भारत की आर्थिक प्रगति: झूठे विमर्शों के पीछे की सच्चाई

वैश्विक स्तर पर आर्थिक जगत में भारत का उदय कुछ देशों को रास नहीं आ रहा है। विकसित देशों के बीच, पूरे विश्व में भारत आज सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बना हुआ है। जापान, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली आदि देशों से आगे निकलते हुए भारत आज विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। शीघ्र ही, लगभग एक वर्ष के बाद, जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए भारत के विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के आसार भी अब स्पष्टतः दिखाई दे रहे हैं।
भारत एक ओर, अत्याधुनिक तकनीक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एवं डाटा सेंटर जैसे क्षेत्रों में पूरे विश्व का नेतृत्व करता हुआ दिखाई दे रहा है, तो दूसरी ओर, वित्तीय क्षेत्र में ऑनलाइन व्यवहारों के मामले में भी भारत आज कई देशों का मार्गदर्शन करता हुआ दिखाई दे रहा है। कुल मिलाकर, भारत आज लगभग प्रत्येक क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनते हुए, विश्व के अन्य देशों पर अपनी निर्भरता को कम करता जा रहा है।
भारत के विकास की यह गति एवं राह कुछ देशों को बिल्कुल उचित नहीं लग रही है, एवं वे वैमनस्य का भाव पालते हुए, भारत के विरुद्ध एक बार पुनः कुछ झूठे विमर्श गढ़ने का प्रयास कर रहे हैं।
हाल ही में, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 2,730 अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है, जबकि बांग्लादेश में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 2,870 अमेरिकी डॉलर है। इस प्रकार, भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद, प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के मामले में बांग्लादेश जैसे छोटे देश से भी पीछे है।
अतः यह झूठा विमर्श गढ़ने का प्रयास किया जा रहा है कि भारत में किस प्रकार का आर्थिक विकास हो रहा है, जिससे भारतीय नागरिकों की आय तो उतनी तेजी से नहीं बढ़ पा रही है, जिस तेजी से भारत का आर्थिक विकास होता हुआ दिखाई दे रहा है।
आंकड़ों का उचित तरीके से विश्लेषण न करते हुए, भारत के संदर्भ में गलत जानकारी देने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि किसी भी मामले में तुलना दो आमों के बीच ही सम्भव है — आम एवं संतरे के बीच तुलना कैसे सम्भव है? भारत की जनसंख्या 140 करोड़ है, जबकि बांग्लादेश की जनसंख्या केवल 17 करोड़ से कुछ ही अधिक है।
भारत एक विशाल देश है, जिसमें 60 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या आज भी गांवों में निवास करती है। भारत में 28 राज्य एवं 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं। बांग्लादेश, भारत के सामने एक पिद्दी सा देश है। यदि तुलना करनी ही हो, तो भारत की तुलना चीन से की जा सकती है। इसी प्रकार, बांग्लादेश की तुलना स्विट्ज़रलैंड, नीदरलैंड, स्वीडन आदि जैसे छोटे देशों से की जा सकती है।
स्विट्ज़रलैंड में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 99,564 अमेरिकी डॉलर, नीदरलैंड में 64,572 अमेरिकी डॉलर एवं स्वीडन में 55,516 अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति है।
ब्रिटेन ने जब भारत में अपनी सत्ता को छोड़ा था — अर्थात, भारत ने वर्ष 1947 में जब राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त की थी — तब भारत की 70 प्रतिशत से अधिक आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही थी। परंतु आज केवल 4 से 4.5 प्रतिशत भारतीय ही गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं।
जबकि बांग्लादेश में लगभग 19 प्रतिशत नागरिक गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने को मजबूर हैं। भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आकार आज 4.19 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के आंकड़े को पार कर गया है, जबकि बांग्लादेश के सकल घरेलू उत्पाद का आकार केवल लगभग 46,700 करोड़ अमेरिकी डॉलर का है।
सकल घरेलू उत्पाद को देश की कुल जनसंख्या से बांटकर ही प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़े को प्राप्त किया जा सकता है। भारत की जनसंख्या 140 करोड़ से अधिक है, जबकि बांग्लादेश की जनसंख्या मात्र 17 करोड़ है। इससे प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद का आंकड़ा बांग्लादेश की तुलना में कुछ कम हो जाता है।
भारत में पिछले कुछ वर्षों के दौरान बहुत संतुलित विकास हुआ है। भारत में न केवल धनाढ्यों की संख्या में अपार वृद्धि दर्ज हुई है, बल्कि गरीबी उन्मूलन पर भी पर्याप्त ध्यान दिया गया है, जिससे गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले नागरिकों की संख्या में भी अतुलनीय कमी दर्ज हुई है।
बांग्लादेश की तुलना में भारत एक विशाल देश है, एवं भारत के कई राज्यों — यथा महाराष्ट्र, गुजरात एवं तमिलनाडु आदि — का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद, बांग्लादेश की तुलना में दुगने से तिगुने आकार का है।
इसी प्रकार, भारत के राज्य अभी भी कुछ पिछड़े राज्यों की श्रेणी में शामिल हैं, जैसे — बिहार, झारखंड आदि। परंतु किसी भी देश के प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद का औसत निकालते समय, देश के समस्त राज्यों के आंकड़ों को शामिल करना होता है। इस कारण से भी भारत में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद का औसत कुछ कम हो जाता है।
हाल ही के समय में एक और कुतर्क दिया जा रहा है कि भारत में तेज गति से हो रही आर्थिक प्रगति के बीच भी बच्चों की जन्म-मृत्यु की दर अफ्रीकी देशों के समान बनी हुई है। इस प्रकार का झूठा विमर्श गढ़ते समय, संभवतः वास्तविक स्थिति की ओर ध्यान ही नहीं दिया गया है।
रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की एसआरएस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 1,000 शिशुओं के जन्म के बीच शिशुओं की जन्म-मृत्यु दर केवल 26 है, जबकि अफ्रीकी देशों — यथा नाइजीरिया में 67, कांगो में 62 एवं इथियोपिया में 34 — है। इन सभी अफ्रीकी देशों की तुलना में भारत में शिशुओं की जन्म-मृत्यु दर कम है। अतः भारत अब अफ्रीकी देशों से इस मामले में बहुत आगे निकल आया है।
हाँ, इस संदर्भ में भारत की तुलना यदि विकसित देशों — जैसे अमेरिका में 5 एवं जापान में 2 — से की जाएगी, तब जरूर भारत में इस स्थिति को अभी और अधिक सुधारने की आवश्यकता है, जिसके लिए केंद्र सरकार लगातार प्रयास कर रही है।
विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार बहुत तेज गति से किया जा रहा है। जिला स्तर पर मेडिकल कॉलेजों की स्थापना की जा रही है। भारत में इस संदर्भ में क्षेत्रीय विषमता भी दिखाई देती है। जैसे, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली जैसे विकसित राज्यों में शिशुओं के जन्म के बीच जन्म-मृत्यु दर 10–15 के बीच ही है, जबकि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं बिहार जैसे राज्यों में यह 40–50 के बीच बनी हुई है।
हालाँकि, धीरे-धीरे इन राज्यों में भी तेजी से सुधार दृष्टिगोचर है। देश में संस्थागत प्रसव की दर में सुधार हुआ है, परंतु जननी सुरक्षा, पोषण एवं टीकाकरण के क्षेत्रों में, विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में, अभी भी प्रयासों को गति दी जा रही है।
इसी प्रकार, ग्रामीण इलाकों में अति पिछड़े परिवारों (विशेष रूप से अनुसूचित जनजाति के क्षेत्रों में) के बीच गंदे पानी का उपयोग, कुपोषण, प्रसव के पूर्व की देखभाल में कमी के चलते, शिशुओं के जन्म के बीच जन्म-मृत्यु दर को अभी और कम किया जाना शेष है।
भारत में हालाँकि स्वास्थ्य सेवाओं में तेजी से सुधार हुआ है, पर कुछ राज्यों पर अभी भी विशेष ध्यान केंद्रित कर ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ नीति से स्वास्थ्य सेवाओं को संतुलित किया जा रहा है।
एक तीसरा झूठा विमर्श और खड़ा किया जा रहा है कि जब भारत आर्थिक प्रगति के पथ पर तेज गति से दौड़ रहा है, तो फिर 80 करोड़ नागरिकों को मुफ्त अनाज क्यों उपलब्ध कराया जा रहा है?
तथ्यात्मक रूप से यह सही है कि भारत में “प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना” के अंतर्गत, केंद्र सरकार द्वारा देश के 80 करोड़ नागरिकों को 5 किलो मुफ्त राशन प्रति माह उपलब्ध कराया जा रहा है।
दरअसल, भारत में अभी भी गरीबी पूर्ण रूप से समाप्त नहीं हुई है। सरकार का यह परम कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों को पर्याप्त मात्रा में भोजन उपलब्ध करवाए।
कोरोना महामारी के खंडकाल में, देश के नागरिकों पर आई प्राकृतिक आपदा के चलते, करोड़ों की संख्या में नागरिकों ने अपने रोजगार खोए थे। इस गंभीर समय में, केंद्र सरकार ने अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन करते हुए, देश के गरीब नागरिकों को उक्त योजना के अंतर्गत खाद्य सामग्री उपलब्ध कराना प्रारंभ किया था, जो आज भी जारी है।
दरअसल, इसी योजना के चलते भारत में आज लाखों परिवार गरीबी रेखा से ऊपर उठकर, मध्यम श्रेणी परिवार की श्रेणी में शामिल हो गए हैं एवं देश के आर्थिक विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
कोरोना महामारी के खंडकाल में, महंगाई एवं बेरोजगारी के दौर में, देश के नागरिकों को आजीविका की गारंटी देना आवश्यक था। जब तक देश के समस्त परिवार आत्मनिर्भर नहीं हो जाते, तब तक इसे एक “ट्रांजिशनल सिक्योरिटी नेट” माना जा सकता है।
हाँ, आगे आने वाले 3–5 वर्षों के दौरान, इस योजना के अंतर्गत शामिल नागरिकों की संख्या को कम जरूर किया जाना चाहिए, क्योंकि जो परिवार अब गरीबी रेखा से ऊपर उठकर मध्यम श्रेणी परिवार की श्रेणी में शामिल हो गए हैं, ऐसे परिवारों को उक्त योजना का लाभ अब बंद किया जाना चाहिए।