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देवी-देवताओं का न्यायालय: बस्तर की लोक परंपराओं में न्याय का अनोखा रूप

कृष्णदत्त उपाध्याय,केशकाल

केशकाल| महज इंसान को ही नहीं देवी देवता भगवान को भी अपना कर्म करते फर्ज का निर्वाह करना होता है नहीं तो देवी देवता भगवान को भी सजा भुगतना पड़ता है यह अगर अपनी आंखों से देखना और जानना समझना हो तो एक अच्छा अवसर है आज ।

आज शनिवार को केशकाल घाटी के उपर तथा केशकाल सुरडोंगर के आबादी से दूर जंगल पहाड़ के किनारे निर्जन वन क्षेत्र में विराजमान मां भंगाराम का जातरा होगा वंही बड़े राजपुर ब्लाक के ग्राम खल्लारी

से सटे हुए जंगह पहाड़ के पठार पर गढ़ मावली के दर पर और सीमावर्ती धमतरी जिला के नगरी ब्लाक अंर्तगत कारी पानी कुर्सी घाट के बीच विराजित मां भंगाराम देवी एवं के दर पर जातरा होगा । बताया जाता है कि पूर्व में यह बस्तर रियासत क्षेत्र में आता था और बस्तर राजघराने के द्वारा ही यहां पर जातरा की परम्परा प्रारंभ कराया गया था ।

इन तीनों स्थान पर आज देवी देवताओं का मेला भरेगा और देवी देवताओं का अदालत लगेगा । केशकाल एवं कारी पानी कुर्सी घाट के बीच लगने वाले जातरा में भंगाराम मां और मांझीनगढ़ में गढ़ मावली देवी देवी देवताओं के मामलों फैसला करेगी । इंसानी अदालत की भांति आरोप सिद्ध न होने पर बाईज्जत बरी नहीं तो सिद्ध अपराध अनुसार ही यहां भी फैसला सुनाया जाता है । दिये जाने वाले फैसले में पूजा पाठ से कुछ दिनों के लिए वंचित रहने या तय समय-सीमा तक कारावास भुगतने से लेकर सजाए मौत तक की भी सजा दिया जा सकता है । भारतीय न्याय व्यवस्था की तरह यहां भी सुनवाई होती है अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाता है और आरोप अपराध के अनुकूल ही सजा भी दिया जाता है ।

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बस फर्क यह होता है कि आम अदालत में वादी प्रतिवादी आरोपी फरियादी दोनों इंसान ही होते हैं पर यहां ऐसा नहीं होता । यंहा वादी फरियादी इंसान होता है और आरोपी के कटघरे में होता है देवी देवता भगवान ।
इन तीनों स्थल के देवी जातरा में देवी के क्षेत्र में आने वाले गांव के सभी देवी देवताओं का आगमन होता है और जिसके चलते देवी देवताओं का मेला भर जाता है ।

देवी देवताओं के सांथ उनके पुजारी सिरहा एवं उनके गांव के गांयता ग्राम प्रमुख मांझी मुखिया पटेल एवं अगाध आस्था रखने वाले ग्रामीण भी आते हैं ।

बहुत बड़ी संख्या देवी देवता और उनके भक्त जातरा में इंसानी आबादी से दूर पहाड़ जंगल के बीच इकट्ठा होते हैं और आस्था का शैलाब उमड़ता है तो एक अद्भूत रोमांचकारी नजारा होता है । बस्तर के ग्रामीण अंचल में रहने वाले लोग जो यहां के स्थानीय देवी देवता पूजा पाठ परम्परा रीति-रिवाज को जानते समझते हैं उनके लिए भले यह सहज सामान्य लगता है पर बस्तर के शहरी क्षेत्र में रहने वाले तथा बाहर से आने वाले लोगों के लिए यह हैरतअंगेज और बहुत कौतुहलभरा लगता है ।

मां को प्रसन्न कर खुशहाली के लिए सेवा – पूजा तो विघ्न भगाने रवाना लेकर पंहुचते है—
जातरा में पंहुचने वाले मां को प्रसन्न कर अपने और गांव के खुशिहाली के लिए सेवा पूजा लेकर आते हैं ।जिसमें चांवल तेल हल्दी फूल धूप अगरबत्ती होता है ।
वंही गांव को अनिष्टकारी अवांछित आफत बला आफत से बचायें रखने रवाना लेकर आते हैं । जिसमें मुर्गी का बच्चा इत्यादि रहता है जिसको लाने का अंदाज भी बहुत खास रहता है ।
जातरा में गांव गांव से सेवा पूजा – रवाना लेकर पंहुचने वाले मां से अपने पूरे गांव वालों को दैवीक दैहिक आपदा से बचायें रखने और पूरे गांव वालों को धन धान्य से परिपूर्ण रखते खुशहाल रखने की अर्जी करते हैं । 

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महिलाओं का प्रवेश वर्जित-
जातरा में महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है और यह केशकाल मांझीनगढ एवं कारी पानी तीनों ही जगह पर है ।
महिलाओं का प्रवेश वर्जित करने के पीछे महिलाओं की उपेक्षा अपमान के भाव से नहीं बल्कि महिलाओं के सुरक्षा के भाव से यह परम्परा बनाई गई है । चूंकि जातरा में लोग अपने अपने गांव से अनिष्टकारी अवांछनीय शक्ति को रवाना बतौर लेकर आते हैं जो महिलाओं को परेशानी में न डाल दें इस सोच से महिलाओं को मात्र जातरा के दिन सम्मिलित नहीं होने दिया जाता । शेष बाकि दिनों में तथा मेला में महिलाऐं ससम्मान सम्मिलित होती है देवी स्थल पर जाकर दर्शन पूजन करती है ।

कारी पानी -कुर्सी घाट की मां भंगाराम

अपना अपना क्षेत्र—
केशकाल की मां भंगाराम के जातरा में 11 परगना के अंर्तगत आने वाले गांव के देवी देवता आते हैं तो मांझीनगढ में 72 गांव गढ के और कारी पानी- कुर्सीघाट के भंगाराम मां के दर पर होने वाले जातरा में नगरी क्षेत्र के 16 परगना ओडिसा राज्य के 7 पाली तथा बस्तर के 20कोस के देवी देवता सम्मिलित होते हैं ।
और समय समय पर होने वाले पूजा पाठ एवं अन्य दैवीय कार्य में अपने अपने प्रभाव क्षेत्र के अंर्तगत आने वाले देवी देवता सहभागी बनते हैं ।
जातरा का समय एक पर अदालत का अलग-अलग समय—- इन तीनों स्थान पर जातरा का समय एक है लगभग 4-5बजे सभी जगह देवी देवता एक सांथ अपने साज बाज के साथ इकट्ठा होते हैं और माता के द्वार पर पंहुचने पर पधारे हुए देवी देवताओं का परम्परागत ढंग से स्वागत सत्कार किया जाता है ।जिसके बाद पधारे हुए देवी देवता माता के समक्ष नतमस्तक होकर मेल मिलाप करते हैं । और उसके बाद वर्ष भर नियत स्थान पर डाले गये रवाना को स्थाई स्थल (कारागार स्थल ) पर डाला जाता है ।
केशकाल भंगाराम मां के दर पर शनिवार को जातरा सेवा पूजा होता है रविवार सुबह सभी देवी देवता उपस्थित होते हैं और सुबह मां भंगाराम की अदालत लगती है ।
वंही मांझींगढ में मां मावली एवं कारी पानी – कुर्सी घाट वाली भंगाराम के दर पर शनिवार को ही देवी देवताओं की अदालत लग जाता है जिसे स्थानीय भाषा में जांच कहते हैं ।

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गढ़ मावली के पुत्र लिंगों सोनकुंवर पाट

भंगाराम को बगैर सिंग का काला भेंड़ तो सोनकुंवर में सफेद बकरा—
मां भंगाराम में पहले भैंसा की बलि दी जाती थी पर समय के सांथ परिवर्तन आया और मां भंगाराम को काले रंग का बगैर सिंग वाले भेंड़ की बलि दिया जाने लगा । इसलिए अब हर जातरा में मां को चढ़ाने काले रंग का बगैर सिंग का भेंड़ तलाश कर लाया जाता है ।
इसी तरह से मांझीनगढ के मां गढ़वाली मावली के पुत्र लिंगों सोनकुंवर को सफेद बकरा सफेद मुर्गा मुर्गी ही चढ़ाया जाता है ।

डाक्टर खान देव—यह किवदंती है कि डाक्टर खान देव डाक्टर थे जो ईलाज किया करते थे । जिनकी मृत्यु हो गई जिसके बाद उन्हें देव बतौर माना और पूजा जाने लगा । डाक्टर खान देव की जवाबदेही होती है पूरे अंचल को संक्रामक जानलेवा बिमारी महामारी से बचाये रखना ।डां खान देव की भी ससम्मान तन्हा स्थापित किया गया है और उन्हें अंडा चढ़ाया जाता है ।

डाक्टर खान देव