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राफेल-एम और स्कॉर्पीन पनडुब्बियों को लेकर भारत-फ्रांस के बीच दो बड़ी रक्षा डीलें अंतिम चरण में

भारत और फ्रांस के बीच करीब ₹64,000 करोड़ की महात्वाकांक्षी रक्षा डील को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने मंजूरी दे दी है। इस डील के तहत भारतीय नौसेना के लिए 26 राफेल मरीन लड़ाकू विमान खरीदे जाएंगे, जो स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत से उड़ान भरेंगे।

सरकार से सरकार के बीच होने वाले इस समझौते में 22 सिंगल-सीट राफेल-एम और 4 ट्रेनर संस्करण शामिल हैं। इसके साथ ही हथियार प्रणाली, सिमुलेटर, क्रू प्रशिक्षण और पांच वर्षों का लॉजिस्टिक सपोर्ट भी पैकेज का हिस्सा है। यह डील कुछ ही दिनों में आधिकारिक रूप से साइन होने की संभावना है।

इसके साथ ही भारतीय वायुसेना के लिए पहले खरीदे गए 36 राफेल विमानों के अपग्रेड्स, अतिरिक्त उपकरण और स्पेयर पार्ट्स भी इस समझौते में शामिल हैं। सभी 26 राफेल-एम लड़ाकू विमान 2030 से पहले भारतीय नौसेना को सौंपे जाएंगे।

सूत्रों के मुताबिक, नौसेना के लिए इन विमानों में विशेष तकनीकी सुधार किए जाएंगे। डील में पहले प्रस्तावित DRDO द्वारा विकसित AESA रडार को शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि इसे जोड़ने में ज्यादा समय और लागत लगती।

इस समय नौसेना के पास केवल 40 मिग-29के विमान ही हैं, जो दो विमानवाहक पोत – आईएनएस विक्रमादित्य और आईएनएस विक्रांत से संचालन करते हैं। लेकिन इन रूसी विमानों की तकनीकी समस्याएं और सीमित सेवाक्षमता ने राफेल-एम को एक अंतरिम समाधान के रूप में जरूरी बना दिया।

इसके साथ ही भारत-फ्रांस के बीच एक और महत्वपूर्ण डील भी लगभग तैयार है – ₹33,500 करोड़ की लागत से तीन अतिरिक्त स्कॉर्पीन डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों का निर्माण। इन पनडुब्बियों का निर्माण मुंबई स्थित मजगांव डॉकयार्ड लिमिटेड (MDL) द्वारा फ्रांसीसी कंपनी नेवल ग्रुप के सहयोग से किया जाएगा।

पहली पनडुब्बी अगले छह वर्षों में तैयार होगी, और बाकी दो साल-दर-साल अंतराल पर। ये पनडुब्बियां पहले से निर्मित छह कलवरी श्रेणी की पनडुब्बियों से बेहतर और तकनीकी रूप से अधिक उन्नत होंगी।

DRDO द्वारा विकसित फ्यूल सेल-आधारित एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) प्रणाली को इन पनडुब्बियों में बाद में जोड़ा जाएगा, जिससे उनकी पानी के नीचे टिके रहने की क्षमता काफी बढ़ जाएगी।

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