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गुप्त नवरात्रि: आत्मसाधना और शक्ति उपासना का रहस्यमयी पर्व

आचार्य ललित मुनि

हिंदू धर्म में नवरात्रि केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि देवी शक्ति के नौ रूपों की आराधना का एक गहरा आध्यात्मिक अनुभव है। वर्ष में चार बार आने वाली नवरात्रियों में चैत्र और शारदीय नवरात्रि तो व्यापक रूप से प्रसिद्ध हैं, लेकिन दो अन्य नवरात्रियाँ, माघ और आषाढ़ की गुप्त नवरात्रियाँ, कम प्रसिद्ध होते हुए भी अत्यंत शक्तिशाली मानी जाती हैं। यह पर्व विशेष रूप से साधकों, तांत्रिकों और आध्यात्मिक जिज्ञासुओं के लिए होता है, जो मां दुर्गा की कृपा और सिद्धियों की प्राप्ति के लिए गहन साधना करते हैं।

गुप्त नवरात्रि का उल्लेख देवी भागवत और अन्य पुराणों में मिलता है। एक प्रसंग के अनुसार, जब एक पीड़ित स्त्री ऋषि श्रृंगी से अपने जीवन की कठिनाइयों के बारे में कहती है, तो ऋषि उसे बताते हैं कि नवरात्रि केवल चैत्र और शारदीय में ही नहीं, बल्कि माघ और आषाढ़ माह में भी मनाई जाती है जो ‘गुप्त नवरात्रि’ कहलाती हैं। इन नवरात्रियों में देवी दुर्गा के दस रहस्यमयी रूपों, दस महाविद्याओं की साधना की जाती है।

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पौराणिक इतिहास में भी गुप्त नवरात्रि का विशेष महत्व रहा है। कहा जाता है कि महर्षि विश्वामित्र ने इसी काल में तप कर अपार सिद्धियाँ प्राप्त की थीं। लंकापति रावण का पुत्र मेघनाद भी गुप्त नवरात्रि में ही अपनी कुलदेवी निकुंबला की पूजा कर अजेय बना था।

गुप्त नवरात्रि एकांत साधना, तांत्रिक अनुष्ठान और आत्मबोध का अवसर होती है। यह त्योहार भौतिक जगत से हटकर अंतर्यात्रा की ओर ले जाता है। जहाँ शारदीय और चैत्र नवरात्रि में सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजनों का बाह्य उत्साह होता है, वहीं गुप्त नवरात्रि अंतरात्मा से जुड़ने का माध्यम है।

इस दौरान देवी के दस महाविद्या रूपों – काली, तारा, त्रिपुरा सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला – की उपासना की जाती है। प्रत्येक रूप अपने आप में शक्ति, रहस्य और सिद्धि का प्रतीक है। इन देवियों की पूजा से न केवल आध्यात्मिक उन्नति होती है, बल्कि जीवन की व्यावहारिक समस्याओं का समाधान भी संभव होता है।

इन दस महाविद्याओं की पूजा विशिष्ट मंत्रों और विधियों से की जाती है, जिनमें से हर देवी किसी विशेष शक्ति, गुण या समस्या-निवारण से जुड़ी होती हैं। जैसे मां काली शत्रु विनाश की, तारा मोक्ष की, त्रिपुरा सुंदरी सौंदर्य और ऐश्वर्य की देवी मानी जाती हैं। मां बगलामुखी शत्रुओं की वाणी को स्तंभित करने वाली हैं, वहीं धूमावती दरिद्रता और पीड़ा को हरने वाली।

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गुप्त नवरात्रि की नवमी, मां सिद्धिदात्री की आराधना का पर्व है। यह दिन विशेष साधना, मंत्र-जाप, हवन और दुर्गा सप्तशती के पाठ का होता है। कहा जाता है कि मां सिद्धिदात्री की कृपा से साधक को अनिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व जैसी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता और शांति का मार्ग प्रशस्त करती हैं।

गुप्त नवरात्रि में साधक दिनचर्या में संयम रखते हैं। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान, स्वच्छ वस्त्र धारण, देवी का पूजन, दीप प्रज्वलन, मंत्र-जाप, ध्यान और उपवास के साथ वे अपना दिन व्यतीत करते हैं। कई तांत्रिक साधक विशेष शाबर मंत्रों और गुप्त विधियों से ध्यान करते हैं, जिन्हें उन्होंने अपने गुरु से प्राप्त किया होता है।

यद्यपि यह पर्व आंतरिक साधना का है, फिर भी उत्तर भारत के कुछ राज्यों विशेषकर उत्तराखंड, हिमाचल, हरियाणा और पंजाब में इसे पारिवारिक और धार्मिक वातावरण में भड़लिया नवमी के रुप में मनाया जाता है। छोटे स्तर पर सामूहिक पूजा और देवी मंडल स्थापित किए जाते हैं। किसानों के लिए यह समय खेतों में बीज बोने का होता है, अतः देवी से अच्छी फसल की कामना भी की जाती है।

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गुप्त नवरात्रि केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्म-शुद्धि, साधना और शक्ति से जुड़ने का एक गहन अवसर है। यह पर्व बताता है कि भक्ति का असली स्वरूप बाहरी आडंबर नहीं, बल्कि आंतरिक साधना में छिपा है। नवमी तिथि पर मां सिद्धिदात्री की कृपा से जीवन में न केवल सांसारिक सुख-संपत्ति, बल्कि आध्यात्मिक जागरण और दिव्य अनुभूतियाँ भी प्राप्त हो सकती हैं। जो साधक इस पर्व को श्रद्धा, नियम और एकाग्रता से मनाते हैं, वे निश्चित रूप से मां की विशेष कृपा के अधिकारी बनते हैं।