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नरेश सहगल : प्रकृति के विभिन्न रूपों का दिल से आनंद लें

घुमक्कड़_जंक्शन पर आज मिलवाते हैं आपको घुमक्कड़ इंजीनियर नरेश सहगल से, हमारी और इनकी भेंट घुमक्कड़ी के दौरान अम्बाला में हुई। नरेश सहगल वर्तमान में अम्बाला बी एस एन एल में कार्यरत हैं एवं अपनी नौकरी के साथ घुमक्कड़ी को भी अंजाम दे रहे हैं, इन्होंने अपनी घुमक्कड़ी के दौरा कई ट्रेक किए हैं एवं भारत की विभिन्न धार्मिक यात्राओं को सम्पन्न किया है। आईए सुनिए जुनूनी एवं सुहृदय घुमक्कड़ की दास्तान ललित शर्मा के साथ एक साक्षात्कार में
1 – आप अपनी शिक्षा दीक्षा, अपने बचपन का शहर एवं बचपन के जीवन के विषय में पाठकों को बताएं कि वह समय कैसा था?@ मेरा जन्म पंजाब के खन्ना जिले के ‘पैल’ कस्बे में हुआ लेकिन जन्म के कुछ समय बाद ही परिवार वापिस अम्बाला की सीमा से सटे एक गाँव में आ गया। मैं तीन भाइयों में सबसे छोटा हूँ। प्राथमिक शिक्षा गाँव के सरकारी स्कूल में ही हुई। हाई स्कूल की शिक्षा गाँव से 4 किलोमीटर दूर शहर में अम्बाला के उस समय के माने हुए प्राइवेट स्कूल से हुई। मैं पढ़ाई में शुरू से अच्छा था, दसंवी की परीक्षा में मेरिट लिस्ट में आने वाला गाँव का पहला बच्चा बना। स्कूल में तीसरी पोजीशन थी। 10+2 (नान मेडिकल) में करने के बाद इलेक्ट्रॉनिक एवम कम्युनिकेशन में इंजीनियरिंग की स्नातक डिग्री ले ली। बाद में अपने शौक के लिये IGNOU से MBA भी कर लिया ।
बचपन से ही काफी शर्मीले स्वभाव का रहा हूँ। अपने आप में मस्त रहने वाला, अन्तर्मुखी और संजीदा प्रवृति का। जन्म से, खान पीन, रहन-सहन और मातृ भाषा से पंजाबी हूँ।

2 – वर्तमान में आप क्या करते हैं एवं परिवार में कौन-कौन हैं ?

@ 2001 में भारत संचार निगम लिमिटेड में कनिष्ठ दूरसंचार अधिकारी के पद पर नियुक्त हुआ। 2008 में प्रमोशन के लिये कम्पटीशन क्लियर किया और SDE (उप मंडल अभियंता ) बन गया। 2012 से वरिष्ठ उप मंडल अभियंता के पद पर कार्यरत हूँ। 2003 में शादी हुई । अब परिवार में पत्नी के अलावा तीन बच्चे हैं। दो बेटियां हैं एक बेटा है। मेरे माता- पिता जी स्वर्गवासी हो चुके हैं। मेरी पत्नी हाउस वाइफ (फुल टाइम जॉब) है ।

3 – घूमने की रुचि आपके भीतर कहाँ से जागृत हुई?

@ घूमने का शौक आत्म निर्भर बनने के बाद ही हुआ ।पहले तो माता पिता जहाँ ले जाते थे वहीँ चल पड़ते थे। कभी हरिद्वार कभी वैष्णो देवी। मैं कालेज के टाइम पहली बार, बिना परिवार के, दोस्तों के साथ वैष्णो देवी गया था, फिर कालेज के दौरान दोस्तों के साथ कई टूर किये। घर में ही बड़े भाई पूरे भारत का भ्रमण कर चुके थे तो मैं भी सब जगह घूमना चाहता था लेकिन ये इच्छा तब और भी ज़ोर से जागृत हो गयी जब मैंने घुमक्कड़ों के ब्लॉग पढ़ना शुरू कर दिया ।

4 – किस तरह की घुमक्कड़ी आप पसंद करते हैं, ट्रेकिंग एवं रोमांचक खेल भी क्या सम्मिलित हैं, कठिनाइयाँ भी बताएँ ?

@ वैसे तो मुझे किसी भी प्रकार की घुमक्कड़ी से परहेज नहीं है लेकिन मुख्यतः मेरी घुमक्कड़ी धार्मिक यात्राओं के इर्द गिर्द ही घुमती है। हिन्दू धर्म की आस्था के प्रतीक स्थल मेरी यात्राओं की मंजिल होते हैं और सामन्यता बिना मंजिल के मैं सफ़र नहीं करता। हिमालय मुझे बेहद प्रिय है क्यूंकि यह मेरे इष्ट देव भगवान भोले नाथ का निवास है और अपने इष्ट देव से जुड़े स्थानों को देखने के शौक़ीन भला ट्रेकिंग से कैसे दूर रह सकते हैं। मुझे ट्रैकिंग करना हमेशा अच्छा लगता है लेकिन ट्रैकिंग के साथ कुछ, कठिनाइयाँ भी हैं। ट्रैकिंग के दौरान अधिक ऊंचाई पर कम ऑक्सीजन से होने वाली परेशानियां भी हो सकती हैं, तीव्र चढाई भी तंग कर सकती है । इसके लिये शारीरिक और मानसिक रूप से दृढ़ तो होना ही चाहिए। मेरी हर साल दो-तीन ट्रैकिंग हो ही जाती हैं ।

5- उस यात्रा के बारे में बताएं जहाँ आप पहली बार घूमने गए और क्या अनुभव रहा?

@ बचपन की याद करूँ तो मैं सातवीं कक्षा में था जब माता-पिता के साथ वैष्णो देवी गया था। लगभग 30 साल हो चुके हैं लेकिन अभी भी याद है कैसे हम सब भाई भाग-भाग कर पहाड़ पर चढ़ रहे थे। परिवार के बिना पहली यात्रा कॉलेज के दौरान हुई जब कॉलेज ट्रिप में देहरादून मसूरी और ऋषिकेश गए थे। इसी ट्रिप के दौरान हमने सभी लोगों के मना करने के बावजूद रात के नीलकंठ महादेव की 14 किलोमीटर की ट्रेकिंग की थी। रात 8:30 बजे शुरूकर मध्य रात्रि 2:30 बजे मंदिर पहुंचे थे। सुबह 4 बजे मंदिर खुलने पर दर्शन किये और सुबह 8 बजे वापिस ऋषिकेश पहुँच गए थे। ये सभी के लिये एक यादगार बन गया।

6 – घुमक्कड़ी के दौरान आप परिवार एवं अपने शौक के बीच किस तरह सामंजस्य बिठाते हैं?

@ इस मामले में ख़ुशनसीब हूँ। पत्नी को भी घुमने का बेहद शौक है इसलिए उस तरफ से हमेशा सहयोग मिला है। साल में कम से कम दो टूर तो पारिवारिक भी हो जाते हैं। असली सामंजस्य तो नौकरी के साथ करना पड़ता है। कई बार समय पर छुट्टी न मिल पाने के कारण यात्रा स्थगित करनी पड़ती है। परिवार , नौकरी और घुमक्कड़ी के शौक के बीच आपसी सामंजस्य बिठाते हुए जितना बन पड़ता है उतना घूम लेते हैं।

7 – आपकी अन्य रुचियों के साथ बताइए कि आपने ट्रेवल ब्लॉग लेखन कब और क्यों प्रारंभ किया?

@ वर्तमान समय में नयी- नयी जगह पर घूमना मेरी पहली रूचि है और पढ़ना दूसरी। पढ़ने में मुख्यत: राजनीति, इतिहास और यात्रा ब्लॉग। इसके अलावा मेरी संगीत सुनने में भी काफी रूचि है।
दूसरों के ब्लॉग पढ़ते पढ़ते मेरा भी लिखने का मन करने लगा और इस तरह 2013 में लिखना शुरू किया । पहले घुमक्कड़ डॉट कॉम पर ही लिखता था . अपना ब्लॉग भी बना लिया था लेकिन उस पर एक पोस्ट टेस्टिंग के लिये लिख कर दोबारा लिखा नहीं या बहुत ही कम लिखा । 2015 में जब घुमक्कड़ डॉट कॉम से धीरे धीरे सभी पुराने लेखक हटने लगे तो मुझे भी वहां लिखने में ज्यादा रूचि न रही । 2016 से लगातार अपने ब्लाग http://nareshsehgal.blogspot.com पर लिख रहा हूँ।

8 – घुमक्कड़ी (देशाटन, तीर्थाटन, पर्यटन) को जीवन के लिए आवश्यक क्यों माना जाता है?

@ एक कहावत है की दुनिया एक किताब है और जो लोग नहीं घूमते वो इस किताब का केवल एक ही पेज पढ़ पाते हैं। घुमक्कड़ी से हमें बहुत कुछ नया जानने को मिलता है। अलग-अलग जगह रहने वाले लोगो से मिलने, उनके रहन-सहन, खान-पीन और स्थानीय रीति रिवाजों का भी पता चलता है। घुमक्कड़ी से व्यक्ति की सोच का दायरा तो बढता ही है, जीवन में सकरात्मकता भी बढ़ती है। आज की तनाव भरी भाग-दौड़ वाली जिन्दगी में घुमक्कड़ी का एक छोटा सा अंतराल भी जीवन में एक नई उमंग और ताजगी ले आता है।

9 – आपकी सबसे रोमांचक यात्रा कौन सी थी, अभी तक कहाँ-कहाँ की यात्राएँ की और उन यात्राओं से क्या सीखने मिला?

@ ऐसे तो बताना मुश्किल है कि सबसे रोमांचक यात्रा कौन सी थी। हर यात्रा में कुछ ना कुछ तो रोमांचक हो ही जाता है। घनघोर अँधेरी रात में की गयी नीलकंठ महादेव की 14 किलोमीटर की ट्रैकिंग हो या हर साल की जाने वाली अमरनाथ यात्रा या फ़िर दम निकाल देने वाली हेमकुंड साहिब की ख़तरनाक चढाई हो, सभी में अपना अलग रोमांच है।
अब तक उत्तराखंड के चारों धाम (यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ) भारत के चार में से तीन धाम (बद्रीनाथ , द्वारिका जी और जगन्नाथ पुरी) बारह में से दस ज्योतिर्लिंग (केदारनाथ, भीमाशंकर, त्रंबकेश्वर, घुश्मेश्वर, सोमनाथ, नागेश्वर, काशी विश्वनाथ, परली बैजनाथ, महाकालेश्वर, ओम्कारेश्वर) 7 में से 5 पुरी (मथुरा, हरिद्वार, काशी, उज्जैन, द्वारिका) जा चूका हूँ।
हिमाचल में मणिमहेश कैलाश, रेणुका जी , हरिपुरधार, माता नयना देवी, माँ ज्वाला जी, माता चिन्तपुरनी, माता चामुंडा देवी, माता बृजेश्वरी देवी काँगड़ा, माता बगुलामुखी, कुल्लू, मनाली, सोलांग, रोहतांग, मंडी, शिमला, सोलन, हमीरपुर, रिवालसर झील, पराशर झील, बिजली महादेव, मणिकरण आदि एवं हरियाणा और पंजाब के लगभग सभी शहर ।
1998 में पहली बार अमरनाथ जी की यात्रा पर गया था। फिर भगवान भोले नाथ की कृपा से 2003 से लगातार हर साल भोले बाबा के दर्शनों के लिये जा रहा हूँ। अभी जुलाई के पहले सप्ताह ही वहाँ से दर्शन करके लौटा हूँ। इसके साथ ही माता वैष्णो देवी भी प्रति वर्ष जाता हूँ। दक्षिण भारत और उत्तर पूर्व को छोड़ कर, भारत के सभी राज्यों में भ्रमण कर चूका हूँ। हर यात्रा से कुछ न कुछ सीखने को मिलता ही है।

10 – नये घुमक्कड़ों के लिए आपका क्या संदेश हैं?

@सन्देश तो नहीं, सबसे विनती करना चाहूँगा की आप जहाँ भी जाएँ वहां की स्थानीय परम्पराओं का अवश्य सम्मान दें। पर्यावरण का किसी भी प्रकार से नुकसान न पहुंचाएं । जोश के साथ –साथ होश से भी काम ले । निर्भीक होकर प्रकृति के विभिन्न रूपों का दिल से आनंद लें।

सफ़र का मजा लेना हो तो, सामान कम रखिए।
जिन्दगी का मजा लेना हो तो अरमान कम रखिए॥

46 thoughts on “नरेश सहगल : प्रकृति के विभिन्न रूपों का दिल से आनंद लें

  • July 23, 2017 at 21:42
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    बधाई हो नरेश सहगल जी, आज आपके बारे में बहुत कुछ जानने को मिला, और ललित सर को बेहद धन्यवाद ऐसे शुभ कार्य के लिए

    • July 24, 2017 at 08:05
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      धन्यवाद अभ्यानंद जी ।

  • July 23, 2017 at 22:10
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    वाह नरेश जी, सरकारी नौकरी में से समय निकाल कर घूमना बड़ी बात है । जबकि आप तो हर साल अमरनाथ और वैष्णो देवी जाते है । नमन आपकी घुमक्कड़ी को

    • July 24, 2017 at 08:06
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      धन्यवाद मुकेश पांडेय जी ।,,,??

  • July 23, 2017 at 23:18
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    आदरणीय ललित शर्मा जी मुझ जैसे अनजान घुमक्कडो व अल्प- कालिक ब्लागर साथियों को एक शानदार प्लेटफार्म उपलब्ध करवाने के लिये बहुत धन्यवाद ??.

  • July 23, 2017 at 23:50
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    शानदार साक्षात्कार ! सहगल साब के विषय में बहुत कुछ जानने को मिला ! बधाई सहगल साब और ललित जी का बहुत बहुत धन्यवाद

    • July 24, 2017 at 08:07
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      धन्यवाद योगी जी । आभार ??

    • July 24, 2017 at 08:08
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      धन्यवाद त्यागी जी ।??

  • July 24, 2017 at 00:07
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    सबसे पहले तो ललित को इस सहरानीय कदम की बधाई । फिर नरेश को बधाई ,घुमक्कड़ी प्लेटफार्म का हीरो बनने के लिए

  • July 24, 2017 at 02:56
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    नरेश जी ….
    आपके साक्षात्कार से आपके जीवन के बारे में बहुत जानने को मिला …. आप धन्य है जो हर साल अमरनाथ जी और माँ वैष्णो देवी की यात्रा पर जाते है | आपको शुभकामनाएं और बधाई

    ललित जी का धन्यवाद जो आपसे परिचय के वाहक बने

    • July 24, 2017 at 08:09
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      धन्यवाद रितेश जी । असली मेहनत तो ललित सर् की ही है ।,??

  • July 24, 2017 at 03:23
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    Hi Naresh,
    Very interesting.Few things I didn’t knew although we were in same college,same year.Thanks to Lalit Sharmaji.

    Anil Mishra
    72 wilkie cres,Guelph,Ontario,Canada

    • July 24, 2017 at 23:59
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      धन्यवाद अनिल मिश्रा जी .
      आप इतने दूर होते हुए भी कितने नजदीक हैं . फिर से धन्यवाद दिल से ..

    • July 24, 2017 at 08:10
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      धन्यवाद अनिल भाई जी ।।??

  • July 24, 2017 at 05:59
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    बहुत बढ़िया सहगल साहब. गागर में सागर भर दिया आपके साक्षात्कार ने….
    ललित जी का तो आभार है ही….

    • July 24, 2017 at 08:11
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      धन्यवाद संजय जी । आभार ।।??

  • July 24, 2017 at 09:11
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    शानदार परिचय सहगल साहब । सादगी औऱ विन्रमता की बढ़िया मिसाल ।
    जय भोले की ।।

  • July 24, 2017 at 10:23
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    We met long time ago in Delhi. Good to see you again here in the virtual world.
    You are like an encyclopedia for many trekking routes and specially Amarnath Baba’s abode.
    You certainly are an inspiration for so many newcomers.

    • July 25, 2017 at 00:05
      Permalink

      How can I forget that meeting. That was my first meeting with people with common interest of traveling . You came along with your Husband (Professor sahib).
      Any way thanks for reading and commenting with a lot of encouragement.
      Thanks again.

  • July 24, 2017 at 10:38
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    A Special thanks to Lalit Sharma Ji for giving such a nice platform by fabulous introduction of Sehgal Sahib . It’s great pleasure & congratulations ??

  • July 24, 2017 at 10:41
    Permalink

    A Special thanks to Lalit Sharma Ji for giving such a nice platform by fabulous introduction of Sehgal Sahib . It’s great pleasure & congratulations ??

  • July 25, 2017 at 00:45
    Permalink

    नरेश जी आपने कम शब्दों में ख़ूबसूरत परिचय दिया है ।

  • July 25, 2017 at 01:05
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    अपने साथी का साक्षात्कार पड़ना बहुत अच्छा लगा
    पास बैठेते हैं फिर भी नई जानकारिया मिली आपको बहुत बधाई

    • July 26, 2017 at 00:02
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      धन्यवाद सरोहा जी . आपने पढ़ने और टिप्पणी करने के लिये समय निकाला .

  • July 25, 2017 at 01:26
    Permalink

    Sehgal jii.. apaar harsh ke sath dil se aapke liye… ‘ WAH ! WAH ! KYA BAAT HAI ‘ . vse to bachpan se hi aapke sath huin aur aapki sabhi khubion se waaqif huin magar aapki iss lekhan klaa ka to kya kehna. Lagta nhi ke aapne abhi kuchh wqt pahle hi likhna suru kiya h. Mera sobhagya rha ke aapki kuchh yatraon me main aapka sehbhagi bnaa. Aapki iss saflata aur sadgi ko parnam …?…keep it up !?

    • July 26, 2017 at 00:06
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      कल ही एक मित्र का मेसेज भेजा था जिसमे लिखा था कि पक्के दोस्त दो ही क़िस्म के होते हैं या क्लास वाले या गिलास वाले .बाकि सब मोह माया ..आप तो दोनों क़िस्म में फीट हो .अपने खास दोस्त ,घुमक्कड़ी के चिर साथी का कमेन्ट मिलना, एक अलग ही अनुभूति होती है । धन्यवाद दिल से ।।??

  • July 25, 2017 at 10:58
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    एक और घुमक्कड़ का साक्षात्कार पढ़कर अच्छा लगा, वैसे तो आपके बारे में काफ़ी कुछ जानता ही हूँ, लेकिन फिर भी पढ़कर मज़ा आया ! ललित जी ने साक्षात्कार कॉलम शुरू करके बहुत अच्छा किया !

    • July 26, 2017 at 03:57
      Permalink

      धन्यवाद प्रदीप चौहान जी .सचमुच ललित जी ने साक्षात्कार कॉलम शुरू करके बहुत अच्छा किया !

  • July 26, 2017 at 05:46
    Permalink

    Glad to know about you through this interview. Keep it up my friend.

    • July 27, 2017 at 00:55
      Permalink

      धन्यवाद राज कुमार जी .

  • July 26, 2017 at 08:35
    Permalink

    नरेश भाई आपके बारे में पढ़ कर अच्छा लगा

    • July 27, 2017 at 00:56
      Permalink

      धन्यवाद योगेंदर कुमार जी .

  • July 26, 2017 at 08:39
    Permalink

    जान पहचान तो पहले से है ही पर बहुत सी नई बातें पता लगी इस साक्षात्कार से

  • July 27, 2017 at 01:02
    Permalink

    धन्यवाद हर्षिता जी . आपने पढ़ने और टिप्पणी करने के लिये समय निकाला.

  • July 27, 2017 at 03:46
    Permalink

    बहुत ही उम्दा नरेश भाई

    • August 3, 2017 at 11:05
      Permalink

      धन्यवाद विनोद कुमार ।?

  • July 30, 2017 at 10:20
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    हार्दिक शुभकामनाएं।
    आपके लेखन शैली से तो पहले ही प्रभावित हे।
    आप का साक्षात्कार पढकर बेहद प्रसन्नता हुई।
    जिंदगी के मजे लेने है तो अरमान कम रखे।
    सच कहा।

  • August 3, 2017 at 06:10
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    वरिष्ठ उप-मंडलीय अभियंता ? ओत्तेरी ! यहां जब कभी बी.एस.एन.एल. का फोन ठीक से काम नहीं करता था (ठीक से काम करता ही कब था ! ) तो लाइनमैन की मिजाजपुर्सी करनी होती थी। वरिष्ठ उप-मंडलीय अभियंता तक तो हम तब पहुंचते थे, जब खून-खराबा करने का मूड बन चुका हो।

    खैर, आपसे आज तक दो बार मुलाकात हुई और आपको अक्सर जमीन पर लेट कर BSNL का सिग्नल ढूंढते हुए देखा तो कभी कभी रंग बिरंगी तितलियों को निहारते और कैमरे में कैद करते देखा। आपके लिखे ब्लॉग पढ़े और आपके शरारतपूर्ण एनकाउंटर्स भी एंजाय किये । आप यूं ही घूमते रहें, सिग्नल तलाशते रहें, तितलियां पकड़ते रहें और लिखते रहें। हार्दिक शुभ कामनाएं।

    • August 23, 2017 at 02:37
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      Thanks Sushant Jee.

  • August 3, 2017 at 11:08
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    धन्यवाद शशि जी ।समय निकाल कर पढ़ने के लिए ।??

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