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सामाजिक समरसता के अग्रदूत थे गुरु घासीदास

घनाराम साहू

भारत ही नहीं दुनिया के सभी समाजों में संस्कृति का मूल्यांकन केवल राजनैतिक सत्ता के हस्तांतरण प्रक्रिया से नहीं वरन सामाजिक मूल्य, आर्थिक व्यवस्था और आध्यात्मिक जागरण से होता है। भारतीय महाद्वीप प्राचीन काल से आध्यात्मिक जागरण का केंद्र रहा है जहां विभिन्न प्रकार के उपासना पद्धतियों का उद्भव एवं विकास हुआ।

इन सभी पद्धतियों को मुख्यतः 2 समूह में क्रमशः सगुण-साकार, सगुण-निराकार, निर्गुण-साकार एवं निर्गुण-निराकार में वर्गीकृत किया जाता है। इस वर्गीकरण को अवतारवाद और विकासवाद भी कह सकते हैं। कुछ विद्वान विकासवाद को उतारवाद भी कहते हैं। कपिल, कणाद, महावीर, बुद्ध, नानक, कबीर एवं गुरु घासीदास निर्गुण-साकार एवं निर्गुण-निराकार के महात्मा थे जिनमें सूक्ष्म भेद रहा है।

संत कबीर ने मनुष्य जीवन में पुरुषार्थ के लिए “प्रवृति और निवृति के मध्य बिंदु याने स्वस्थ रहनी के साथ गृहस्थ जीवन को श्रेष्ठ प्रतिपादित किया था”। अध्यात्म के इसी मार्ग को परिमार्जित स्वरूप में गुरु घासीदास ने आंदोलन का रूप दिया था। यहां आंदोलन का भावार्थ राजनीतिक कार्यों के लिए किए जाने वाले धरना, जुलूस, प्रदर्शन, हड़ताल से नहीं वरन मनुष्य के अन्तश्चेतना से है जो मस्तिष्क से संचालित होता है।

पूर्व के विद्वान मनुष्य के जीवन के क्रियाकलापों को मस्तिष्क द्वारा संचालित मन, वृति, बुद्धि और अहंकार की प्रतिक्रिया मानते थे लेकिन आधुनिक विद्वान इसमें चिति को भी जोड़ते हैं माने मनुष्य का जीवन मन, वृति, चिति, बुद्धि और अहंकार से व्यवस्थित होता है और इसका संपादन मानव मस्तिष्क ही करता है।

गुरु घासीदास का जन्म उस दौर में हुआ था जब छत्तीसगढ़ का समाज जात-पात और ऊंच-नीच में जकड़ रहा था तथा आर्थिक शोषण चरम की ओर था। गुरु के संदेश का प्रभाव कुछ जाति विशेष तक सीमित न रहकर सभी जातियों पर पड़ा और मानवीय संवेदना से ओतप्रोत बौद्धिक वर्ग को नया नेतृत्व मिल गया। सभी जातियों के कुछ लोग “सतनाम पंथ” के अनुयाई बने। गुरु घासीदास के जन्म के समय की कुछ घटनाएं समाजशास्त्रीय विश्लेषण योग्य हैं।

बालक घासीदास मंहगूदास एवं माता अमरौतिन के 5 वें संतान थे। माता आयु की अधिकता के कारण प्रसव पीड़ा को सहन न कर सकी और उसके शरीर से दूध नहीं उतरा तथा कुछ दिनों में मृत्यु हो गई। बालक घासीदास भूख से छटपटाने लगे तब करुणा साहू नामक नारी ने उसे गाय का दूध पिलाकर पालन-पोषण किया। इससे संबंधित कुछ अन्य लोककथाएं भी हैं। करुणा साहू के वंशी नामक पुत्र भी था जो बालक घासीदास के बाल सखा हुआ।

कहा जाता है कि गुरु घासीदास के आध्यात्मिक जागरण आंदोलन में बड़ी संख्या में साहू, यादव, मरार, लोहार सहित लगभग 75 जातियों के लोग जुड़े थे। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार “गुरु घासीदास सामाजिक समरसता के अग्रदूत थे और उन्होंने अनेक जातियों को एकरस बना दिया था”। गुरु घासीदास जयंती पर्व के पावन बेला में उनके श्री चरणों को नमन करते हुए गौरवशाली छत्तीसगढ़ के महान संत के अनुयायियों को शुभकामनाएं देता हूं।

संदर्भ

1-तपश्चर्या और आत्मचिंतन – डॉ बलदेव, जयप्रकाश मानस, रामशरण टंडन

2- गुरु घासीदास एवं उनका सतनाम पंथ- डॉ अनिल कुमार भतपहरी

 

लेखक लोक संस्कृति के जानकार एवं विषय विशेषज्ञ हैं।