\

स्वतंत्रता संग्राम में छत्तीसगढ़ का योगदान : स्वतंत्रता दिवस विशेष

छत्तीसगढ़ का स्वतंत्रता संग्राम भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक अविस्मरणीय हिस्सा है, जिसमें इस क्षेत्र के लोगों ने अत्यधिक साहस और बलिदान का परिचय दिया। छत्तीसगढ़ के जनजीवन में स्वाभिमान और स्वतंत्रता की भावना गहराई से निहित थी, जिसे उन्होंने विभिन्न आंदोलनों और विद्रोहों के माध्यम से प्रकट किया। यहाँ के निवासियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा।

छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता आंदोलन का प्रारंभ

छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता आंदोलन का प्रारंभ 1800 के दशक के शुरुआती वर्षों में हुआ, जो राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम से काफी पहले की बात है। रतनपुर राज्य के 36 गढ़ों में से एक महत्वपूर्ण गढ़ धमधा में, जमींदार भवानी सिंह ने ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ विद्रोह किया। यह विद्रोह 1800 में हुआ, जब अंग्रेजों का प्रभुत्व धीरे-धीरे फैल रहा था। भवानी सिंह को उनके साहसिक विद्रोह के लिए फांसी दी गई, जिससे छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत हुई।

1817 में धमधा में दूसरा विद्रोह हुआ, जिसमें सावंत भारती नामक विद्रोही नेता ने हजारों लोगों को संगठित कर अंग्रेजी व्यवस्था को चुनौती दी। इस विद्रोह में सावंत भारती को गिरफ्तार कर आजीवन कारावास की सजा दी गई। इसके बाद 1830 में होरी गोंड के नेतृत्व में तीसरा विद्रोह हुआ, जिसे भी अंग्रेजों ने कुचल दिया। इस तरह छत्तीसगढ़ में विद्रोह और संघर्ष की यह परंपरा लगातार बनी रही।

जल-जंगल आंदोलन

छत्तीसगढ़ में जल और जंगल का आंदोलन भी स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। कंडेल नहर सत्याग्रह इसका एक प्रमुख उदाहरण है। यह सत्याग्रह ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों के खिलाफ किया गया था, जिसमें धमतरी तहसील के किसानों ने अहिंसक आंदोलन का मार्ग अपनाया। किसानों के इस संघर्ष में पं. सुंदरलाल शर्मा, पं. नारायणराव मेघावाले और बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कंडेल नहर सत्याग्रह 1920 में हुआ, जब किसानों ने अंग्रेजी सरकार के अनुबंध के खिलाफ संघर्ष किया। यह संघर्ष उस समय और अधिक महत्वपूर्ण हो गया, जब महात्मा गांधी इस आंदोलन में शामिल हुए। गांधीजी के आगमन से आंदोलन को नई दिशा और ऊर्जा मिली, जिससे ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा और किसानों की मांगों को मानना पड़ा। इस आंदोलन ने न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि पूरे भारत में राष्ट्रीय चेतना को जाग्रत करने का काम किया।

1922 का जंगल सत्याग्रह

सिहावा नगरी के जंगलों में 1922 में श्री श्यामलाल सोम, श्री हरख राम सोम, श्री शोभाराम साहू और श्री विशंभर पटेल के नेतृत्व में जंगल सत्याग्रह हुआ। इस आंदोलन में 33 सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर धमतरी लाया गया। इस सत्याग्रह का उद्देश्य वन अधिनियम के खिलाफ था, जो अंग्रेजी सरकार ने लागू किया था। यह आंदोलन तीन सप्ताह तक चला और इसमें कई सत्याग्रहियों को जेल भेजा गया। इस आंदोलन ने छत्तीसगढ़ के जनजीवन में स्वतंत्रता की भावना को और अधिक मजबूत किया।

सशस्त्र क्रांति का प्रयास

1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, रायपुर के परसराम सोनी ने सशस्त्र क्रांति का प्रयास किया। उन्होंने रायपुर में अपने सहयोगियों के साथ मिलकर रिवाल्वर और बम बनाने की तकनीक सीखी। परसराम सोनी और उनके सहयोगियों ने स्वतंत्रता संग्राम में सशस्त्र संघर्ष की योजना बनाई। हालांकि, 15 जुलाई 1942 को एक गद्दार की मुखबिरी के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उनके इस प्रयास ने छत्तीसगढ़ में सशस्त्र क्रांति के बीज बोए, जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को और अधिक तीव्रता प्रदान की।

तमोरा सत्याग्रह

1930 में महासमुंद के तमोरा ग्राम में हरेली अमावस के दिन हरेली त्योहार के दौरान ग्रामीणों और वन विभाग के कर्मचारियों के बीच विवाद हुआ। यह विवाद धीरे-धीरे सत्याग्रह में बदल गया। 8 सितंबर 1930 को तमोरा में बड़ा आम सभा आयोजित हुआ और सत्याग्रह प्रारंभ हुआ। इस आंदोलन में हजारों लोगों ने भाग लिया और इसे धारा 144 के तहत प्रतिबंधित किया गया। सत्याग्रहियों पर लाठी चार्ज और गिरफ्तारियां हुईं, लेकिन आंदोलन की ज्वाला बुझी नहीं। जनजातीय महिला नेत्री दयावती कंवर के नेतृत्व में महिलाओं ने भी इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इस आंदोलन के दौरान सत्याग्रहियों और पुलिस के बीच कई झड़पें हुईं, लेकिन अंततः पुलिस को खाली हाथ लौटना पड़ा। यह आंदोलन छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसने इस क्षेत्र में स्वतंत्रता की भावना को और अधिक मजबूत किया।

छत्तीसगढ़ में महात्मा गांधी

अंचल के नेताओं ने इस आंदोलन में जोश भरने के लिए महात्मा गाँधी को बुलाने का निर्णय लिया। छोटेलाल जी के आग्रह पर उन्हें 20 दिसम्बर 1920 को पण्डित सुन्दरलाल शर्मा अपने साथ लेकर रायपुर आए। गाँधीजी कोलकाता से रेलगाड़ी में यहाँ पहुँचे। यह गाँधीजी के प्रभावी व्यक्तित्व का ही जादू था कि उनके आगमन की ख़बर मिलते ही अंग्रेज प्रशासन बैकफुट पर आ गया और उसे सिंचाई टैक्स की जबरिया वसूली का हुक्म वापस लेना पड़ा। गाँधीजी ने 20 दिसम्बर की शाम रायपुर में एक विशाल आम सभा को भी सम्बोधित किया। जहाँ पर उनकी आम सभा हुई, वह स्थान आज गाँधी मैदान के नाम से जाना जाता है।

गांधी जी रायपुर से 21 दिसम्बर को रायपुर से मोटरगाड़ी में धमतरी गए थे, जहाँ आम जनता और किसानों की ओर से पण्डित सुन्दरलाल शर्मा और छोटेलाल श्रीवास्तव सहित कई वरिष्ठ नेताओं ने उनका स्वागत किया। गाँधीजी ने धमतरी में आम सभा को भी सम्बोधित किया और रायपुर आकर नागपुर के लिए रवाना हो गए।

दूसरी बार वह वर्ष 1933 में छत्तीसगढ़ आए थे। इस बार उंन्होने 22 नवम्बर से 28 नवम्बर तक याने कुल 7 दिनों तक इस अंचल का सघन दौरा किया। इस बीच वह दुर्ग, रायपुर, धमतरी और बिलासपुर सहित मार्ग में कई गाँवों और शहरों के लोगों से मिलते रहे। उनकी यह दूसरी छत्तीसगढ़ यात्रा इस मायने में भी बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है कि इसी दरम्यान उंन्होने भारतीय समाज में व्याप्त ऊँच -नीच के भेदभाव के ख़िलाफ़ जन-जागरण के विशेष अभियान की शुरुआत भी यहाँ की धरती से की। छत्तीसगढ़ के इतिहास में यह भी दर्ज है कि इस अंचल में अस्पृश्यता निवारण का कार्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पण्डित सुन्दरलाल शर्मा पहले ही शुरू कर चुके थे।

बस्तर का भूमकाल विद्रोह और गुंडाधूर

बस्तर के वनवासियों ने सदैव सत्ता की निरंकुशता और अन्याय के खिलाफ संघर्ष किया। हल्बा विद्रोह, भोपालपट्ट्नम विद्रोह, परलकोट विद्रोह, और 1910 का भूमकाल विद्रोह इसके प्रमाण हैं। भूमकाल का अर्थ “भूकंप” है, और इस आंदोलन ने पूरे बस्तर को हिला कर रख दिया। इसके पीछे मुख्य कारण वन नीति, अनिवार्य शिक्षा, धर्म परिवर्तन, बेगारी प्रथा, और नौकरशाही थे।

राजा भैरम देव के शासनकाल में दीवान बैजनाथ पंडा ने ऐसी वन नीति बनाई जिससे बस्तर के सारे वन शासनाधीन हो गए और वनवासियों के अधिकार छिन गए। पंडा ने अनिवार्य शिक्षा भी लागू की, जिसे जबरन लागू करने पर वनवासी नाराज हो गए। बेगारी प्रथा और धर्म परिवर्तन के दबाव से भी वनवासी परेशान थे।

इस असंतोष ने भूमकाल विद्रोह का रूप ले लिया, जिसका नेतृत्व आदिवासी युवा गुंडाधुर ने किया। उन्होंने विभिन्न जातियों के नेताओं को संगठित कर विद्रोह की रणनीति बनाई। वनवासी हथियारों से लैस होकर सरकारी स्कूल, जंगल नाका, पुलिस थाना आदि को निशाना बनाने लगे।

अंग्रेजों ने विद्रोहियों को शांत करने की कोशिश की और 15 प्रमुख क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया। हालांकि, गुंडाधुर अंग्रेजों की पकड़ से बाहर रहे। अंततः कई विद्रोहियों को फांसी दी गई, लेकिन गुंडाधुर को कभी पकड़ा नहीं जा सका, और उनकी कहानी एक रहस्य बनकर रह गई।

छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता संग्राम की कहानी अद्वितीय है। यहाँ के लोगों ने अपने साहस और दृढ़ संकल्प से ब्रिटिश शासन को चुनौती दी और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। चाहे वह 1800 के दशक के विद्रोह हों, जल-जंगल आंदोलन हो या सशस्त्र क्रांति का प्रयास, छत्तीसगढ़ ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी विशेष छाप छोड़ी है। यह संघर्ष और बलिदान की गाथा छत्तीसगढ़ की गौरवमयी इतिहास का हिस्सा है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं संस्कृति के जानकार हैं।

संदर्भ

1. ठाकुर प्यारे लाल सिंह के जांच प्रतिवेदन के अनुसार
2. छत्तीसगढ़ का इतिहास डा0 भगवान सिंह वर्मा, पृष्ठ 1027.
3. छत्तीसगढ़ का जनजातीय इतिहास डा0 हीरालाल शुक्ल पृष्ठ 190.
4. छत्तीसगढ़ वृहद संदर्भ संजय त्रिपाठी पृष्ठ 331
5. छत्तीसगढ़ में जंगल सत्याग्रह, आशीष सिंह
6. छत्तीसगढ़ के नारी रत्न केयूर भूषण।
7. डॉ घनाराम साहू, दक्षिण कोसल टुडे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *