बंगला भाषी प्रदेश में जन्मी हिन्दी पत्रकारिता : हिन्दी पत्रकारिता की यात्रा

पत्रकारिता सिर्फ़ दिन-प्रतिदिन की घटनाओं की जानकारी देने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह अपनी वैचारिक अभिव्यक्ति के माध्यम से देश और दुनिया के मानव-समाज को सुशिक्षित, सचेत और जाग्रत बनाए रखने का भी एक महत्वपूर्ण मंच है। आधुनिक युग में तकनीकी विकास के नवीन आविष्कारों से वर्तमान में पत्रकारिता का स्वरूप काफी बदल गया है। रेडियो, टेलीविजन, कम्प्यूटर और इंटरनेट के आगमन से सूचनाओं और समाचारों का प्रवाह काफी तेज हो गया है। इंटरनेट आधारित सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों से पारम्परिक पत्रकारिता की दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव आने लगे हैं। भारत में भाषायी पत्रकारिता का एक लम्बा दौर रहा है। हिन्दी पत्रकारिता अगले साल 2026 में 200 साल की हो जाएगी। आज हिन्दी पत्रकारिता दिवस की बधाइयों के साथ-साथ हमारी शुभकामना है कि उसकी यह विकास-यात्रा निरंतर चलती रहे।
चुनौतियों से भरा सफ़र
चुनौतियों से भरा सफ़र समय के प्रवाह में तरह-तरह की चुनौतियों से भरे सफ़र के 199 साल पूरे करने के बाद आज हिन्दी पत्रकारिता अपने 200वें पड़ाव की ओर बढ़ने लगी है। हमारे देश की पत्रकारिता के इतिहास में आज (30 मई) का दिन एक यादगार दिवस के रूप में दर्ज है। इसी दिन सन 1826 को देश के प्रथम हिन्दी समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन बंगाल की राजधानी कोलकाता से शुरू हुआ था। यह दिन हिन्दी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। ‘उदन्त मार्तण्ड’ प्रत्येक मंगलवार को छपने वाला साप्ताहिक अख़बार था।
भारत की विविधतापूर्ण सांस्कृतिक एकता का यह भी एक बड़ा उदाहरण है कि यहाँ हिन्दी पत्रकारिता की जन्म भूमि होने का गौरव बंग-भूमि अर्थात बांग्लाभाषी प्रदेश (बंगाल) को मिला। हिन्दी भाषी राज्य वर्तमान उत्तरप्रदेश के कानपुर से आए वकील पण्डित युगल किशोर शुक्ल ने वहाँ इसकी बुनियाद रखी। उन्होंने कोलकाता के कोलूटोला स्थित 37, अमरतल्ला लेन से ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन प्रारंभ किया। बंग-भूमि में जन्मी हिन्दी पत्रकारिता नये दौर में आज बड़ी तेजी से विकसित होती जा रही है।
नारद जयंती के दिन आया उदन्त मार्तण्ड यानी उगता हुआ सूरज
नारद जयंती के दिन आया उदन्त मार्तण्ड यानी उगता हुआ सूरज वह नारद जयंती का दिन था। हम भारतीय लोग अपने पौराणिक आख्यानों के अनुसार देवर्षि नारद को दुनिया का पहला पत्रकार मानते हैं, जो देवताओं और दानवों के बीच एक-दूसरे के समाचार पहुँचाया करते थे। इसीलिए शायद पण्डित शुक्ल ने नारद जयंती को शुभ अवसर मानकर उस दिन ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन प्रारंभ किया। इस शीर्षक का आशय उगते हुए सूर्य से है।
हालांकि तरह-तरह की कठिनाइयों, विशेष रूप से आर्थिक समस्याओं के कारण लगभग डेढ़ साल बाद इसका प्रकाशन बन्द हो गया, लेकिन देश के प्रथम हिन्दी अख़बार के रूप में ‘उदन्त मार्तण्ड’ का नाम इतिहास में अमिट अक्षरों में दर्ज हो गया। यह साप्ताहिक अख़बार था। इसका अंतिम अंक 4 दिसम्बर 1827 को प्रकाशित हुआ था। प्रथम अंक की 500 प्रतियाँ छपी थीं। कुल 79 अंक प्रकाशित हुए थे। वह हिन्दी भाषा के विकास का शैशव काल था, जिसकी गहरी छाप ‘उदन्त मार्तण्ड’ के अंकों में मिलती थी। भारतीय प्रिंट मीडिया के इतिहास की इस महत्वपूर्ण घटना को याद करने के लिए हर साल 30 मई को हिन्दी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है। सभी पाठकों और पत्रकार साथियों को हिन्दी पत्रकारिता दिवस की बधाई और शुभकामनाएँ। हिन्दी भाषा के विकास में ‘उदन्त मार्तण्ड’ की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन दिनों कोलकाता से अंग्रेजी, पारसी और बांग्ला में कई समाचार पत्र छपते थे। हिन्दी का कोई अख़बार नहीं था। ऐसे में पण्डित युगल किशोर मिश्र ने ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन प्रारंभ कर हिन्दी भाषियों की एक बड़ी ज़रूरत को पूरा करने का प्रयास किया। उन्होंने प्रवेशांक के सम्पादकीय में अपने इस मंतव्य को स्पष्ट कर दिया था।
पत्रकारिता और प्रिंटिंग टेक्नॉलॉजी
पत्रकारिता और प्रिंटिंग टेक्नॉलॉजी पत्रकारिता और प्रिंटिंग टेक्नॉलॉजी का एक-दूसरे के साथ अटूट रिश्ता है। इसलिए आज के दिन हमें देश और दुनिया में मुद्रण तकनीक की विकास यात्रा को भी ज़रूर याद करना चाहिए। पंद्रहवीं शताब्दी में यूरोप में मुद्रण तकनीक के विकास से मनुष्य को अपने विचारों को छपे हुए शब्दों में देखने और प्रकाशित करने का एक नया माध्यम मिल गया। कालांतर में यह तकनीक दुनिया के अन्य देशों में भी पहुँच गयी। इसके जरिए विभिन्न प्रकार की पुस्तकों के अलावा पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन का सिलसिला भी शुरू हो गया। वह दौर हैण्ड कम्पोजिंग का था। अलग-अलग भाषाओं की लिपियों के टाइप यानी अक्षर साँचे में ढलने लगे, जिन्हें पांडुलिपियों को देख कर कम्पोजिटर अपने हाथों से शब्दों के रूप में जमाया करते थे, जिन्हें गैली बनाकर, प्रूफ रीडिंग के बाद ट्रेडल मशीनों में छापा जाता था। बाद में सिलेंडर मशीनें भी आयीं।
बीसवीं सदी में कम्प्यूटरों के आने से छपाई कार्य बहुत आसान हो गया है। इक्कीसवीं सदी में तो कम्प्यूटर तकनीक का विकास और भी आगे पहुँच गया है। आधुनिक संचार क्रांति के इस दौर में अब तो लोग मोबाइल फोन या स्मार्ट फोन पर ही अपनी भावनाएँ स्वयं कम्पोज कर लेते हैं। इंटरनेट और उस पर आधारित सोशल मीडिया के विभिन्न तकनीकी माध्यमों से सूचनाओं, समाचारों और विचारों का आदान-प्रदान हथेली में रखे मोबाइल फोन के जरिए बड़ी सरलता से होने लगा है।
हैण्ड कम्पोजिंग वाले प्रिंटिंग प्रेस लगभग विलुप्त हो चुके हैं और ज़माना अब ऑफसेट प्रिंटिंग और कलर प्रिंटिंग का है। अब तो कम्प्यूटर आधारित छपाई की अत्याधुनिक मशीनें भी आ चुकी हैं। लेकिन हमें कुछ पल के लिए इतिहास के उस दौर की भी कल्पना ज़रूर करनी चाहिए, जब किसी पुस्तक या पत्र-पत्रिका की छपाई के लिए तकनीकी दृष्टि से कितनी दिक्कतें हुआ करती थीं! बहरहाल लगभग चार-पाँच शताब्दियों तक मनुष्य ने इन्हीं दिक्कतों के बीच ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, कला और संस्कृति से जुड़ी हजारों पुस्तकें लिखीं और छापीं, अख़बार भी निकाले। भारत में उस ज़माने की प्रिंटिंग टेक्नॉलॉजी के अनुरूप पहला प्रिंटिंग प्रेस पुर्तगालियों ने गोवा में सन 1556 में लगाया था। वहाँ सेंट पॉल कॉलेज में इसकी स्थापना की गयी थी। बताया जाता है कि इसका उपयोग ईसाई पादरियों द्वारा धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन के लिए किया जाता था। इसके ठीक 127 साल बाद 1684 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत में अपने कार्यालयीन उपयोग के लिए प्रिंटिंग प्रेस की शुरूआत की।
भारत का पहला अंग्रेजी अख़बार भी बंग -भूमि से
भारत का पहला अंग्रेजी अख़बार भी बंग-भूमि से यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि हिन्दी पत्रकारिता की जन्म भूमि कोलकाता से ही भारत का पहला समाचार पत्र अंग्रेजी भाषा में 29 जनवरी 1780 को प्रकाशित हुआ था। इसके सम्पादक और प्रकाशक थे जेम्स ऑगस्ट हिक्की। यह साप्ताहिक अख़बार द हिक्कीज गजट केलकेटा जर्नल एडवरटाइजर के नाम से छपता था। पत्रकारिता का मार्ग उस ज़माने में भी काँटों से भरा हुआ था। हिक्की साहब एक सजग पत्रकार थे। उन्होंने अपने अख़बार के शीर्षक के नीचे लिखवा रखा था– A Weekly Political and Commercial Paper, Open for all, but Influenced by none. (यह एक राजनीतिक और वाणिज्यिक साप्ताहिक पेपर है, जो सबके लिए खुला हुआ है, लेकिन किसी के भी प्रभाव में नहीं है)। लेकिन गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, ईस्ट इंडिया कम्पनी और अंग्रेज अधिकारियों की कारगुजारियों के ख़िलाफ़ खुलकर ख़बरें छापने के कारण उन्हें उनका कोपभाजन बनना पड़ा। यहाँ तक कि हेस्टिंग्स ने उन पर मानहानि का मुकदमा चलाया। हिक्की साहब को 9 माह की जेल हो गयी, लेकिन जेल में रहते हुए भी जब उन्होंने अख़बार छापना जारी रखा तो मुख्य न्यायाधीश के आदेश पर उनके प्रेस को सील कर दिया गया। हिक्कीज गज़ट का छपना बंद हो गया। बताया जाता है कि हिक्की साहब की खबरों का असर ब्रिटिश संसद पर भी हुआ। इन ख़बरों को गंभीरता से लेकर वारेन हेस्टिंग्स और मुख्य न्यायाधीश के ख़िलाफ़ पार्लियामेंट में महाभियोग लाया गया था।
वैसे कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि भारत में पहला अंग्रेजी समाचार पत्र ईस्ट इंडिया कम्पनी के पूर्व अधिकारी विलियम बॉल्ट्स ने वर्ष 1776 में शुरू किया था, जिसमें कम्पनी और ब्रिटिश सरकार की खबरें प्रकाशित की जाती थीं, शायद यह ईस्ट इंडिया कम्पनी का मुखपत्र रहा होगा, लेकिन वैचारिक रूप से भारत में पहला स्वतंत्र अंग्रेजी अख़बार प्रकाशित करने का श्रेय जेम्स ऑगस्ट हिक्की को दिया जाता है। वर्ष 1780 में इसके प्रकाशन के 46 साल बाद भारत में हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत ‘उदन्त मार्तण्ड’ के माध्यम से हुई। भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में उस दौर में देश की विभिन्न भाषाओं के कई समाचार पत्रों का उल्लेख मिलता है। राजा राम मोहन राय जैसे महान समाज सुधारक ने वर्ष 1819 में बांग्ला भाषा के प्रथम समाचार पत्र ‘संवाद कौमुदी’ का प्रकाशन प्रारंभ किया था।
भारत का पहला हिन्दी दैनिक छपा था 171 साल पहले
भारत का पहला हिन्दी दैनिक छपा था 171 साल पहले बंग-भूमि कोलकाता को हिन्दी के प्रथम साप्ताहिक (उदन्त मार्तण्ड) के अलावा भारत के प्रथम हिन्दी दैनिक के प्रकाशन का भी श्रेय मिलता है। यह दैनिक 171 साल पहले छपना शुरु हुआ था। उदन्त मार्तण्ड के प्रकाशन के 28 साल बाद वर्ष 1854 में दैनिक ‘समाचार सुधावर्षण’ की शुरूआत हुई, जो हिन्दी और बांग्ला भाषाओं में छपता था। इस द्विभाषी दैनिक के सम्पादक थे श्याम सुंदर सेन। वर्ष 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ‘समाचार सुधावर्षण’ ने भी राष्ट्रीय चेतना के विकास में अपनी अहम भूमिका निभाई। अख़बार ने आज़ादी के योद्धाओं का खुलकर समर्थन किया। फलस्वरूप सम्पादक श्याम सुंदर सेन को अंग्रेज हुकूमत की नाराजगी झेलनी पड़ी। उन पर राजद्रोह का आरोप लगाकर मुकदमा चलाया गया, लेकिन वे अदालत से निर्दोष बरी हो गए। हमारे स्वतंत्रता संग्राम में हिन्दी सहित विभिन्न भाषायी समाचार पत्रों का ऐतिहासिक योगदान रहा है। भारतेंदु हरिश्चन्द्र, लोकमान्य पण्डित बालगंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, पण्डित जवाहरलाल नेहरू, गणेश शंकर विद्यार्थी और पण्डित माखन लाल चतुर्वेदी जैसे अनेक दिग्गज सेनानियों ने समाचार पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन और सम्पादन के जरिए जनता में विदेशी दासता के ख़िलाफ़ लड़ने का हौसला जगाया।
छत्तीसगढ़ में 125 साल पुरानी है पत्रकारिता की परम्परा
छत्तीसगढ़ में 125 साल पुरानी है पत्रकारिता की परम्परा छत्तीसगढ़ भी इससे अछूता नहीं था। यहाँ हिन्दी पत्रकारिता की परम्परा 125 साल पुरानी है, जो निरन्तर विकसित हो रही है। संसाधनों की दृष्टि से उस ज़माने में यह बेहद पिछड़ा इलाका था, लेकिन इसके बावज़ूद चुनौतियों का सामना करते हुए जनवरी 1900 में इस अंचल के प्रथम समाचार पत्र ‘छत्तीसगढ़-मित्र’ का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। दिग्गज साहित्यकार और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पण्डित माधवराव सप्रे इसके सम्पादक और रामराव चिंचोलकर उनके सहयोगी थे। प्रकाशक थे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पण्डित वामन राव लाखे। यह समाचार पत्र रायपुर से छपता और पेंड्रा से प्रकाशित होता था। सप्रे जी उन दिनों पेंड्रा में वहाँ के राजकुमार के अंग्रेजी शिक्षक थे। वह पेंड्रा से ही इस पत्रिका का सम्पादन करते थे। उनकी लिखी कहानी ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ को हिन्दी की पहली मौलिक कहानी माना जाता है। उन्होंने ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ के माध्यम से सामाजिक सुधारों से जुड़े विषयों के साथ-साथ छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय चेतना के विकास में भी अपना उल्लेखनीय योगदान दिया। लेकिन आर्थिक समस्याओं के कारण ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ का प्रकाशन तीन साल बाद दिसम्बर 1902 में बंद करना पड़ गया। देश 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हुआ। गुलामी के दिनों में आज़ादी की लड़ाई में भारतीय पत्रकारिता भी एक मिशन भावना से अपना योगदान दे रही थी। आज़ादी के बाद उसकी यह भूमिका और भी चुनौतीपूर्ण हो गयी है। उसे एक तरफ स्वतंत्र भारत की जन भावनाओं को, जनता की आशाओं, आकांक्षाओं और समस्याओं को स्वर देना है तो दूसरी तरफ एक आज़ाद मुल्क की विकास यात्रा की उपलब्धियों को भी जनता तक पहुँचाना है। हिन्दी पत्रकारिता भी अपनी इस दोहरी जिम्मेदारी का बख़ूबी निर्वहन कर रही है। अत्याधुनिक संचार सुविधाओं से अब छत्तीसगढ़ सहित देश के सभी राज्यों में जिला मुख्यालयों और तहसील मुख्यालयों से भी समाचार पत्र प्रकाशित होने लगे हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन केंद्रों के अलावा कई प्राइवेट टेलीविजन न्यूज चैनल भी पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना योगदान दे रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में पण्डित माधव राव सप्रे द्वारा 124 साल पहले विकसित हिन्दी पत्रकारिता की गौरवशाली परम्परा को बाद के दशकों में दिग्गज लेखक, पत्रकार हुए, जिन्होंने सप्रे जी द्वारा विकसित हिन्दी पत्रकारिता की परम्परा को अपने चिन्तन, मनन, लेखन और परिश्रम से विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के जरिए ख़ूब आगे बढ़ाया। इनमें रायपुर के पण्डित रविशंकर शुक्ल, पण्डित स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी, केशव प्रसाद वर्मा, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, हरि ठाकुर, मायाराम सुरजन, रमेश नैयर, गोविन्दलाल वोरा, मधुकर खेर, कुमार साहू, ललित सुरजन, प्रभाकर चौबे, राजनारायण मिश्र, अकलतरा (जिला -जांजगीर-चाम्पा) के बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल, राजनांदगांव के पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, गजानन माधव मुक्तिबोध और शरद कोठारी, जगदलपुर (बस्तर) के तुषार कांति बोस और लाला जगदलपुरी, जांजगीर के कुलदीप सहाय, बिलासपुर के यदुनन्दन प्रसाद श्रीवास्तव और पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी, दुर्ग के चन्दूलाल चन्द्राकर, रायगढ़ के किशोरी मोहन त्रिपाठी और गुरुदेव काश्यप सहित कई बड़े नाम शामिल हैं।
समाचार पत्रों का संग्रहालय
समाचार पत्रों का संग्रहालय हिन्दी सहित भारतीय पत्रकारिता के समग्र इतिहास को संरक्षित करने का एक ऐतिहासिक कार्य भोपाल में ‘माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय’ के जरिए किया गया है। वरिष्ठ पत्रकार विजयदत्त श्रीधर के प्रयासों से इसकी स्थापना लगभग 41 वर्ष पहले 19 जून 1984 को सप्रे जी की जयंती के दिन हुई थी। यह देश में समाचार पत्र-पत्रिकाओं का अपने किस्म का पहला संग्रहालय है, जहाँ विभिन्न भारतीय भाषाओं के समाचार पत्रों के प्रथम अंकों से लेकर उनकी अनेक दुर्लभ प्रतियों को सुव्यवस्थित रूप से प्रदर्शित किया गया है। छत्तीसगढ़ के प्रथम पत्रकार पण्डित माधवराव सप्रे की याद में समाचार पत्रों का यह संग्रहालय मध्यप्रदेश में सफलतापूर्वक संचालित हो रहा है। गंभीर पत्रकारिता के अध्येताओं और शोधकर्ताओं के लिए एक बड़े अध्ययन केन्द्र के रूप में आज पूरे देश में इस संग्रहालय की अपनी एक विशेष पहचान है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं ब्लॉगर हैं।