छत्तीसगढ़ का सीताफ़ल आईसक्रीम एवं पल्प के रुप में बाजार में उपलब्ध
छत्तीसगढ़ में ॠतुफ़ल सीताफ़ल (शरीफ़ा) बहुतायत में मिलता है तथा यहाँ के इस फ़ल का स्वाद अनुपम है। दशहरे एवं दीपावली के बीच इसकी फ़सल बहुतायत में बाजार में आती है, परन्तु सारी फ़सल बाजार तक नहीं पहुंच पाती। क्योंकि सीताफ़ल पकने के बाद जल्दी खराब हो जाता है। अगर अधिक दिन रखा गया तो फ़फ़ूंद भी लग जाती है। जिससे इसका निर्यात भी नहीं किया जा सकता या अन्य प्रदेशों में नहीं भेजा जा सकता।
तो इसका तोड़ निकाला गया कि पल्प बनाकर बेचा जाए, जिससे अन्य लोग भी सीताफ़ल का स्वाद ले सकें। इसके लिए प्रसंस्करण करने की आवश्यकता थी। प्रशासन एवं कृषि वैज्ञानिकों के सहयोग से प्रसंस्करण किया जाने लगा एवं डिब्बा बंद पल्प अब ग्रामीण कृषकों की आमदनी का बड़ा साधन बन गया है। इसके पल्प से बनी आईसक्रीम बाजार में बहुत पसंद की जा रही है।
सीताफल के पल्प से स्वादिष्ट आइसक्रीम बनाकर उसे राजधानी रायपुर और दुर्ग, भिलाई जैसे शहरों में बेचने का कारोबार शुरू करने पर श्रीमती चन्द्रमणि कौषी और उनके महिला स्व-सहायता समूह की आमदनी दोगुनी हो गई है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी हाल ही में वीडियो कॉन्फ्रेसिंग में श्रीमती चन्द्रमणि से बातचीत में उनके इस सामूहिक कारोबार की भरपूर तारीफ की थी।
कृषि विभाग के अधिकारियों ने आज श्रीमती चन्द्रमणि के हवाले से बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री को वीडियो कॉन्फ्रेसिंग में सीताफल के पल्प से हो रही दोगुनी आमदनी के बारे में बताया था, ना कि धान की खेती से। उन्होंने महिला समूह बनाकर सीताफल प्रसंस्करण उद्योग शुरू किया है।
श्रीमती चन्द्रमणि ने कहा कि एक चैनल के द्वारा उनसे दो एकड़ की धान की खेती से दोगुनी आमदनी होने का सवाल पूछा गया था। उन्होंने चैनल को बताया था कि धान की खेती से नहीं, बल्कि (श्रीमती चन्द्रमणि ने) सीताफल से हमारी दोगुनी हुई है, लेकिन उनके इस वाक्य को पूरा नहीं दिखाया गया। कुछ अन्य टीव्ही चैनल के प्रतिनिधि जब उनसे इस बारे में जानकारी लेने पहुंचे तो उन्होंने बताया – हम लोग सीताफल के बारे में काम करते हैं और मैंने तो डायरेक्ट प्रधानमंत्री जी से ये कहा कि हमें प्रशिक्षण मिला और अब पल्प निकालते हैं, उससे आमदनी दोगुनी हुई है। हमने पल्प के बारे में दोगुनी आमदनी की बात कही थी, ना कि धान की खेती से।
श्रीमती चन्द्रमणि ने वीडियो कॉन्फ्रेसिंग में प्रधानमंत्री को यह जरूर बताया था कि हम लोग पहले दो एकड़ में धान लगाते थे, लेकिन उसमें ज्यादा बेनिफिट (लाभ) नहीं मिलता था। मतलब 15 हजार से 20 हजार रूपए तक हमको आमदनी होती थी। हमारे परिवार को उसमें सर्न्तुिष्ट नहीं होती थी। फिर हम लोगों ने गांव की 10-15 महिलाओं ने मिलकर एक समूह जोड़ा और कृषि विभाग की आत्मा परियोजना के तहत प्रशिक्षण लेकर सीताफल के पल्प से आइसक्रीम बनाने का कारोबार शुरू किया।
प्रधानमंत्री ने जब उनसे पूछा कि पहले की तुलना में अब आय कितनी बढ़ गई तो उन्होंने बताया कि अभी दोगुनी हो गई है। मेरे साथ काम करने वाली महिलाओं की आमदनी भी दोगुनी हो गई है। पहले कोचिया (बिचौलिए) लोग 20 किलो सीताफल को 50-60 रूपए में ठगकर ले जाते थे। हम लोग कृषि विभाग की आत्मा परियोजना से जुड़े। उसके बाद हम लोग सीधे 700 रूपए (सात सौ रूपए) मुनाफा कमा रहे हैं।
कृषि विभाग के अधिकारियों ने यह भी बताया कि कांकेर जिले में सीताफल के उत्पादन को देखते हुए वर्ष 2015-16 से वहां विभाग द्वारा ‘सीता परियोजना’ शुरू की है, जो सफलतापूर्वक चल रही है। इस परियोजना से श्रीमती चन्द्रमणि सहित कई महिलाओं को स्व-सहायता समूह बनाकर जोड़ा गया है।
सीताफल मधुर फल है । अब उसको उगाने वाले को अच्छा मुनाफा देकर उनके लिए भी सुमधुर साबीत हो रहा है, यह अच्छी बात है ।हमारे यहाँ अम्बाजी के आसपास भी सीताफल उगाने वाले पल्प बनाकर ज्यादा मुनाफा कमा रहे है ।