जैव विविधता संरक्षण में हाथियों की भूमिका और मानव-हाथी संघर्ष
12 अगस्त विश्व हाथी दिवस पर विशेष आलेख
भारतीय संस्कृति में हाथियों का महत्वपूर्ण स्थान है, हाथी हमारी संस्कृति में धार्मिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक रुप से जुड़े हुए हैं। आज भी हिन्दू हाथी को भगवान ही मानते हैं, उनकी पूजा करना और फ़ल अर्पित करना अपना धार्मिक कर्तव्य समझते हैं। हाथी और मनुष्य का संबंध प्राचीन काल से अटूट बना हुआ है। लेकिन वर्तमान में इस संबंध के बीच हमें द्वंद दिखाई दे रहा है। हाथियों के हमलों में प्रतिवर्ष सैकड़ों लोगों की जान जा रही है और फ़सलों के साथ सम्पत्ति को नुकसान पहुंच रहा है, इस कारण हाथी भी मनुष्य के द्वारा मारे जा रहे हैं। जबकि हाथी का होना जैव विविधता संरक्षण में उतना ही जरुरी है जितना किसी अन्य प्राणी का। इन घटनाओं से मनुष्य एवं हाथियों के बीच सहअस्तित्व खत्म हो रहा है।
छत्तीसगढ़ में हाथियों का उपद्रव मुख्य रूप से राज्य के उत्तर और मध्य क्षेत्र के जिलों में देखा जाता है। ये क्षेत्र घने जंगलों और हाथियों के पारंपरिक आवास वाले क्षेत्र हैं। छत्तीसगढ़ में हाथी प्रभावित जिलों में सरगुजा, कोरिया, बलरामपुर, जशपुर, रायगढ़, धरमजयगढ़, महासमुंद, कोरबा आदि प्रमुख हैं।
सरगुजा में हाथियों की आवाजाही काफी अधिक होती है। सरगुजा के जंगलों में हाथी लंबे समय से बसे हुए हैं, और यहाँ के ग्रामीण इलाकों में हाथियों द्वारा फसल नुकसान और मानव-हाथी द्वंद की घटनाएं आम हैं। सरगुजा, नाम ही हाथी की चिंघाड़ की गूंज को प्रतिध्वनित करता है। इन जिलों से लगातार हाथियों के उपद्रव की खबरें आती रहती हैं। दो दिनों पूर्व ही जशपुर जिले के बगीचा नगर पंचायत स्थित वार्ड क्रमांक 9 गम्हरिया में हाथियों के हमले में चार लोंगों की जान चली गई। इस तरह की खबरें छत्तीसगढ़ में एक दो दिनों में आना आम हो गया है।
एक आंकड़े के अनुसार छत्तीसगढ़ में पिछले 10 वर्षों में हाथियों के साथ संघर्ष के कारण 595 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है और इस संघर्ष में प्रति वर्ष औसतन 54 से अधिक लोगों की जान जा रही है। 2021-22 में 95 लोगों की मृत्यु हुई, जबकि 2022-23 और 2023-24 में यह संख्या 77 थी। 2024 में अब तक काफ़ी लोगों की मृत्यु हो चुकी है। इन घटनाओं के साथ-साथ, फसलों और संपत्ति को भी बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है। 2019 से 2023 के बीच, छत्तीसगढ़ में 60,000 से अधिक घटनाओं में फसलों को नुकसान पहुंचा है।
हाथी का धार्मिक महत्व
भले ही हाथियों द्वारा जान माल की हानि हो रही हो, लेकिन हाथियों के प्रति अभी भी जनमानस की धार्मिक आस्था बनी हुई इसलिए अधिक हाथी मानव के बदले का शिकार नहीं हो रहे। धार्मिक रुप से देखें तो हमारे समक्ष हाथी का प्रमुख धार्मिक रूप प्रथम पूजनीय भगवान गणेश के रूप में है, जिनका सिर हाथी का है। गणेश हिंदू धर्म में विघ्नहर्ता और बुद्धि के देवता माने जाते हैं। गणेश को सुख, समृद्धि, और शुभ कार्यों के प्रारंभ में पूजा जाता है। गणेश चतुर्थी, एक प्रमुख त्योहार, उन्हें समर्पित है। हिंदू धर्म में, हाथी इंद्र देवता का वाहन भी है, जिसे ऐरावत नाम से जाना जाता है। यह सफेद हाथी पौराणिक कथाओं में बहुत ही शक्तिशाली और पूजनीय माना जाता है।
बौद्ध धर्म में, हाथी को बुद्ध के जन्म से जोड़कर देखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान बुद्ध की माँ माया देवी को उनके गर्भधारण से पहले एक सफेद हाथी ने सपने में दर्शन दिया था। जैन धर्म में भी हाथी का महत्व है। भगवान महावीर की कुछ मूर्तियों में उनके साथ हाथी दिखाए जाते हैं।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
प्राचीन भारतीय राजाओं और सम्राटों के दरबार में हाथी शक्ति, समृद्धि, और शौर्य का प्रतीक माना जाता था। युद्ध में हाथियों का उपयोग सेना की ताकत के रूप में किया जाता था, और हाथी की सवारी करना शाही प्रतिष्ठा का सूचक था।भारत में कई त्योहार और परंपराएँ हाथियों के साथ जुड़ी हुई हैं। जैसे, दक्षिण भारत के प्रसिद्ध “त्रिसूर पूरम” त्योहार में हाथियों का सुसज्जित जुलूस निकाला जाता है। राजस्थान में भी हाथी महोत्सव मनाया जाता है, जिसमें हाथियों को सजाया जाता है और उनकी शोभायात्रा निकाली जाती है। भारतीय कला और वास्तुकला में हाथियों की मूर्तियों का महत्वपूर्ण स्थान है। मंदिरों और महलों में हाथियों की नक्काशी देखने को मिलती है, जो उनकी प्रतिष्ठा और महत्व को दर्शाती है। अजंता और एलोरा की गुफाओं में भी हाथियों की अद्भुत कलाकृतियाँ मिलती हैं।
प्राकृतिक और पारिस्थितिक महत्व
हाथी भारतीय जंगलों के पारिस्थितिक तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। वे वनस्पतियों के बीज फैलाने और जंगलों के संरक्षण में मदद करते हैं। हाथी भारतीय संस्कृति में लोकप्रियता का प्रतीक बन गया है। हाथी सफारी, राष्ट्रीय उद्यानों में हाथियों के दर्शन, और धार्मिक स्थलों पर हाथियों का महत्व आज भी जीवित है।
जैव विविधता संतुलन एवं संरक्षण में हाथियों की भूमिका
हाथी जैव विविधता संतुलन और संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हाथी बड़े क्षेत्र में घूमते हैं और विभिन्न पौधों के बीजों को अपने मल के माध्यम से फैलाते हैं। वे एक स्थान से दूसरे स्थान तक बीजों को पहुंचाते हैं, जिससे जंगलों में नई पौधों की वृद्धि होती है। कई पौधे और पेड़ की प्रजातियाँ हाथियों पर निर्भर होती हैं कि वे उनके बीजों को फैलाएं ताकि वनस्पति का पुनर्जनन हो सके।
हाथी बड़े-बड़े पेड़-पौधों को खाते हैं और उन्हें नष्ट भी करते हैं। इससे जंगल में पेड़-पौधों का घनत्व संतुलित रहता है, जो कि अन्य प्रजातियों के लिए महत्वपूर्ण होता है। यह प्रक्रिया नए पौधों को उगने के लिए स्थान और प्रकाश प्रदान करती है, जिससे जैव विविधता में वृद्धि होती है।
हाथी अपने बड़े आकार और ताकत के कारण जंगलों में पानी के स्रोतों का निर्माण और रखरखाव करते हैं। वे मिट्टी को खोदकर जल स्रोतों को खोलते हैं, जिससे अन्य वन्यजीवों और पौधों को भी पानी मिलता है। हाथी जंगलों में पैदल चलते हैं और घास के मैदानों, झाड़ियों और जंगलों के बीच सीमा बनाते हैं। इससे विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों के निर्माण में मदद मिलती है, जिसमें अलग-अलग प्रकार के वन्यजीव और पौधे फलते-फूलते हैं। हाथियों की मृत्यु के बाद उनके अवशेष कई अन्य प्रजातियों के लिए भोजन का स्रोत बनते हैं। इससे पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का चक्र चलता रहता है।
हाथी केवल एक विशाल जीव नहीं हैं, बल्कि वे अपने पर्यावरण में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाते हैं जो कि पारिस्थितिक संतुलन और जैव विविधता के संरक्षण के लिए आवश्यक हैं। हाथियों के प्राकृतिक आवासों का संरक्षण करना जरूरी है, क्योंकि इससे अन्य कई प्रजातियों का संरक्षण भी होता है। मानव-हाथी संघर्ष को कम करने के लिए उनके आवास क्षेत्रों का विस्तार और पुनरुद्धार जैव विविधता के संरक्षण में मददगार हो सकता है।
समस्या के समाधानिक प्रयास
राज्य सरकार और वन विभाग इस समस्या के समाधान के लिए कई प्रयास कर हैं, हाथियों को फ़सलों से दूर रखने के लिए विद्युत बाड़ों का निर्माण किया जा रहा है, हाथियों के लिए कारीडोर बनाये जा रहे हैं, स्थानीय लोगों को भी हाथियों के व्यावहार के प्रति जागरुक किया जा रहा है, जिससे वे सुरक्षित रह सकें तथा हाथियों द्वारा किये गये नुकसान से प्रभावित लोगों को राहत एवं क्षतिपूर्ति भी दी जाती है।
छत्तीसगढ़ में मानव-हाथी द्वंद एक जटिल और गंभीर समस्या है, जिसके समाधान के लिए समग्र और दीर्घकालिक रणनीति की आवश्यकता है। वन्यजीव संरक्षण और मानव जीवन की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखना अनिवार्य है। इसके लिए सरकार, वन विभाग और स्थानीय समुदायों के बीच सहयोग की आवश्यकता है ताकि मानव और हाथी दोनों के अस्तित्व को सुरक्षित किया जा सके।
लेखक भारतीय लोक संस्कृति, पुरातत्व एवं इतिहास के जानकार हैं।