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हिरोशिमा की त्रासदी: विनाश, पुनर्निर्माण, और परमाणु निरस्त्रीकरण की यात्रा

आचार्य ललित मुनि

6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा पर हुआ परमाणु हमला मानव इतिहास की सबसे विनाशकारी घटनाओं में से एक है। इस हमले ने न केवल हिरोशिमा शहर को तबाह किया, बल्कि यह परमाणु हथियारों की भयावहता का प्रतीक बन गया। इसने द्वितीय विश्व युद्ध को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन साथ ही यह मानवता के लिए एक चेतावनी भी थी कि परमाणु हथियार कितने खतरनाक हो सकते हैं। 2025 में, जब हम इस त्रासदी के 80 वर्ष बाद की स्थिति का आकलन करते हैं, परमाणु हथियारों का खतरा अभी भी वैश्विक सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती बना हुआ है।

हिरोशिमा पर हमले के कारण

6 अगस्त 1945 को अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम चरण में जापान के शहर हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराया। यह कदम अमेरिका द्वारा युद्ध समाप्त करने की रणनीति का हिस्सा था। उस समय जापान मित्र राष्ट्रों के विरुद्ध युद्धरत था और उसने बिना शर्त आत्मसमर्पण की पॉट्सडम घोषणा को अस्वीकार कर दिया था। अमेरिका ने मैनहट्टन प्रोजेक्ट के तहत परमाणु बम विकसित किया था और राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने इसे युद्ध को शीघ्र समाप्त करने का साधन माना।

परमाणु बम गिराने के पीछे एक प्रमुख कारण यह भी था कि यदि जापान पर पारंपरिक तरीके से हमला किया जाता तो उसमें लाखों सैनिकों और नागरिकों की जान जा सकती थी। इसके अतिरिक्त, अमेरिका सोवियत संघ को अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करना चाहता था क्योंकि शीत युद्ध का दौर शुरू हो रहा था।

हिरोशिमा को इसलिए चुना गया क्योंकि वह एक प्रमुख सैन्य और औद्योगिक केंद्र था और अब तक की बमबारी से अछूता था, जिससे बम के प्रभाव का सटीक आकलन संभव हो सका। इस हमले के बाद 9 अगस्त को नागासाकी पर दूसरा बम गिराया गया, जिसके परिणामस्वरूप जापान ने 15 अगस्त 1945 को आत्मसमर्पण कर दिया और युद्ध का अंत हुआ।

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हिरोशिमा पर हमले का प्रभाव

6 अगस्त 1945 को सुबह 8:15 बजे, अमेरिकी बी-29 बॉम्बर “एनोला गे” ने हिरोशिमा पर “लिटिल बॉय” नामक परमाणु बम गिराया। इस बम का विस्फोट 15 किलोटन टीएनटी के बराबर था, जिसने शहर के केंद्र में तापमान को सूर्य की सतह से भी अधिक कर दिया। विस्फोट ने शहर का लगभग आधा हिस्सा नष्ट कर दिया। कंक्रीट की इमारतें वाष्पित हो गईं, और लकड़ी की संरचनाएँ पूरी तरह जल गईं। विस्फोट के केंद्र से तीन किलोमीटर तक की दूरी पर गर्मी और झटके ने सब कुछ तबाह कर दिया। अनुमानित 80,000 लोग तुरंत मारे गए। कई लोग विस्फोट की गर्मी और दबाव से वाष्पित हो गए, जबकि अन्य गंभीर जलन और चोटों से मरे। हिरोशिमा की नदियाँ और जल स्रोत विकिरण से दूषित हो गए, जिसने पर्यावरण को लंबे समय तक प्रभावित किया।

हिरोशिमा के बचे हुए लोग, जिन्हें “हिबाकुशा” कहा जाता है, ने विकिरण के दीर्घकालिक प्रभावों का सामना किया।  विकिरण के कारण कैंसर और ल्यूकेमिया के मामले बढ़ गए। विशेष रूप से, बच्चों और युवाओं में ल्यूकेमिया की दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। विकिरण ने डीएनए में उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) का कारण बना, जिसके परिणामस्वरूप भविष्य की पीढ़ियों में स्वास्थ्य समस्याएँ देखी गईं। हिबाकुशा को पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD), अवसाद और सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा। उन्हें अक्सर “दूषित” माना गया, जिसने उनकी सामाजिक स्थिति को प्रभावित किया।

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सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

हिरोशिमा का पुनर्निर्माण एक लंबी और कठिन प्रक्रिया थी। युद्ध के बाद, शहर को शांति और सौहार्द के प्रतीक के रूप में पुनर्जनन किया गया। हिरोशिमा शांति स्मारक पार्क और जेनबाकु डोम जैसे प्रतीकों ने शांति और परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए वैश्विक आंदोलनों को प्रेरित किया। सादाको सासाकी की कहानी, जिन्होंने कागजी क्रेन बनाकर शांति का संदेश दिया, विश्व स्तर पर प्रसिद्ध हुई। हिरोशिमा और नागासाकी के हमलों ने जापान के सम्राट हिरोहितो को 15 अगस्त 1945 को आत्मसमर्पण की घोषणा करने के लिए मजबूर किया, जिसने द्वितीय विश्व युद्ध को समाप्त किया। इसने परमाणु युग की शुरुआत की और वैश्विक स्तर पर परमाणु हथियारों के खिलाफ जागरूकता बढ़ाई।

वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में परमाणु हथियारों का खतरा

2024 के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया में लगभग 12,119 परमाणु हथियार हैं, जिनमें से 3,880 सक्रिय रूप से तैनात हैं। नौ देशों—रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम, पाकिस्तान, भारत, इज़राइल और उत्तर कोरिया—के पास ये हथियार हैं। रूस और अमेरिका के पास कुल हथियारों का 87% हिस्सा है। शीत युद्ध के चरम (70,300 हथियार) की तुलना में परमाणु हथियारों की संख्या घटी है, लेकिन कमी की गति धीमी हो गई है। रूस और अमेरिका अपने परमाणु हथियारों को आधुनिक बना रहे हैं, जिसमें नई डिलीवरी सिस्टम और अधिक सटीक हथियार शामिल हैं। चीन अपने परमाणु आर्सनल का विस्तार कर रहा है। सक्रिय रूप से तैनात हथियारों की संख्या बढ़ रही है, जो वैश्विक सुरक्षा के लिए चिंता का विषय है।

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खतरे और चुनौतियाँ

रूस-यूक्रेन युद्ध ने परमाणु युद्ध के जोखिम को बढ़ा दिया है। रूस ने अपने परमाणु बलों को “पूर्ण युद्ध तत्परता” में रखा है। उत्तर कोरिया और मध्य पूर्व जैसे क्षेत्रों में तनाव परमाणु हथियारों के उपयोग की संभावना को बढ़ा रहे हैं। हाइपरसोनिक मिसाइलें, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, और स्वचालित प्रणालियाँ परमाणु नियंत्रण को जटिल बना रही हैं।  2017 में अपनाई गई परमाणु हथियार निषेध संधि (TPNW) संधि परमाणु हथियारों के उपयोग, परीक्षण और फैलाव पर प्रतिबंध लगाती है। यह संधि रूस और अमेरिका के बीच यह संधि परमाणु हथियारों की संख्या को सीमित करती है। संयुक्त राष्ट्र और गैर-सरकारी संगठन, जैसे इंटरनेशनल कैंपेन टू एबॉलिश न्यूक्लियर वेपन्स (ICAN), निरस्त्रीकरण के लिए काम कर रहे हैं।

हिरोशिमा पर 6 अगस्त 1945 को हुआ परमाणु हमला मानव इतिहास की सबसे भीषण त्रासदियों में से एक है, जिसने लाखों लोगों की जान ली और शहर को पूरी तरह तबाह कर दिया। इस हमले के तत्काल और दीर्घकालिक प्रभावों—जैसे विकिरण जनित बीमारियाँ, सामाजिक भेदभाव, और पर्यावरणीय क्षति—ने न केवल हिरोशिमा, बल्कि विश्व भर में शांति और परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए आंदोलनों को प्रेरित किया। वैश्विक समुदाय को परमाणु निरस्त्रीकरण और शांति के लिए एकजुट होकर कार्य करना होगा, ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदी दोबारा न हो और एक सुरक्षित, परमाणु-मुक्त विश्व की स्थापना हो सके।