हैदराबाद विश्वविद्यालय विवाद: “कांचा गचीबोवली की पूरी भूमि वन जैसी” — सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति की प्रारंभिक रिपोर्ट
कांचा गचीबोवली भूमि विवाद में एक नया मोड़ आया है, जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी (CEC) ने अपनी प्रारंभिक जांच में कहा कि यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद (UoH) को सौंपी गई और बाद में औद्योगीकरण के लिए चिन्हित की गई 2374 एकड़ भूमि “वन क्षेत्र के सभी लक्षणों” से युक्त प्रतीत होती है।
CEC ने यह निष्कर्ष क्षेत्र की प्राकृतिक स्थिति, हरियाली और 2009 में WWF द्वारा विश्वविद्यालय में किए गए जैवविविधता अध्ययन के आधार पर निकाला है। समिति ने गूगल अर्थ पर उस अध्ययन को मैप कर के भी विश्लेषण किया।
भूमि को गिरवी रखने और परियोजना की पारदर्शिता पर सवाल
रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया कि तेलंगाना स्टेट इंडस्ट्रियल इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉर्पोरेशन (TSIIC) ने इस विवादित भूमि को बीकन ट्रस्टीशिप लिमिटेड के पक्ष में गिरवी रखकर “TSIIC Bonds 2024-25” योजना के तहत 10,000 करोड़ रुपये के गैर-परिवर्तनीय बांड जारी किए हैं।
इस गिरवी में वर्तमान और भविष्य की संरचनाएं एवं विकास अधिकार भी शामिल हैं। समिति ने चिलुकाला कुंटा नामक क्षेत्र को भी इस भूमि में सम्मिलित बताते हुए चिंता जताई कि राज्य सरकार ने स्वामित्व, पर्यावरणीय मूल्य और संभावित वन क्षेत्र होने की स्थिति को नजरअंदाज कर यह कदम उठाया।
वन सर्वेक्षण की प्रतीक्षा
CEC की सिफारिश पर फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) को इस भूमि की वन घनत्व और पारिस्थितिक संरचना का सर्वेक्षण सौंपा गया है। FSI ने 10 अप्रैल को राज्य सरकार से भू-डाटा प्राप्त किया है और फिलहाल हैदराबाद में सर्वेक्षण कार्य जारी है। अंतिम रिपोर्ट आने में लगभग दो सप्ताह का समय लग सकता है।
राज्य सरकार की प्रक्रिया पर उठे सवाल
CEC ने टीएसआईआईसी की कार्रवाई को लेकर सवाल उठाए कि परियोजना रिपोर्ट तैयार किए बिना भूमि को साफ करने का कोई औचित्य नहीं था। समिति ने इसे नियत प्रक्रिया की अनदेखी और नीयत पर सवाल उठाने वाला कदम करार दिया।
विद्यार्थियों का विरोध और पर्यावरणीय चिंता
कांचा गचीबोवली की लगभग 400 एकड़ भूमि को लेकर हाल ही में तब विवाद छिड़ा जब तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने इसे आईटी और इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए नीलाम करने की प्रक्रिया शुरू की। यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद के विद्यार्थियों ने इसे शहर के फेफड़े जैसे क्षेत्रों को नष्ट करने वाला कदम बताया।
पश्चिमी हैदराबाद के इस इलाके में पहले से ही गगनचुंबी इमारतें और घनी आबादी है, और विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य सरकार को यह साबित करना होगा कि यह क्षेत्र पारिस्थितिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है, तभी इस भूमि के व्यावसायिक उपयोग को न्यायोचित ठहराया जा सकता है।