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छत्तीसगढ़ में पले बढ़े छत्तीस भाषाओं के महारथी

ज़िन्दगी के सफ़र में सिर्फ़ 34 साल की उम्र तक 36 भाषाओं का ज्ञाता बनना कोई मामूली बात नहीं है। संसार में अत्यधिक विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न ऐसे विद्वान गिने -चुने ही होते हैं । यहां तक कि ऐसी महान प्रतिभाओं के बारे में बहुत कम ही सुनने और पढ़ने को मिलता है। छत्तीसगढ़ की माटी में, रायपुर की धरती पर पले-बढ़े हरिनाथ डे भी दुनिया की उन्हीं भूली-बिसरी विलक्षण प्रतिभाओं में से थे। उनकी जीवन यात्रा सिर्फ 34 साल की रही, लेकिन जुनून की हद तक भाषाएँ सीखने की दीवानगी ने उन्हें विश्व के महानतम भाषाविदों की प्रथम पंक्ति में प्रतिष्ठित कर दिया। उन्होंने छत्तीस भाषाओं का ज्ञान अर्जित किया।

आज 12 अगस्त को उनका जन्म दिवस है। उन्हें विनम्र नमन। राजधानी रायपुर के बूढ़ापारा स्थित उनके पैतृक मकान के बाहर की दीवार पर संगमरमर की शिलापट्टिका में उन सभी 36 भाषाओं की सूची अंकित है, जिन्हें उन्होंने स्वाध्याय से सीखा था।। न सिर्फ सीखा, बल्कि उनमें से कई भाषाओं में लेख लिखे और अनुवाद कार्य भी किया। जिन देशों में वह कभी गए नहीं, वहाँ की भाषाओं में भी उन्होंने दक्षता हासिल की, जो वाकई आश्चर्यजनक है।

छत्तीसगढ़ प्रदेश को और उसकी राजधानी रायपुर को अनेक महान विभूतियों की जन्म और कर्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है। प्रसिद्ध साहित्यकार स्वर्गीय हरि ठाकुर ने अपने महाग्रंथ ‘छत्तीसगढ़ गौरव गाथा ‘ में इन विभूतियों की महान उपलब्धियों से सुसज्जित जीवन यात्राओं का विस्तृत वर्णन किया है।

स्वामी विवेकानंद जी ने अपने बाल्यकाल के दो स्वर्णिम वर्ष रायपुर में बिताए थे। उन्हीं की तरह विलक्षण प्रतिभा के धनी हरिनाथ डे ने भी अपनी किशोरावस्था के कुछ साल रायपुर में गुज़ारे। हरिनाथ के पिता श्री भूतनाथ डे रायपुर के प्रतिष्ठित वकील और म्युनिसिपल कमेटी के उपाध्यक्ष रह चुके थे। उन्हें अंग्रेज सरकार से राय बहादुर की पदवी मिली थी। वह स्थानीय बूढ़ापारा के निवासी थे। स्वामी विवेकानंद के पिता विश्वनाथ जी रायपुर प्रवास के दौरान कुछ महीने भूतनाथ डे के घर रुके थे। विश्वनाथ जी यहाँ स्वास्थ्य लाभ के लिए आए थे।

जन्म बंगाल में, प्राथमिक और मिडिल स्कूल की शिक्षा छत्तीसगढ़ में
वकील भूतनाथ डे के सुयोग्य सुपुत्र हरिनाथ का जन्म तो बंगाल के एक गाँव आरिया दाबा स्थित अपने ननिहाल में 12 अगस्त 1877 को हुआ था। वह पंद्रह अगस्त 1911 को मोतीझीरा की बीमारी से पीड़ित हुए और 30 अगस्त 1911 को उनका निधन हो गया। बालक हरिनाथ को अधिक से अधिक भाषाएं सीखने की प्रेरणा शायद अपनी माता एलोकेशी से मिली थी, जो हिन्दी, बांग्ला, मराठी और अंग्रेजी भाषाओं की जानकार थीं।

अपने पिता के साथ आए थे छत्तीसगढ़
हरिनाथ अपने वकील पिता राय बहादुर श्री भूतनाथ डे के पास छत्तीसगढ़ के रायपुर आने के बाद यहाँ उनकी प्राथमिक शिक्षा मिशन स्कूल में और मिडिल स्कूल की पढ़ाई गवर्नमेंट हाई स्कूल में हुई। इस हाई स्कूल को हम आज स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जयनारायण पांडेय के नाम पर प्रोफेसर जे.एन.पांडेय शासकीय बहुउद्देश्यीय उच्चतर माध्यमिक शाला के रूप में जानते हैं । रायपुर में हरिनाथ ने मिडिल स्कूल की शिक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। उन्हें छात्रवृत्ति भी मिली। हरि ठाकुर ने ‘छत्तीसगढ़ गौरवगाथा’ में उनके बारे में शामिल अपने आलेख में बताया है कि हरिनाथ यहाँ एक ईसाई संगठन के सम्पर्क में आए और उन्होंने बाइबल का अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद किया।

इसी दरम्यान उन्होंने लैटिन भाषा का भी ज्ञान प्राप्त कर लिया। उनकी गिनती इस भाषा के विद्वानों में होने लगी। रायपुर में मिडिल तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए हरिनाथ कलकत्ता चले गए, जहाँ सेंट जेवियर कॉलेज में दाख़िला लिया और वर्ष 1892 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से इंटरमीडिएट की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए। उन्होंने अंग्रेजी और लैटिन भाषाओं में प्रावीण्यता भी दिखाई। उस वर्ष कलकत्ता विश्वविद्यालय में इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने वाले वह इकलौते विद्यार्थी थे। उन्हें छात्रवृत्ति मिली।

लैटिन भाषा में प्रथम श्रेणी में एम .ए. स्वर्ण पदक से हुए सम्मानित
उन्होंने कलकत्ता के ही प्रेसिडेंसी कॉलेज में एडमिशन लिया और वर्ष 1896 में वहाँ परीक्षा उत्तीर्ण कर प्रथम श्रेणी में ग्रेजुएट हुए । उच्च शिक्षा के लिए केम्ब्रिज भेजने उनका चयन किया गया । वर्ष 1896 में ही हरिनाथ ने स्वाध्यायी छात्र के रूप में लैटिन भाषा में प्रथम श्रेणी में एम. ए.किया । इस उपलब्धि के लिए उन्हें स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया ।

इटैलियन कवि की रचनाओं पर शोध
वर्ष 1897 में उन्होंने इटैलियन कवि दांते की कविताओं पर शोध पत्र प्रस्तुत किया । हरिनाथ ने इंग्लैंड में भी पढ़ाई के दौरान अपनी अदभुत प्रतिभा का प्रदर्शन किया ।क्राइस्ट कॉलेज कैम्ब्रिज में अध्ययन करते हुए उन्होंने प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में ग्रीक भाषा में एम.ए.की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर ली ।

आई.सी.एस .में भी कामयाबी लेकिन उच्च प्रशासनिक पद अस्वीकार
उसी वर्ष उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस (आई .सी एस.) की परीक्षा में भी कामयाबी हासिल की, लेकिन ब्रिटिश सरकार के उच्च प्रशासनिक पद की पेशकश को उन्होंने स्वीकार नहीं किया। उन्हें कलकत्ता के प्रेसीडेन्सी कॉलेज में प्राध्यापक के पद पर नियुक्ति दी गयी, वहां से वर्ष 1905 में उन्होंने स्वाध्याय से संस्कृत, अरबी और ओडिया भाषाओं में परीक्षाएं उत्तीर्ण की। इस पर उन्हें तीन हजार रूपए का पुरस्कार मिला। सन 1906 में वह हुगली कॉलेज के प्राचार्य के पद पर नियुक्त हुए। प्राचार्य के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने स्वाध्याय से पाली भाषा में भी एम.ए. कर लिया।

कई भाषाओं में दक्षता
हिन्दी और बंगला के ज्ञाता तो वह थे ही, उन्होंने स्वाध्याय से पाली, संस्कृत, तिब्बती, अरबी, ओड़िया, भाषाओं के साथ -साथ ग्रीक, स्पेनिश, लैटिन तिब्बती, चीनी, हिब्रू, फारसी, रूसी, तुर्की, रुमानियन, रूसी, पोर्तुगीज, इटैलियन, स्पेनिश, एंग्लो-सेक्शन, जर्मन, फ्रेंच, डच आदि कई भाषाओं में भी दक्षता हासिल की और कई भाषाओं की साहित्यिक रचनाओं का अंग्रेजी, बांग्ला आदि भाषाओं में अनुवाद भी किया।

भाषाएं सीखने की दीवानगी
स्वर्गीय श्री हरि ठाकुर के अनुसार -हरिनाथ डे जितने बड़े भाषा शास्त्री थे, भाषाविद् थे, विभिन्न भाषाओं के साहित्य के जानकार थे, उतने ही बड़े चिन्तक और धुरंधर लेखक भी थे। हरिनाथ जी में भाषाएँ सीखने की दीवानगी थी। किसी भी भाषा को सीखने में उन्हें कुछ महीनों से अधिक समय नहीं लगता था । जिन भाषाओं को उन्होंने सीखा, उनके साहित्य का गहन अध्ययन भी उन्होंने किया। अपने संक्षिप्त जीवन काल में उन्होंने 50 से भी अधिक कृतियों का सफलतापूर्वक सृजन कर अपनी अदभुत लेखन क्षमता और दक्षता का परिचय दिया।

आनंद मठ और वंदेमातरम का लैटिन और अंग्रेजी में अनुवाद किया
महान भाषा शास्त्री हरिनाथ डे ने बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय के कालजयी बांग्ला उपन्यास ‘आनन्द मठ’ और उनकी लोकप्रिय कविता ‘वंदेमातरम’ का अंग्रेजी और लैटिन भाषाओं में अनुवाद किया था, जो वर्ष 1906 में प्रकाशित हुआ। पाणिनि और बुद्ध घोष पर उनकी व्याख्यात्मक समीक्षा भी वर्ष 1906 में छपी। उन्होंने अंग्रेजों द्वारा किए गए बौद्ध ग्रंथों के त्रुटिपूर्ण अनुवादों को जहाँ संशोधन सहित प्रस्तुत किया, वहीं महाकवि कालिदास के संस्कृत महाकाव्य ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ के दो खण्डों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार हैं।

One thought on “छत्तीसगढ़ में पले बढ़े छत्तीस भाषाओं के महारथी

  • August 13, 2024 at 23:46
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    सादर नमन वन्दन🙏🙏

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