हिंदू सम्मेलन और भारत के सामाजिक पुनर्निर्माण की राह

भारतीय समाज की सबसे बड़ी शक्ति उसकी विविधता में निहित एकता है। हजारों वर्षों से विकसित हुई भारतीय सभ्यता और संस्कृति ने सनातन परंपरा के भीतर अनेक पंथों, जातियों, भाषाओं और जीवन शैलियों को आत्मसात करते हुए एक साझा सांस्कृतिक चेतना का निर्माण किया है। यही चेतना भारत को एक राष्ट्र के रूप में जोड़ती रही है।
परंतु आधुनिक काल में सामाजिक विभाजन, जातिगत भेदभाव, उपभोक्तावादी सोच और विदेशी प्रभावों ने इस ऐतिहासिक एकता को कई बार चुनौती दी है। ऐसे समय में हिंदू सम्मेलन सामाजिक पुनर्जागरण के एक महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में उभरकर सामने आए हैं।
हिंदू सम्मेलन केवल धार्मिक आयोजन नहीं हैं। वे हिंदू समाज को संगठित करने के साथ-साथ सामाजिक समरसता, समानता और सद्भाव को व्यवहार में उतारने का प्रयास हैं। इन सम्मेलनों में जाति, वर्ग और क्षेत्र के भेद से ऊपर उठकर समाज को जोड़ने की भावना दिखाई देती है। यही कारण है कि आज ये सम्मेलन सामाजिक परिवर्तन के प्रभावी मंच बनते जा रहे हैं।
हिंदू सम्मेलनों की परंपरा भारत में नई नहीं है। प्राचीन काल से ही कुंभ मेले, धर्म संसदें और संत सम्मेलनों ने भारतीय समाज को वैचारिक और सांस्कृतिक रूप से एकजुट रखने का कार्य किया है। आधुनिक काल में इस परंपरा को संगठित स्वरूप देने का कार्य विश्व हिंदू परिषद ने किया। 1964 में स्थापित विहिप का उद्देश्य हिंदू समाज को संगठित करना और सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध चेतना जागृत करना रहा है।
1979 के प्रयागराज कुंभ में आयोजित द्वितीय विश्व हिंदू सम्मेलन में संतों द्वारा छुआछूत को पाप घोषित किया जाना सामाजिक समरसता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जाता है। यह घोषणा केवल शब्दों तक सीमित नहीं रही, बल्कि समाज में व्यवहारिक परिवर्तन की प्रेरणा बनी।
इसी क्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सामाजिक समरसता को अपने कार्य का मूल आधार बनाया। संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार से लेकर वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत तक, संघ नेतृत्व यह मानता रहा है कि हिंदू समाज की वास्तविक शक्ति उसकी एकता और सामाजिक समभाव में निहित है।
वर्तमान समय में हिंदू सम्मेलनों का विस्तार अभूतपूर्व है। विशेष रूप से आरएसएस के शताब्दी वर्ष के अवसर पर वर्ष 2025 में देशभर में एक लाख से अधिक स्थानों पर हिंदू सम्मेलन आयोजित किए जा रहे हैं। इनमें ग्रामीण क्षेत्रों के लगभग 58 हजार मंडल और शहरी क्षेत्रों की 44 हजार से अधिक बस्तियां शामिल हैं। यह विस्तार अपने आप में इस बात का संकेत है कि समाज के भीतर एकजुट होने की आकांक्षा कितनी गहरी है।
इन सम्मेलनों का केंद्रीय उद्देश्य पंच परिवर्तन की अवधारणा को समाज में स्थापित करना है। इसमें सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी भावना का जागरण और नागरिक कर्तव्यों का बोध शामिल है। भारत माता पूजन, सामूहिक हनुमान चालीसा पाठ, विचार गोष्ठियां और विशेष रूप से समरस भोज जैसे आयोजन इन सम्मेलनों की पहचान बनते जा रहे हैं। समरस भोज में विभिन्न जातियों और वर्गों के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं, जो सदियों पुराने भेदभाव को तोड़ने का सशक्त और व्यावहारिक प्रयास है।
इन आयोजनों का प्रभाव केवल धार्मिक या सांस्कृतिक क्षेत्र तक सीमित नहीं है। सामाजिक स्तर पर इसके बहुआयामी परिणाम दिखाई दे रहे हैं। जातिगत दीवारें धीरे-धीरे कमजोर हो रही हैं। युवा पीढ़ी में संस्कार, आत्मविश्वास और राष्ट्रभक्ति की भावना सुदृढ़ हो रही है। पर्यावरण संरक्षण और स्वदेशी जैसे विषयों पर समाज में नई चेतना विकसित हो रही है। साथ ही, इन सम्मेलनों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सामाजिक समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत है।
सरसंघचालक मोहन भागवत ने हैदराबाद में एक सम्मेलन के दौरान कहा था कि भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए हिंदू समाज का संगठित और समरस होना आवश्यक है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि राजनीति अक्सर समाज को विभाजित करती है, जबकि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आधार ही स्थायी एकता का निर्माण कर सकते हैं। इसी विचारधारा से प्रेरित होकर हिंदू सम्मेलन समाज को नेतृत्व, आत्मविश्वास और उत्तरदायित्व की भावना प्रदान कर रहे हैं।
कुल मिलाकर, भारत में आयोजित हो रहे हिंदू सम्मेलन सामाजिक समरसता के भाव को मजबूत करने में निर्णायक भूमिका निभाते दिख रहे हैं। ये आयोजन न केवल हिंदू समाज को संगठित कर रहे हैं, बल्कि पूरे भारतीय समाज को सांस्कृतिक एकता, सह-अस्तित्व और सद्भाव का संदेश दे रहे हैं।
इन सम्मेलनों के माध्यम से हिंदू एकता और सामाजिक समरसता का संदेश प्रभावी ढंग से समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुंचता है, तो भारत अधिक सशक्त, संतुलित और समन्वित राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ेगा। यही वह भारत होगा, जो प्राचीन ऋषि परंपरा की भावना “सर्वभूतहिते रताः” को आधुनिक संदर्भ में साकार करेगा। हिंदू सम्मेलन इस दिशा में एक मजबूत और दूरगामी कदम सिद्ध हो सकते हैं।
