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डॉक्टर अंकल

बात उस समय की है जब हम नागपुर आए थे। नई जगह, नए लोग और अलग भाषा। सबकुछ अलग सा था। मुश्किल से हम आसपास के लोगों की बात समझ पाते थे। एक दो घर छोड़कर पूरी कॉलोनी मराठी भाषी थी।
उन्हीं में से एक थे डॉक्टर अंकल।

लगभग पैसठ से सत्तर के उम्र के होंगे वे। हिंदी बोलने के कारण बेटा अंशुल उनके साथ बहुत हिलमिल गया था, रोज उनके साथ शतरंज खेलने जाता था।

डॉक्टर अंकल ने विवाह नही किया था। अकेले ही रहते थे। मोहल्ले के सारे आवारा कुत्ते उनको बहुत प्यार करते थे, शाम को जैसे ही उनके ऑफिस से घर वापसी का समय होता, सारे कुत्ते उनके स्वागत में कॉलोनी के द्वार पर खड़े रहते।

उनकी स्कूटर के साथ साथ सभी दोनों तरफ से दौड़ते हुए घर तक आते, अंकल उनके खाने के लिए रोज कुछ न कुछ लाते थे। उनके पूरे घर पर उन कुत्तों का अधिकार था, वो कहीं भी बैठ या सो सकते थे। अंकल कहते थे ये मेरा परिवार हैं।

अंकल मुझे भी बेटी जैसा मानते थे। पहली बार घर से दूर आए थे हम लोग, तो उनका स्नेह परिवार के बड़ों जैसा लगता। हम लोग किसी भी तीज त्यौहार पर, जब भी भोपाल जाते तो पैर छूकर उनका आशीष लेना नही भूलते । एक मुख्य बात थी कि उन्हें हमारे हाथ से बनी सब्जी खाना का बहुत लालच था, शायद अकेले होने से उन्हें घर के खाने की याद आती होगी।

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हम भी हमेशा अंशुल के हाथ से उनके लिए सब्जी भेज देते थे। वे अकेले रहते थे इसलिए मैं कभी भी उनके घर नही गई थी।

उनका कोल का काफी बड़ा व्यवसाय था, एक बार उन्होंने हमसे ये भी कहा कि हम लोग उनका बिज़नेस संभाल लें, उसके बदले में उनकी यही इच्छा थी कि उनका नाम जीवित रहे, इसके लिए उन्होंने कई बार हमसे आग्रह, प्रार्थना भी की। लेकिन हमने कहा “अंकल आपके परिवार में कोई भी हो आप उन्हे ये सब दीजिए। हम ये नही कर सकते। इसके लिए आप हमे क्षमा करें”

तो उन्होंने बहुत दुखी होकर कहा कि मैं तुम्हे अपना सहारा मानता हूं, मेरा कोई नही है, मुझे कुछ होगा तो कौन करेगा?

हमने उन्हें विश्वास दिलाया कि आपके हर दुःख तकलीफ़ में हम साथ रहेंगे, आप सिर्फ़ अपना आशीर्वाद हमें दीजिएगा, हमें सबकुछ मिल जायेगा।

वो इतना भी ध्यान रखते थे कि हम सुबह की सैर पर जाते हैं या नहीं। उनके डर से हम सुबह उठकर घूमने जाते कि शाम को अंकल पूछेंगे तो क्या ज़वाब देंगे।

लगभग एक साल बाद अंशुल स्कूल से आकर उनके घर शतरंज खेलने गया तो वे लेटे हुए थे। अंशुल से बोले मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही है अपनी मम्मी को बुलाकर ले आओ। उस दिन पहली बार हम उनके घर गए।
उनकी हालत काफी ख़राब लग रही थी। उन्होंने सुबह से कुछ खाया भी नही था। खाने के लिए मना कर रहे थे वो। तो हमने उनके लिए घर से दूध भिजवाया। हॉस्पिटल चलने कहा तो बोले “सत्येंद्र के आने के बाद उनके साथ ही जाऊंगा!”
ये चार बजे फेक्ट्री से आए। हमने आते ही उन्हें डॉक्टर अंकल के पास भेजा उन्हें।

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अंकल की हालत ठीक नहीं लगी उन्हे भी। उन्होंने अंकल से तुरंत हॉस्पिटल चलने कहा। लेकिन लगभग एक घंटे बाद अंकल ने अपनी स्कूटर इनको दी और पीछे बैठकर हॉस्पिटल गए। पहले उन्हें प्राइवेट हॉस्पिटल लेकर गए, जहाँ डॉक्टर ने परीक्षण करके बताया कि इन्हें हार्ट अटैक आया है, तुरंत लता मंगेशकर हॉस्पिटल ले जाओ। वहाँ जाते ही उन्हें ७२ घंटे के लिए आई सी यू में भर्ती कर लिया गया। उनकी हालत काफ़ी नाज़ुक थी।

हॉस्पिटल में उन्होंने डॉक्टर से बताया था कि ये दोनो मेरे बेटा बहू हैं। लेकिन नाज़ुक हालत जानकर हमने डॉक्टर से कहा कि हम इनके सिर्फ़ पड़ोसी हैं आप उनसे उनके घर वालों की जानकारी लीजिए और उन्हें सूचित कीजिए।
एक दिन वे ठीक रहे। दूसरे दिन मैं उनसे मिलने गई तो बहुत बैचेन दिख रहे थे। कभी पंखा चालू करवाते, तो कभी बंद करवाते। बोले “देखो बेटा ! मैने मौत को भी मात दे दी” उसके बाद अपनी पुरानी बातें बताते रहे।

वापसी में मैंने पूछा “अंकल क्या खाएंगे आज?” बस जैसे उनको तो खज़ाना ही मिल गया। बहुत सारी फरमाइशें एक साथ बता डाली उन्होंने।

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हमने डॉक्टर से पूछा कि ये सब दे सकते हैं क्या उन्हें? तो वे बोले वैसे तो इन्हे सर्फ लिक्विड डाइट ही देना है पर उनकी इच्छा है तो भेज दीजिए।

घर आकर हमने जल्दी जल्दी उनकी पसंद की सारी चीजें बनाई। बस डिब्बे में भर ही रहे थे कि पड़ौस के घर में फोन(तब मोबाईल फोन नही थे) आ गया कि अंकल नही रहे। और इस तरह डॉक्टर अंकल चले गए। मुझे आज भी याद आती है जाने के दो दिन पहले बोल रहे थे “आजकल तबीयत कुछ ठीक नहीं रहती है बेटा” तो हमने उन्हें पुनः आश्वस्त किया था कि आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए अंकल ! हम हैं न! हम सब करेंगे आपका।

उन्होंने झुककर कहा था “बेटा! जब पेट को तकलीफ़ होती है ना, तो वह घुटने के पास ही जाता है” तुम हमारे लिए ऐसे ही हो, और मुझे पूरा भरोसा है तुम दोनों पर।

शायद किसी जन्म का क़र्ज़ बाकी होगा हम लोगों पर उनका जो हमें उनकी सेवा का अवसर और उनका आशीष मिला।

जानवर भी अपनी वफादारी निभाता है ये भी आंखों से देखा है हमने! कई महीनों तक सारे कुत्ते हमारे घर की तरफ आकर आस लगाए देखते थे कि अंकल को यही लेकर आयेंगे।

 

संस्मरण लेखिका

श्रीमती संध्या शर्मा
नागपुर, महाराष्ट्र