डॉक्टरों और नर्सों की प्रेरणास्रोत फ्लोरेन्स नाइटेंगल
अस्पतालों में मरीजों के इलाज़ में जहाँ डॉक्टरों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है, वहीं उनके सहयोगी के रूप में नर्सों का भी बड़ा अहम रोल होता है। अगर डॉक्टर अपनी टीम का कप्तान होता है तो आज के युग में नर्सें उसकी टीम की सबसे महत्वपूर्ण सदस्य होती हैं, जो अस्पताल में दाख़िल मरीजों की देखभाल सेवा भावना से और पूरी तन्मयता के साथ करती हैं। नर्सों के बिना किसी अस्पताल की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
आधुनिक अस्पतालों में नर्सिंग यानी मरीज़ों की सेवा -सुश्रुषा को मानवता की सेवा का पर्याय बनाया फ्लोरेन्स नाइटिंगेल ने, जिनकी आज पुण्यतिथि है। उन्हें डॉक्टरों और नर्सों की प्रेरणास्रोत भी कहा जा सकता है। उनकी संघर्षपूर्ण और गरिमामय जीवन यात्रा के बारे में इंटरनेट पर उपलब्ध अलग -अलग जानकारियों के अनुसार वह एक लेखिका भी थीं। उनकी पुस्तकों में ‘लेटर्स फ्रॉम इजिप्ट’ ‘नर्सिंग होम केयर’ ‘नोट्स ऑन नर्सिंग’ और ‘नोट्स ऑन हॉस्पिटल्स’ उल्लेखनीय हैं। उन्होंने वर्ष 1849 -1850 में अपने मित्रों के साथ इजिप्ट का दौरा किया था। इजिप्ट प्रवास पर आधारित उनकी यह किताब 1854 में छपी थी।
उनका जन्म- 12 मई, 1820 को फ्लोरेन्स (इटली ) में एक सम्पन्न ब्रिटिश परिवार में हुआ था। निधन -13 अगस्त, 1910 को लन्दन में हुआ था। वे आधुनिक नर्सिग आन्दोलन की जननी मानी जाती हैं। प्रेम, दया व सेवा-भावना की प्रतिमूर्ति फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल “द लेडी विद द लैंप” (ज्योति वाली महिला) के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न पारिवारिक पृष्ठभूमि के बावज़ूद उन्होंने मानवता के कल्याण का मार्ग चुना। यह वर्ष 1840 के उन दिनों की बात है ,जब इंग्लैंड में भयानक अकाल पड़ा था।
फ्लोरेन्स नाइटेंगल ने इस कठिन समय में अकाल पीड़ित बीमारों की मदद के लिए अपने एक पारिवारिक डॉक्टर के साथ नर्स बनने की इच्छा जताई। हालांकि इसके लिए उन्हें पारिवारिक विरोध भी सहना पड़ा, लेकिन उनके दृढ़ संकल्प की वज़ह से माता पिता ने उन्हें सहमति दे दी। क्रीमिया के युद्ध के दौरान वह तुर्की में घायलों के उपचार के लिए 38 महिलाओं की टीम बनाकर युद्ध क्षेत्र में पहुँची। उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा वहाँ के सैन्य असपताल में भेजा गया था।
रात के समय जब डॉक्टर अपनी ड्यूटी के बाद चले जाते थे, तब फ्लोरेन्स नाइटेंगल अँधेरे में मोमबत्तियां और लालटेन जलाकर घायलों की देखभाल करती। इस पुण्य कार्य की वज़ह से उन्हें ‘लेडी विथ द लैम्प’ की उपाधि से नवाज़ा गया था।
उन्होंने वर्ष 1859 के आसपास ‘ नोट्स ऑफ नर्सिंग ‘ नामक पुस्तक भी लिखी। उनकी प्रेरणा से ही महिलाएं नर्सिंग के क्षेत्र में आने लगीं। फ्लोरेन्स नाइटेंगल ने अपने समय के शासकों को युद्ध ग्रस्त इलाकों में घायलों और बीमारों के इलाज की उचित व्यवस्था के लिए प्रेरित किया। पहले ऐसी कोई व्यवस्था नहीं होती थी।
उन्होंने अपने अनुकरणीय सेवा कार्यों से अस्पतालों में नर्सिंग के प्रोफेशन को एक नयी पहचान दिलाई। लन्दन में उन्होंने वर्ष 1860 में सेंट थॉमस अस्पताल में विश्व के प्रथम नर्सिंग प्रशिक्षण स्कूल की स्थापना की। हर वर्ष 12 मई को फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल की जयंती पर अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस का आयोजन किया जाता है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार हैं।
बहुत सुंदर जानकारी भईया
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