ोतरी से भारत की आत्मनिर्भरता सुदृढ़ होगी, खुलेंगी नई राह

आचार्य ललित मुनि

भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव ने नया मोड़ ले लिया है। 26 अगस्त, 2025 को ट्रम्प प्रशासन ने एक अधिसूचना जारी कर भारतीय उत्पादों पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा की, जो 27 अगस्त से प्रभावी हो गया। इसके साथ ही कई प्रमुख वस्तुओं पर अमेरिका का कुल शुल्क 50% तक पहुंच गया है, जिसे हाल के इतिहास में किसी भी साझेदार देश पर लगाए गए सबसे कठोर कदमों में से एक माना जा रहा है।

यह फैसला सीधे तौर पर भारत के रूस से कच्चे तेल आयात से जुड़ा बताया जा रहा है। अमेरिका का मानना है कि इस आयात से यूक्रेन संघर्ष के बीच रूस की अर्थव्यवस्था को अप्रत्यक्ष सहारा मिल रहा है। हालांकि भारतीय पक्ष का तर्क है कि यूरोप के पारंपरिक आपूर्तिकर्ताओं के हटने के बाद ही रूस से खरीद बढ़ी है।

इन टैरिफ का सबसे अधिक असर भारत के श्रम-प्रधान उद्योगों पर पड़ने की आशंका है। कपड़ा, चमड़ा, आभूषण और समुद्री उत्पाद जैसे क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होंगे। भारतीय कपड़ा उद्योग संघ ने इसे “बड़ा झटका” बताया है, जबकि व्यापार विश्लेषकों का अनुमान है कि यदि टैरिफ लंबे समय तक बने रहते हैं तो अमेरिका को होने वाले भारतीय निर्यातों में 40-50% तक की गिरावट आ सकती है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद में जनता को संबोधित करते हुए कहा कि भारत दबाव के आगे नहीं झुकेगा और “मेक इन इंडिया” पहल के माध्यम से आत्मनिर्भरता को और मजबूत करेगा। विदेश मंत्रालय ने भी इस कदम को “अनुचित और अनावश्यक” बताते हुए कड़ी आपत्ति दर्ज कराई।

सरकार ने उच्चस्तरीय बैठकों के जरिए आगे की रणनीति पर मंथन शुरू कर दिया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत अब अमेरिकी बाजार पर निर्भरता कम करने और व्यापारिक साझेदारों में विविधता लाने पर विचार कर रहा है। वहीं, घरेलू स्तर पर सोशल मीडिया पर अमेरिकी उत्पादों के बहिष्कार की मांग तेज हो गई है। उद्यमी भी भारतीय उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने की अपील कर रहे हैं।

इस विवाद के असर तुरंत बाजार पर भी दिखे। निफ्टी 1.02% गिरकर बंद हुआ, जबकि निवेशकों में अनिश्चितता का माहौल है। रक्षा क्षेत्र में भी असर दिखाई दिया है—भारत ने अमेरिकी हथियारों की खरीद स्थगित कर दी और रक्षा मंत्री की वाशिंगटन यात्रा रद्द कर दी।

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विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अपने हितों की रक्षा के लिए सख्त रुख अपनाएगा और यदि अमेरिका से कोई समझौता होता भी है तो वह भारत की ऊर्जा सुरक्षा को प्रभावित किए बिना ही होगा। यह विवाद न केवल भारत-अमेरिका संबंधों को नई परीक्षा में डाल रहा है, बल्कि वैश्विक व्यापार व्यवस्था की नाजुकता को भी उजागर कर रहा है।

भारत किस तरह टैरिफ के बाद मजबूत बनेगा

भारत के सामने यह संकट अवसर में बदलने की क्षमता रखता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत निम्न रणनीतियों के जरिए इन टैरिफ के असर को न्यूट्रलाइज कर सकता है:

  1. नए बाजारों की तलाश – दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और मध्य एशिया में भारत के लिए बड़े निर्यात अवसर मौजूद हैं। सरकार इन क्षेत्रों में व्यापार समझौतों को तेज करने पर जोर दे रही है।

  2. घरेलू खपत को बढ़ावा – “वोकल फॉर लोकल” और आत्मनिर्भर भारत जैसे अभियानों के माध्यम से भारतीय उद्योग घरेलू बाजार की मांग को पकड़ने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं।

  3. मूल्य संवर्धन और गुणवत्ता सुधार – कपड़ा, चमड़ा और आभूषण जैसे क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता और ब्रांडिंग पर फोकस कर भारत अपने उत्पादों को यूरोप और मध्य-पूर्व जैसे बाजारों में और आकर्षक बना सकता है।

  4. ऊर्जा सुरक्षा और कच्चे माल के स्रोतों का विविधीकरण – रूस से आयात जारी रखते हुए भारत ईरान, खाड़ी देशों और अफ्रीका से भी ऊर्जा साझेदारी मजबूत करेगा, ताकि किसी एक देश पर निर्भरता न रहे।

  5. तकनीकी निवेश और नवाचार – श्रम-प्रधान उद्योगों को स्मार्ट टेक्नोलॉजी और डिजिटलीकरण से जोड़कर उत्पादन लागत कम करने और प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने की योजना पर काम हो रहा है।

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आत्मनिर्भरता की परीक्षा और प्रतीक

ऐसे समय में जब देश गणेश चतुर्थी की तैयारियों में व्यस्त है, कई लोग इस चुनौती को भारत की आर्थिक मजबूती और आत्मनिर्भरता की एक प्रतीकात्मक परीक्षा के रूप में देख रहे हैं। यदि भारत इन झटकों को सहते हुए नए बाजारों में सफलतापूर्वक अपनी जगह बना लेता है, तो यह न केवल टैरिफ के प्रभाव को कम करेगा बल्कि भारत को और मजबूत, आत्मनिर्भर और वैश्विक स्तर पर निर्णायक खिलाड़ी के रूप में स्थापित करेगा।