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महर्षि दयानंद सरस्वती का हिन्दी भाषा की प्रसिद्धि में योगदान

आज हम विश्व हिन्दी दिवस मना रहे हैं, इस अवसर पर महर्षि दयानंद सरस्वती को याद कर रहा हूँ क्योंकि आज से डेढ सौ वर्ष पूर्व जब हिन्दी खड़ी बोली के नाम से जानी जाती थी तथा यह साहित्य की भाषा नहीं थी तब उन्होंने 1875 ईस्वीं में अपने प्रमुख ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश की रचना सरल हिन्दी में की थी, वे भविष्य दृष्टा होने के साथ युग दृष्टा भी थे, उन्होंने हिन्दी के उज्ज्वल भविष्य को अपने ज्ञान चक्षुओं से देख लिया था कि यह भाषा आगे चलकर भारत की भाषा बनने वाली है, आने वाला युग हिन्दी भाषा का होगा।

महर्षि दयानंद सरस्वती (1824-1883) ने हिन्दी भाषा की प्रतिष्ठा और लोकप्रियता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने हिन्दी को भारतीय समाज के पुनर्जागरण और सांस्कृतिक जागरूकता के माध्यम के रूप में देखा। उन्होंने संस्कृत भाषा के महत्व को स्वीकार करते हुए हिन्दी को आम जनमानस की भाषा के रूप में बढ़ावा दिया तथा हिन्दी को धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण के लिए एक सरल और सुलभ माध्यम बनाया।

महर्षि दयानंद ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘सत्यार्थ प्रकाश’ को सरल हिन्दी में लिखा, जिससे यह आम जनता तक आसानी से पहुंच सकी। ‘सत्यार्थ प्रकाश’ ने न केवल धार्मिक और सामाजिक सुधार के विचारों को लोकप्रिय बनाया, बल्कि हिन्दी को एक सशक्त अभिव्यक्ति का माध्यम भी बनाया। महर्षि दयानंद ने आर्य समाज की स्थापना की, जिसने हिन्दी को अपने प्रचार और शिक्षा का मुख्य माध्यम बनाया। आर्य समाज के माध्यम से हिन्दी को शिक्षा, प्रचार और विचारों के प्रसार में महत्वपूर्ण स्थान मिला।

महर्षि दयानंद ने हिन्दी को भारत की विविध भाषाओं और समुदायों के बीच सांस्कृतिक और सामाजिक एकता स्थापित करने का साधन माना। उन्होंने हिन्दी को भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और सामाजिक सुधार के लिए एक प्रभावशाली उपकरण के रूप में प्रस्तुत किया। हिन्दी भाषा वर्तमान में वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण और तेजी से बढ़ती भाषा है।

इसके साथ ही जब ब्रजभाषा एवं अवधि के साथ उर्दू का बोलबला था तब बाबू देवकीनंदन खत्री ने भी 1888 में अपने बहुचर्चित एवं लोकप्रिय उपन्यास चंद्रकांता की भाषा हिन्दी रखी तथा उसे हिन्दी में लिखा। यह पहला ऐसा हिन्दी उपन्यास था जिसे पढ़ने के लिए कई लोगों ने हिन्दी सीखना शुरू किया। इस उपन्यास ने मनोरंजन के माध्यम से हिन्दी भाषा को आम जनता के बीच अत्यधिक लोकप्रिय बनाया। बाबू देवकीनंदन खत्री के लेखन ने हिन्दी साहित्य को मनोरंजन और कल्पना का एक नया आयाम दिया।

वर्तमान में हम दृष्टिपात करते हैं तो हिन्दी विश्व की दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसे 60 करोड़ से अधिक लोग मातृभाषा के रूप में बोलते हैं, और लगभग 90 करोड़ लोग इसे दूसरी भाषा के रूप में समझते या बोलते हैं अगर प्रतिशत में देखें तो भारत की लगभग 43% आबादी हिन्दी को मातृभाषा मानती है, जबकि 60% से अधिक लोग इसे किसी न किसी रूप में समझते हैं। भारत में हिन्दी प्रमुख भाषा है, नेपाल, मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो जैसे देशों में हिन्दी बोलने वालों की बड़ी संख्या है। इसके अलावा, अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, और खाड़ी देशों में बसे भारतीय समुदाय के कारण हिन्दी का प्रभाव बढ़ रहा है।

विश्व की कुल जनसंख्या में लगभग 8% से 10% लोग हिन्दी बोलते हैं। यह इसे दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में दूसरे या तीसरे स्थान पर रखता है। हिन्दी को समझने वालों का प्रतिशत इससे अधिक है, क्योंकि भारत और अन्य देशों में हिन्दी बोलने वालों के अलावा कई लोग इसे दूसरी या तीसरी भाषा के रूप में भी समझते हैं। अनुमानतः 15% से 20% लोग हिन्दी को किसी न किसी रूप में समझ सकते हैं।

हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं में शामिल करने के लिए भारत सरकार प्रयासरत है। हिन्दी में संयुक्त राष्ट्र के कई दस्तावेजों का अनुवाद भी होता है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिन्दी में भाषण देने वाले नेताओं (जैसे भारत के प्रधानमंत्री) ने इसके महत्व को बढ़ाया है।

हिन्दी डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया पर तेजी से लोकप्रिय हो रही है। हिन्दी में कंटेंट बनाने और उपभोग करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। गूगल, यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर हिन्दी में उपयोगकर्ताओं की संख्या में वृद्धि हो रही है। यह ई-कॉमर्स और विज्ञापन उद्योग के लिए भी महत्वपूर्ण है।

हिन्दी साहित्य विश्व स्तर पर अपनी समृद्धता, विविधता और गहराई के लिए पहचाना जाता है। इसमें कविता, उपन्यास, नाटक, और आलोचना सहित साहित्य की सभी विधाएँ शामिल हैं। प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, रामधारी सिंह दिनकर जैसे महान साहित्यकारों का लेखन न केवल भारत में बल्कि विश्व के साहित्य प्रेमियों द्वारा सराहा जाता है। हिन्दी साहित्य का अनुवाद अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी, जापानी और अन्य भाषाओं में हो रहा है। इससे हिन्दी लेखकों की रचनाएँ विश्व साहित्य में स्थान पा रही हैं।

समकालीन हिन्दी लेखक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों और मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। ऑक्सफोर्ड, हार्वर्ड, कैम्ब्रिज, और टोक्यो जैसे विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय हिन्दी साहित्य को अपने पाठ्यक्रम में शामिल कर रहे हैं। साहित्य महोत्सव जैसे आयोजन हिन्दी साहित्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा दे रहे हैं।

हिन्दी फिल्मों, संगीत, और साहित्य के कारण इसका सांस्कृतिक प्रभाव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ा है। भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था के कारण हिन्दी की व्यावसायिक और आर्थिक प्रासंगिकता भी बढ़ रही है। अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भारत के हिन्दीभाषी उपभोक्ताओं तक पहुंचने के लिए हिन्दी का उपयोग कर रही हैं।

वर्तमान में हमें हिन्दी के सामने चुनौतियाँ भी दिखाई देती हैं क्योंकि आज भी बहुसंख्यक लोग हिन्दी भाषा को रोजगार की भाषा नहीं मानते, रोजगार की जब बात आती है तब अंग्रेजी प्रथम स्थान पर आ जाती है। क्योंकि उच्च तकनीकि शिक्षा का विषय हिन्दी न होकर अंग्रेजी ही है। हिन्दी विषय से शिक्षा प्राप्त करने वाले बाबू क्लर्क और निचले दर्जे के कर्मचारी बनते हैं तो अंग्रेजी में गिटपिट करने वाले उच्च स्तर के अधिकारी बनते हैं। अंग्रेजी बोलने वाले को अधिक पढा लिखा माना जाता है। इसलिए वैश्विक स्तर पर हिन्दी को अभी भी अंग्रेजी जैसे अंतरराष्ट्रीय भाषा के समान स्थान प्राप्त करने के लिए अधिक प्रयासों की आवश्यकता है।

हिन्दी भाषा वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान और प्रभाव को तेजी से बढ़ा रही है इसके मूल में महर्षि दयानंद सरस्वती की सोच एवं प्रयास ही है, जो आज यह फ़ल फ़ूल रही है, यह न केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित कर रही है, बल्कि विश्व स्तर पर संवाद और संपर्क का एक सशक्त माध्यम बन रही है। इसके व्यापक उपयोग और विकास के लिए सतत प्रयास आवश्यक हैं। हिन्दी को सरल, प्रासंगिक और तकनीकी भाषा के रूप में और अधिक विकसित करने की आवश्यकता है ताकि इसका उपयोग वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्रों में बढ़ सके।

One thought on “महर्षि दयानंद सरस्वती का हिन्दी भाषा की प्रसिद्धि में योगदान

  • January 10, 2025 at 09:52
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    बहुत सुंदर लेख लिखा. बधाई 🌹

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