ऐतिहासिक ‘नमक सत्याग्रह’ के आज पूरे हुए 95 साल

(ब्लॉगर एवं पत्रकार )
क्या आपको याद है कि आज 6 अप्रैल की तारीख़ हमारे स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक यादगार दिवस के रूप में दर्ज है ? यही वह यादगार दिन है, जिसे हममें से अधिकांश लोग भूल गए हैं, जब 95 साल पहले 6अप्रैल 1930 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में उनके साबरमती आश्रम से दांडी के समुद्रतट तक 358 किलोमीटर लम्बी एक ऐतिहासिक पैदल यात्रा सम्पन्न हुई थी। यह सत्याग्रह यात्रा गांधी जी के साबरमती आश्रम से 12मार्च 1930 को शुरु हुई थी।
हमारी ज़िन्दगी में नमक जैसी छोटी लेकिन बहुत जरूरी चीज का क्या महत्व है, इसे आप और हम ज़रूर जानते हैं, लेकिन कृपया थोड़ा समय निकालकर याद कीजिए उस दौर को, जब देश की जनता को नमक बनाने के नैसर्गिक अधिकार से भी वंचित कर दिया गया था और इस अधिकार के लिए उसे महात्मा गांधी के नेतृत्व में अहिंसक सत्याग्रह करना पड़ा था!
करीब 60 हजार लोग हुए थे शामिल
ब्रिटिश हुकूमत के जन-विरोधी नमक कानून के ख़िलाफ़ गांधीजी के नेतृत्व में करीब 60 हजार लोगों ने सत्याग्रह करते हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिस्सा लिया था गाँधीजी की अगुवाई में दांडी पद यात्रा की शुरुआत अहमदाबाद के पास उनके साबरमती आश्रम से 12 मार्च 1930 को हुई और जो लगभग 25 दिनों के बाद 6 अप्रैल 1930 को समुद्र के किनारे दांडी पहुँची ,जहाँ महात्मा गांधी ने स्वयं अपने हाथों से नमक बनाने का काम शुरू करके साम्राज्यवादी ब्रिटिश सरकार को एक गहरा झटका दिया । उनके साथ तमाम सत्याग्रहियों ने भी नमक बनाकर इस काले कानून को तोड़ा। सत्याग्रहियों की इस पदयात्रा को नमक सत्याग्रह और दांडी मार्च के नाम से भी जाना जाता है ।
क्यों हुआ था नमक सत्याग्रह ?
आज इस ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह के 94 साल पूरे हो गए। क्यों हुआ था यह सत्याग्रह ? इसकी पृष्ठभूमि पर एक नज़र दौड़ाना भी जरूरी है।दरअसल तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने एक कानून के जरिये भारतीयों को नमक बनाने के अधिकार से वंचित कर दिया था और नमक पर भारी टैक्स लगा दिया था। लोगों की सामान्य ज़िन्दगी से जुड़ी नमक जैसी सामान्य लेकिन ज़रूरी वस्तु पर टैक्स लगाना और एकाधिकार कायम करना निश्चित रूप से अंग्रेजों का एक अमानवीय कृत्य था। इसके फलस्वरूप जनता काफी महंगी कीमतों पर नमक खरीदने के लिए मज़बूर हो गयी थी । परम्परगत रूप से नमक बनाने वाले छोटे किसान और कारोबारी भी काफी परेशान हो गए थे। इस तानाशाहीपूर्ण काले कानून को तोड़ने के लिए गांधीजी ने शांतिपूर्ण और अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन के रूप में अपने 78 साथियों को लेकर पैदल दांडी मार्च निकाला । लोग साथ जुड़ते गए और कारवां बनता गया ।
गिरफ़्तार हुए थे लगभग 8 हजार सत्याग्रही
इस लम्बी पदयात्रा में उन्हें रास्ते में हज़ारों लोगों का भरपूर सहयोग और समर्थन मिला। जानकार लोग बताते हैं कि गांधीजी और उनके साथी रास्ते के गाँवों और कस्बों में आज़ादी की अलख जगाते हुए हर दिन 16 से 19 किलोमीटर चलते थे। आंदोलन में गाँधीजी के साथ लगभग 8 हज़ार सत्याग्रही गिरफ़्तार हुए थे
एक साल बाद रिहा हुए थे गांधीजी
महात्मा गांधी को एक साल बाद जेल से रिहा किया गया। हमारे स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में 6 अप्रैल वह यादगार तारीख़ है ,जब 1930 में इसी दिन गाँधीजी ने विदेशी हुकूमत के काले कानून को तोड़कर आज़ादी की लम्बी लड़ाई में जोश और जुनून के नये रंग भर दिए ।
दांडी में बना विशाल स्मारक
स्वतंत्रता संग्राम के इस महत्वपूर्ण पड़ाव की स्मृतियों को चिरस्थायी बनाने के लिए सरकार ने दांडी में एक विशाल स्मारक भी बनवाया है ,जहाँ गांधीजी और उनके सहयात्रियों की आदमकद मूर्तियाँ स्थापित की गयी हैं , जिनमें दांडी मार्च की झलक देखी जा सकती है। महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर 30 जनवरी 2019 को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने यह स्मारक राष्ट्र को समर्पित किया था।
देश की नयी पीढ़ी को नमक सत्याग्रह के बारे में विस्तार से बताया जाना चाहिए ,ताकि उसे मालूम तो हो कि हमें आज़ादी यूं ही नहीं मिल गयी । इसके लिए सामाजिक – आर्थिक मोर्चे पर भी लम्बी और कठिन लड़ाई लड़नी पड़ी । इस लम्बे संघर्ष में कई निर्णायक मोड़ और यादगार पड़ाव भी आते -जाते रहे। साबरमती से दांडी तक हुआ नमक सत्याग्रह भी इस संघर्ष का एक ऐसा पड़ाव था ,जिसकी स्मृतियों को धूमिल होने से बचाना हम सबकी ज़िम्मेदारी है।