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भारत की अर्थव्यवस्था की मजबूती और भविष्य की संभावनाएँ : आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25

भारत सरकार की वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारामन द्वारा 31 जनवरी 2025 को लोक सभा में आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 प्रस्तुत किया गया। यह सर्वेक्षण देश की आर्थिक स्थिति का व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत करता है और आगामी वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए संभावित आर्थिक परिदृश्य को दर्शाता है।

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है, हालांकि वैश्विक आर्थिक अस्थिरता के कारण कुछ चुनौतियाँ भी बनी हुई हैं। वित्तीय वर्ष 2025-26 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.3 से 6.8 प्रतिशत के बीच रहने की संभावना व्यक्त की गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में मांग में वृद्धि देखी गई है, विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में, जहाँ अच्छे मानसून के कारण रबी की फसल बेहतर होने की संभावना है। इससे खाद्य महंगाई दर नियंत्रित रहने की उम्मीद है और नागरिकों की क्रय शक्ति में वृद्धि होगी।

विनिर्माण क्षेत्र में अभी भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं। इस क्षेत्र की जीडीपी में हिस्सेदारी अपेक्षित रूप से नहीं बढ़ रही है। इसके लिए भूमि, श्रम एवं पूंजी की लागत को कम करने की आवश्यकता है ताकि उत्पादन लागत घटे और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में भारतीय उत्पादों की स्थिति मजबूत हो।

सेवा क्षेत्र की वृद्धि दर सराहनीय बनी हुई है। प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ मेले के कारण धार्मिक पर्यटन और होटल व्यवसाय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। उत्तर प्रदेश सरकार के अनुसार, महाकुंभ मेला 2 लाख करोड़ रुपये के अतिरिक्त व्यवसाय और 25,000 करोड़ रुपये की सरकारी आय उत्पन्न करने में सहायक होगा। इससे रोजगार के लाखों नए अवसर सृजित हुए हैं।

आर्थिक सर्वेक्षण में इस बात पर जोर दिया गया है कि मध्यमवर्गीय परिवारों की संख्या में वृद्धि से अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा, क्योंकि यही वर्ग विभिन्न उत्पादों की मांग उत्पन्न करता है। समावेशी विकास के तहत गरीबी रेखा से ऊपर आने वाले परिवारों को पुनः गरीबी में जाने से रोकने के लिए सतत प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।

वैश्विक आर्थिक परेशानियों के चलते भारत के निर्यात में वृद्धि अपेक्षित स्तर पर नहीं हो पाई है। इससे विदेशी व्यापार घाटा बढ़ रहा है और विदेशी मुद्रा भंडार में भी गिरावट देखी जा रही है। भारतीय रुपये की कीमत पर भी दबाव बना हुआ है। हालांकि, विदेशी निवेश में गिरावट को अस्थायी समस्या बताया गया है और यह उम्मीद जताई गई है कि वैश्विक परिस्थितियों के स्थिर होते ही भारत में विदेशी निवेश पुनः बढ़ेगा।

लोक सभा और विभिन्न राज्य विधानसभाओं के चुनावों के कारण 2024-25 में सरकार के पूंजीगत व्यय में कमी आई थी। केंद्र सरकार द्वारा 11.11 लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन अब केवल 9 लाख करोड़ रुपये के व्यय की संभावना है। कंपनियों से भी आग्रह किया गया है कि वे अपने पूंजीगत खर्च बढ़ाएँ जिससे उत्पादन और रोजगार में वृद्धि हो।

भारतीय रिजर्व बैंक से भी ब्याज दरों में कटौती पर विचार करने की सिफारिश की गई है ताकि औद्योगिक उत्पादन की लागत को कम किया जा सके और आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जा सके। हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक ने मुद्रा बाजार में 1.5 लाख करोड़ रुपये की तरलता बढ़ाई है, जिससे बैंकों द्वारा कर्ज वितरण आसान हो सकेगा।

वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 324 लाख करोड़ रुपये और 2025-26 में 357 लाख करोड़ रुपये तक पहुँचने की संभावना है। इससे भारत अगले 2-3 वर्षों में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में अग्रसर होगा।

बजट घाटा वित्तीय वर्ष 2022-23 में 6.4 प्रतिशत था, जो 2023-24 में 5.6 प्रतिशत तक घट गया। अब 2024-25 में इसे 4.8 प्रतिशत और 2025-26 में 4.5 प्रतिशत तक लाने का अनुमान है। यह संकेत देता है कि सरकार की वित्तीय रणनीतियाँ सफल हो रही हैं।

स्टार्टअप और नवाचार: भारत में स्टार्टअप संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए सरकार विभिन्न प्रोत्साहन योजनाएँ चला रही है।

हरित ऊर्जा और सतत विकास: सौर एवं पवन ऊर्जा क्षेत्र में निवेश बढ़ने की उम्मीद है जिससे दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

डिजिटल अर्थव्यवस्था: डिजिटल इंडिया कार्यक्रम और यूपीआई के माध्यम से लेन-देन में लगातार वृद्धि हो रही है, जो आर्थिक पारदर्शिता को बढ़ा रहा है।

आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 से यह स्पष्ट होता है कि भारत की अर्थव्यवस्था अनेक वैश्विक एवं आंतरिक चुनौतियों के बावजूद स्थिर एवं विकासशील बनी हुई है। सरकार की वित्तीय रणनीतियाँ और नीतिगत सुधार देश के आर्थिक विकास को गति देने में सहायक होंगे। यदि आर्थिक सुधार और निवेश प्रवाह को बनाए रखा जाए, तो भारत न केवल आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में भी एक मजबूत स्थान प्राप्त करेगा।

 

लेखक युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट एवं आर्थिक मामलों पर दृष्टि रखते हैं।

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