स्वच्छ जल और पर्यावरण की प्रहरी फुरफुन्दी
ड्रैगन फ्लाई बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय रहा है। जिसकी पूंछ में धागा बांध कर उड़ाते बच्चे कहते थे ‘ उड़ मेरी फुरफुन्दी’…। वैसे छत्तीसगढ़ इसका नाम फुरफुन्दी चर्चित है। सावन,भादों में बच्चों के बीच इसे पकड़ने के लिए होड़ लग जाती थी, कि किसने कितनी पकड़ी और लाल पंखों वाला राजा किसके हाथ लगा। फुरफुन्दी पकड़ना आसान भी नहीं था। छोटे-छोटे पौधों पर इधर से उधर, कभी आगे, कभी पीछे उड़ने वाली फुरफुन्दी जिसे दबे पांव चुपचाप पकड़ना पड़ता था। पर अब ऐसा नजारा देखने को नहीं मिलता। बदलती जीवनशैली में यह खेल विलुप्त हो गया।
वर्षा और स्वच्छ जल संकेतक –
वैसे फुरफुन्दी वर्षा का संकेत देती है। बारिश होने के पहले यह आसमान में हजारों की संख्या में उड़ते दिखती है। जब यह झुंड में दिखती है तो अच्छी वर्षा का संकेत माना जाता है। फुरफुन्दी का जीवन पानी से शुरू होता है। यह जहां पाई जाती है वहां का पानी साफ होता है। फुरफुन्दी अपने अंडे साफ पानी में देती है और पानी के अंदर ही इसके अंडे फूटते हैं और वह पानी में ही रहते हैं जब कुछ बड़े होते हैं तब यह बाहर आते हैं। इस वाटर इकोसिस्टम का इंडिकेटर भी कहा जाता है। फुरफुन्दी जहां पाई जाती है वहां की नदी, तालाब का पानी साफ है यह समझ जा सकता है।
मक्खी, मच्छर नियंत्रण –
धरती पर सबसे पहले उड़ने वाले जीव में फुरफुन्दी आती है जिसे 30 करोड़ साल पहले से देखा जा रहा है। तब डायनासोर भी धरती पर नहीं थे। रंग बिरंगी फुरफुन्दी की 5000 ज्यादा प्रजातियां पाई जाती है। यह अपनी अनोखी विचित्र उड़ान में माहिर होती है। यह कभी आगे उड़ती है, तो कभी पीछे भी उड़ती है, ऊपर और नीचे कब आ जाए यह पता ही नहीं चलता। बच्चे इसके रुप और चपलता को देख पकड़ने को आतुर हो उठते हैं। रंग-बिरंगे पंखों वाली फुरफुन्दी के सिर पर बड़ी-बड़ी गोल आंखें होती है जो 360 डिग्री तक घूमकर देख सकती है। उड़ते-उड़ते ही फुरफुन्दी मक्खी और मच्छर को अपना शिकार बना लेती है। मक्खी और मच्छर के नियंत्रण में फुरफुन्दी का योगदान महत्वपूर्ण है।
फुरफुन्दी के नाम अनेक –
बढ़ते जल प्रदूषण के कारण फुरफुन्दी सिमटने लगी है। यह पूरे भारत भर में पाई जाती है और बच्चों में काफी लोकप्रिय रही है। ग्रामीण परिवेश में इसे अनेक नाम से जाना जाता है। बिहार में फतिंगा, सिकसिकिया, टेटे, फलेगी पूर्वी बिहार में टुकली, मैथिली में टिकनी कहा जाता है। झारखंड में टेटे, टेट बुनिया, डीलू,भिन्ना, गुरही बाघडुलू तो उत्तर प्रदेश में टेकुआ, भाभीरी, टर्रई पुकारते हैं।मध्य प्रदेश में बर्रा,सौधिया, जुलाहा तितली, छत्तीसगढ़ में फुरफुन्दी बस्तर में फुलफुंदरा, झोड़िया और गुगे नाम से जाना जाता है। महाराष्ट्र में गंजा, भिंभोरा चतुर, तो उड़ीसा में बिरनी जोलाहा कहा जाता है। हर जगह इसका एक अलग नाम भले ही हो पर सभी जगह बच्चों का खेल एक जैसा है जिसकी पूंछ में धागा बांधकर उड़ाते थे।
बारिश होना का संकेत देने वाली फुरफुन्दी तेजी से खत्म हो रही है। स्वच्छ जल में जीवन यापन करने वाली बढ़ते जल प्रदूषण के कारण विलुप्त हो रही है। स्वच्छ जल स्त्रोतों और वर्षा का संकेत देने के साथ मक्खी, मच्छर को नियंत्रण करने वाला एक छोटा-सा जीव अपने अस्तित्व को कब तक बनाए रखेगा यह कहा नहीं जा सकता।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार हैं।