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वर्तमान युग में क्या है डिजिटल साक्षरता : अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस

हर साल 8 सितंबर को मनाया जाने वाला अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस हमें शिक्षा और सशक्तिकरण के महत्व की याद दिलाता है। साल 2025 की थीम, “डिजिटल युग में साक्षरता को बढ़ावा देना,” आज की तेजी से बदलती डिजिटल दुनिया में साक्षरता की भूमिका को रेखांकित करती है। यह थीम केवल पढ़ना-लिखना सीखने तक सीमित नहीं है, बल्कि डिजिटल उपकरणों के साथ सूचनाओं को समझने, मूल्यांकन करने और सुरक्षित रूप से उपयोग करने की क्षमता पर जोर देती है।

डिजिटल साक्षरता: एक नई परिभाषा

डिजिटल साक्षरता का मतलब है डिजिटल उपकरणों और प्लेटफॉर्म का उपयोग करके जानकारी प्राप्त करना, उसका विश्लेषण करना, और उसे नैतिक रूप से साझा करना। यह पारंपरिक साक्षरता से कहीं आगे जाती है, क्योंकि इसमें गोपनीयता, साइबर सुरक्षा, और महत्वपूर्ण सोच जैसे कौशल शामिल हैं। उदाहरण के लिए, एक डिजिटल साक्षर व्यक्ति न केवल कंप्यूटर चालू कर सकता है या इंटरनेट से जानकारी प्राप्त कर सकता है, बल्कि वह गलत सूचनाओं को पहचानकर डिजिटल दुनिया में नैतिक निर्णय भी ले सकता है।

यूनेस्को के अनुसार, डिजिटल साक्षरता में डिजिटल सामग्री तक पहुंच, उसका निर्माण, और सुरक्षित उपयोग शामिल है। यह व्यक्तिगत विकास, सामाजिक समानता, और आर्थिक प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन वैश्विक स्तर पर डिजिटल साक्षरता की दर केवल 40% है, जबकि इंटरनेट उपयोगकर्ता 5.56 अरब (विश्व की 67.9% आबादी) हैं। यह अंतर डिजिटल विभाजन को उजागर करता है, जो खासकर विकासशील देशों में स्पष्ट है।

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वैश्विक और भारतीय परिदृश्य

वैश्विक स्तर पर, 739 मिलियन युवा और वयस्क अभी भी बुनियादी साक्षरता से वंचित हैं, और 2.6 अरब लोग इंटरनेट से कटे हुए हैं। यह डिजिटल डिवाइड ग्रामीण क्षेत्रों में और भी गंभीर है, जहां बुनियादी ढांचे और संसाधनों की कमी है। अमेरिका जैसे विकसित देशों में भी 21% वयस्क डिजिटल रूप से निरक्षर हैं, जो इस समस्या की व्यापकता को दर्शाता है।

भारत में स्थिति मिश्रित है। देश में 80 करोड़ से अधिक डिजिटल उपयोगकर्ता हैं, लेकिन केवल 38% घरेलू डिजिटल साक्षर हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह दर 25% है, जबकि शहरी क्षेत्रों में 61%। ग्रामीण भारत में केवल 51% स्कूलों में कार्यात्मक कंप्यूटर और 53% में इंटरनेट की सुविधा है, जो शिक्षा में डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने में बाधा है।

चुनौतियां: डिजिटल युग की बाधाएं

डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने में कई चुनौतियां हैं। सबसे बड़ी बाधा है पहुंच की कमी। ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमजोर समुदायों में इंटरनेट और उपकरणों की अनुपलब्धता एक बड़ा मुद्दा है। इसके अलावा, साइबरबुलिंग, गलत सूचना, और डेटा गोपनीयता जैसे खतरे डिजिटल साक्षरता को जटिल बनाते हैं। विकलांग व्यक्तियों के लिए डिजिटल उपकरणों की पहुंचनीयता भी एक गंभीर समस्या है।

डिजिटल डिसइनफॉर्मेशन (गलत सूचना) एक और चुनौती है, जो मीडिया साक्षरता को प्रभावित करती है। भारत में, उदाहरण के लिए, ग्रामीण क्षेत्रों में सूचना सत्यापन की कमी और निष्क्रिय उपभोग डिजिटल साक्षरता के लाभों को सीमित करते हैं। पर्यावरणीय प्रभाव भी एक चिंता का विषय है, क्योंकि डिजिटल उपकरणों का उत्पादन और उपयोग ऊर्जा खपत को बढ़ाता है।

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समाधान: नीतियां और पहलें

इन चुनौतियों से निपटने के लिए वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर कई पहलें शुरू की गई हैं। यूनीसेफ की डिजिटल शिक्षा पहलें हाशिए पर रहने वाले बच्चों को डिजिटल कौशल प्रदान करती हैं। डीक्यू फ्रेमवर्क 24 अंतरराष्ट्रीय ढांचों को एकीकृत कर डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देता है। वर्ल्ड लिटरेसी फाउंडेशन की डिजिटल लाइब्रेरी मुफ्त संसाधन उपलब्ध कराती है, और मेटा जैसे संगठन डिजिटल कौशल प्रशिक्षण को बढ़ावा दे रहे हैं।

भारत में, प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (पीएमजीडीआईएसएचए) ने 6 करोड़ लोगों को डिजिटल साक्षर बनाने का लक्ष्य रखा है। आईक्यूब सर्वेक्षण के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की वृद्धि शहरी क्षेत्रों से दोगुनी है, जो इस दिशा में प्रगति को दर्शाता है। समुदाय-आधारित कार्यक्रम, जैसे स्थानीय स्तर पर डिजिटल प्रशिक्षण केंद्र, भी प्रभावी साबित हो रहे हैं।

डिजिटल साक्षरता का प्रभाव

डिजिटल साक्षरता का प्रभाव व्यापक है। यह शिक्षा, रोजगार, और सामाजिक जुड़ाव को बढ़ावा देती है। डिजिटल साक्षर व्यक्ति नौकरियों के नए अवसरों का लाभ उठा सकते हैं, खासकर गैर-कृषि क्षेत्रों में। उगांडा में, ईसीडब्ल्यू की एक पहल से बुनियादी डिजिटल कौशल 18% से बढ़कर 34% हो गए, जिससे आर्थिक सशक्तिकरण को बल मिला। भारत में भी, डिजिटल साक्षरता ने ग्रामीण युवाओं को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से रोजगार के अवसर प्रदान किए हैं।

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यह सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने में भी मदद करती है, खासकर गरीबी उन्मूलन और समानता को बढ़ावा देने में। डिजिटल साक्षरता गोपनीयता संरक्षण और डेटा विश्लेषण जैसे कौशलों को बढ़ावा देती है, जो एक समावेशी समाज के लिए आवश्यक हैं।

भविष्य की संभावनाएं

भविष्य में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और मोबाइल लर्निंग डिजिटल साक्षरता को और बढ़ाएंगे। पीआईएसए 2025 जैसे मूल्यांकन डिजिटल दुनिया में सीखने पर ध्यान केंद्रित करेंगे। हालांकि, नई डिजिटल डिवाइड को रोकने के लिए समावेशी नीतियां जरूरी हैं। भारत में ग्रामीण डिजिटल विकास की गति आशाजनक है, लेकिन गुणवत्ता और पहुंच को और बेहतर करने की आवश्यकता है।

डिजिटल युग में साक्षरता को बढ़ावा देना केवल एक तकनीकी आवश्यकता नहीं, बल्कि एक सामाजिक और आर्थिक जरूरत है। यह समावेशी समाज का निर्माण करती है, जहां हर व्यक्ति डिजिटल दुनिया में सशक्त होकर भाग ले सकता है। वैश्विक स्तर पर 739 मिलियन निरक्षरों की समस्या को हल करने के लिए नीतियों, शिक्षा, और सामुदायिक पहलों का एकीकृत प्रयास जरूरी है। भारत जैसे देशों में, जहां डिजिटल उपयोगकर्ताओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है, डिजिटल साक्षरता एक समान और समृद्ध भविष्य की कुंजी हो सकती है।

-न्यूज एक्सप्रेस डेस्क