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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में रेडियो की भूमिका : राष्ट्रीय प्रसारण दिवस विशेष

आचार्य ललित मुनि

स्वतंत्रता संग्राम में जहाँ एक ओर जन-आंदोलन, सत्याग्रह, क्रांतिकारी गतिविधियाँ और राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका प्रमुख रही, वहीं दूसरी ओर संचार माध्यमों ने भी एक चुपचाप लेकिन निर्णायक भूमिका निभाई। उस समय एकमात्र प्रसारण केन्द्र अंग्रेजों के अधीन था। तब सूचना एवं समाचारों को ब्रिटिश अपने हित एवं पक्ष में प्रसारित करते थे। उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं पर सेंसरशिप लगाकर रोक-टोक बढ़ा दी थी। ऐसे समय में रेडियो के माध्यम से सूचना प्रसारण की नई तकनीक ने एक वैकल्पिक सूचना-स्रोत और विचारों के प्रचार-प्रसार का सशक्त माध्यम बनकर स्वतंत्रता सेनानियों का साथ दिया। उन्होंने अपना गुप्त रेडियो स्टेशन स्थापित किया तथा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जनमत तैयार करने एवं आंदोलन को गति देने के लिए इसका उपयोग किया गया।

भारत में पहला रेडियो प्रसारण 23 जुलाई 1927 को बॉम्बे (वर्तमान मुंबई) में इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कम्पनी (IBC) द्वारा आरंभ किया गया। तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने इसका उद्घाटन किया था। हालांकि यह शुद्ध रूप से वाणिज्यिक मनोरंजन और समाचार हेतु था, लेकिन 1936 में जब ऑल इंडिया रेडियो (AIR) की स्थापना हुई, तब से सरकार ने इस माध्यम पर अपना पूर्ण नियंत्रण कर लिया। ब्रिटिश सरकार ने रेडियो का उपयोग अपने प्रचार-तंत्र के रूप में शुरू किया। समाचार, युद्ध की जानकारी, वायसराय के भाषण और अंग्रेज़ी संस्कृति को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम इसमें शामिल थे। लेकिन जनता की असली आवाज़स्वतंत्रता, असहमति और संघर्ष को—यहाँ कोई स्थान नहीं था।

ब्रिटिश सरकार ने AIR को नियंत्रित किया हुआ था। कोई भी समाचार प्रसारित करने से पहले ‘सेंसर’ अधिकारियों की अनुमति लेनी पड़ती थी। क्रांतिकारी विचार, गांधी जी के भाषण या कांग्रेस की घोषणाएँ आदि सब प्रतिबंधित थे। विशेष रूप से 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन‘ के समय, जब कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और समाचारपत्रों पर सेंसरशिप लगा दी गई, तब भारत में एक स्वतंत्र आवाज़ की जरूरत महसूस हुई।

इस पृष्ठभूमि में “कांग्रेस रेडियो” की स्थापना का विचार आना एक ऐतिहासिक कदम था। उषा मेहता और उनके कुछ क्रांतिकारी साथियों ने मुंबई में एक गुप्त स्थान पर रेडियो ट्रांसमीटर स्थापित किया। यह कार्य आसान नहीं था—तकनीकी उपकरण जुटाना, सही फ्रीक्वेंसी का चुनाव करना और सबसे कठिन ब्रिटिश पुलिस की निगरानी से बचना—यह सब जोखिम भरा था। लेकिन इन युवाओं ने हिम्मत नहीं हारी।

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कांग्रेस रेडियो की गुप्त रूप से शुरुआत 27 अगस्त 1942 को हुई। इसका उद्देश्य ब्रिटिश सेंसरशिप को दरकिनार कर स्वतंत्रता आंदोलन की जानकारी जनता तक पहुँचाना था। इस रेडियो की मुख्य सूत्रधार थीं उषा मेहताराम मनोहर लोहिया और भीवराव कुलकर्णी जैसे विचारक और कार्यकर्ता इसमें तकनीकी व वैचारिक सहयोगी थे तथा तकनीकी पक्ष को संभालने में एक रेडियो इंजीनियर नानक मोटवानी का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

“यह कांग्रेस रेडियो है – स्पीकिंग फ्रॉम समवेयर इन इंडिया” की उद्घोषणा से प्रसारण शुरू हुआ। यह उद्घोषणा स्वयं उषा मेहता द्वारा की गई थी और यह ब्रिटिश साम्राज्य के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई। पहली बार, जनता को पता चला कि देश की आवाज़ अब भी ज़िंदा है। कांग्रेस रेडियो पर महात्मा गांधी, सरदार पटेल और पंडित नेहरू जैसे नेताओं के भाषण, गिरफ्तार किए गए नेताओं की खबरें, अंग्रेजों की दमनात्मक कार्रवाइयों की रिपोर्ट और आंदोलन की दिशा से संबंधित जानकारी प्रसारित की जाती थी। कुछ कार्यक्रमों में लोगों को यह भी बताया जाता था कि वे स्थानीय स्तर पर किस प्रकार शांतिपूर्ण विरोध कर सकते हैं, सत्याग्रह कैसे चलाना है।

शाम के समय आमतौर पर 7:30 बजे का प्रसारण होता था और यह 15 मिनट से 30 मिनट तक चलता था।

एक विशेष घटना का उल्लेख करना आवश्यक है। जब गांधीजी को गिरफ्तार कर पुणे के आगा खान महल में नजरबंद कर दिया गया और सरकार ने उनके किसी भी वक्तव्य को प्रेस में प्रकाशित होने से रोक दिया, तब गांधीजी ने जेल से एक लंबा पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश सत्ता की नैतिकता पर प्रश्न उठाए। इस पत्र को कांग्रेस रेडियो के माध्यम से पढ़ा गया और उसकी रिकॉर्डिंग प्रसारित की गई। यह प्रसारण सुनने के बाद लाखों लोगों में जोश भर गया और कई नए क्षेत्रों में आंदोलन शुरू हो गया।

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लेकिन इस रेडियो को संचालित करना दिन पर दिन कठिन होता जा रहा था। सरकार के खुफिया विभाग (CID) ने इसके ट्रांसमिशन सिग्नल को ट्रैक करने के प्रयास शुरू कर दिए। हर प्रसारण के बाद, उषा मेहता और उनके साथी अपना ठिकाना बदल देते थे। कभी किसी दवा की दुकान के ऊपर, कभी किसी निजी मकान के तहखाने में—इस रेडियो का प्रसारण स्थल लगातार बदलता रहा।

हालांकि ब्रिटिश CID आखिरकार इस रेडियो के पीछे के स्रोत तक पहुँच ही गई। नवंबर 1942 में एक छापे में उषा मेहता और उनके कुछ सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी के समय भी वे रेडियो ट्रांसमिशन की तैयारी में जुटे हुए थे। उन पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें पाँच साल की कठोर कारावास की सज़ा सुनाई गई। उषा मेहता को जेल में कई यातनाएँ दी गईं, लेकिन उन्होंने अपने साथियों के नाम तक नहीं बताए।

हालांकि कांग्रेस रेडियो का सक्रिय जीवन केवल लगभग तीन महीने रहा, लेकिन उसका प्रभाव व्यापक था। इसने यह साबित कर दिया कि जब असहमति की आवाज़ों को कुचला जाता है, तब संचार के नए मार्ग बनते हैं। रेडियो तरंगों पर सवार होकर स्वतंत्रता की पुकार लाखों भारतीयों तक पहुँची और उन्हें यह अहसास हुआ कि वे अकेले नहीं हैं

इधर द्वितीय विश्वयुद्ध (1939–1945) के दौरान ब्रिटिश सरकार ने रेडियो को युद्ध-प्रचार का माध्यम बना दिया। वे अपनी सेना की “विजय” की खबरें और समाचार प्रचारित करने लगे। लेकिन इन्हीं दिनों “जर्मनी रेडियो” पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के संदेशों ने स्वतंत्रता सेनानियों को नई ऊर्जा दी। सुभाष चंद्र बोस ने रेडियो को एक क्रांतिकारी औज़ार की तरह उपयोग किया। उन्होंने जर्मनी से “फ्री इंडिया रेडियो” (Free India Radio) नामक एक रेडियो सेवा शुरू की, जिससे अंग्रेज़ी, हिंदी, तमिल, बंगाली आदि भाषाओं में भारतवासियों को संबोधित किया जाता था। “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा” जैसे नारे रेडियो के माध्यम से लाखों भारतीयों तक पहुँचे। यह रेडियो सेवा 1942 से 1945 के बीच सक्रिय रही और भारत में ब्रिटिश विरोधी जनभावनाओं को प्रबल किया।

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बाद में, जब नेताजी जापान के सहयोग से आज़ाद हिंद फौज के साथ दक्षिण-पूर्व एशिया पहुँचे, तो आज़ाद हिंद रेडियो (Azad Hind Radio) की स्थापना की गई। यह सिंगापुर, रंगून और हनोई जैसे स्थानों से प्रसारित होता था और इसका मुख्य उद्देश्य भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांति को प्रेरित करना था। नेताजी के क्रांतिकारी संदेशों ने रेडियो को एक भावनात्मक, प्रेरक और उग्र माध्यम बना दिया था। रेडियो ने नेताजी के संदेशों को लाखों लोगों तक पहुँचाया।

इस तरह, स्वतंत्रता सेनानियों ने रेडियो जैसी संचार की नई तकनीक का उपयोग भारत में जनजागरण के लिए किया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान रेडियो कोई सामान्य संचार साधन नहीं रहा। यह एक क्रांतिकारी औज़ार बन गया—एक ऐसा मंच जिसने जनता को जगाया, नेतृत्व को जनता से जोड़ा और ब्रिटिश सेंसरशिप को मात दी। चाहे वह उषा मेहता का साहसिक कांग्रेस रेडियो हो या नेताजी का फ्री इंडिया रेडियोरेडियो तरंगों ने भारत में स्वतंत्रता का बिगुल बजाया।

स्वतंत्रता सेनानियों को राष्ट्रीय प्रसारण दिवस पर सादर नमन

प्रमुख संदर्भ:

  1. त्रिपाठी, रामेश्वर दयालभारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास (1857-1947)
     प्रकाशक: अज्ञेय प्रकाशन, वाराणसी
     विषय: स्वतंत्रता संग्राम में गुप्त रेडियो अभियानों का वर्णन

  2. Chatterjee, Partha (1993). The Nation and Its Fragments: Colonial and Postcolonial Histories
     Princeton University Press
     Congress Radio और ब्रिटिश दमन की रणनीतियों पर चर्चा

  3. Gandhi, Rajmohan (2006). Mohandas: A True Story of a Man, His People and an Empire
     Penguin Books
     भारत छोड़ो आंदोलन की भूमिका में संचार माध्यमों का उपयोग

  4. Usha Mehta’s Interview – All India Radio Archives (AIR), 1985.
     संग्रह: भारतीय प्रसारण संग्रहालय
     विवरण: स्वयं उषा मेहता द्वारा कांग्रेस रेडियो की भूमिका का वर्णन

  5. Indian Express (Published Article, August 8, 2017):
     “Usha Mehta: The woman who gave voice to Quit India Movement”
     URL: https://indianexpress.com/article

  6. All India Radio Official Website – History Section:
     URL: https://newsonair.gov.in
     AIR के पूर्ववर्ती स्वरूपों और स्वतंत्रता संग्राम में रेडियो की भूमिका का विवरण