चिंगरापगार की वादियों में गुंजती कचना घुरुवा की अमर प्रेम कहानी
शस्य श्यामला भूमि छत्तीसगढ़ को प्रकृति ने अपने हाथों से संवारा है एवं इसे अकूत प्राकृतिक खजाना सौंपा है। इसके चप्पे चप्पे में प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा है तो साथ ही सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक लोक गाथाएं भी बिखरी पड़ी हैं। पहले आपको कचना घुरुवा की प्रेमकहानी से अवगत कराते हैं।
कचना घुरुवा का प्राचीन स्थल राजिम गरियाबंद के मुख्य मार्ग पर रायपुर से 77 किमी की दूरी पर स्थित है, जो गोंड़ राजाओं के देवता के रुप में सदियों से पूजनीय हैं। कचना एवं घुरुवा की अमर प्रेम कहानी यहाँ के वनांचल की वादियों में गुंजती है।
लोक गाथाओ में कहा जाता है कि धुरवा के पिता सिंहलसाय लांजीगढ़ के राजा थे, एक समय वहां भयंकर दूर्भिक्ष पड़ा तो वे अपनी रानी गागिन बाई के साथ उड़ीसा के पंड़रापथरा में शरण लिए। सिंहलसाय बुढ़ा देव (शंकर) के परम भक्त थे, जब जंगल में शिकार करने गए तो वहाँ बुढ़ा देव ने दर्शन दिए एवं उसे एक छूरी देकर कहा कि इसे जहाँ तक फ़ेंकोगें वहां तक का राज्य तुम्हारा होगा। छूरी के प्रभाव से प्राप्त छूरा नामक स्थान आज भी गरियाबंद जिले में है।
सिंहलसाय की दुश्मनी बिंद्रानवागढ़ के भुंजिया राजा से हो गयी और उसने मौका पाकर उसकी हत्या कर दी तथा छूरा पर कब्जा कर लिया। इस दौरान रानी गर्भवती थी। उसने उड़ीसा में एक ब्राह्मण के यहाँ शरण ली तथा कचरा फ़ेंकने जाते वक्त घुरुवा (कुड़े के ढेर) में पुत्र को जन्म दे दिया। इस तरह पुत्र का नामकरण घुरुवा हो गया।
घुरुवा जब बड़ा हुआ तो उसे अपने पिता की हत्या के विषय में पता चला। वह सेना बनाकर अपना राज्य वापस लेने निकल पड़ा। बूढ़ादेव एवं जगदम्बा का भक्त होने के कारण तप से प्रसन्न होकर माता ने वरदान दिया कि तुझे न कोई जल में मार सकेगा न थल में। तेरी मृत्यु तभी होगी जब धड़ जल में होगा और सिर धरती पर। लेकिन शराब एवं मांस का सेवन नहीं करना।
वरदान पाकर घुरुवा का विजय अभियान प्रारंभ हो गया, पहले बिंद्रानवागढ़ के राजा को मारकर अपने पिता की हत्या का बदला लिया उसके बाद धरमतराई (धमतरी) की ओर चल पड़ा। एक दिन उसे धरमतराई के राजा धरमपाल की पुत्री कचना सपने में दिखाई दी, ऐसा ही सपना कचना को भी आया और दोनो सपने में ही एक दूसरे का होने का संकल्प कर बैठे।
घुरुवा के धरमतराई पहुंचने पर कचना से मिलन हुआ। दोनों का प्रेम परवान चढ़ा, परन्तु प्रेमियों को सहज प्रेम कहां नसीब होता है। यहाँ का मारादेव भी कचना को चाहता था। उसने घुरुवा को युद्द के लिए ललकारा। छियालिस बार की लड़ाई के बाद भी वह घुरुवा को नहीं जीत सका।
इसके राज का पता लगाने के लिए उसने शराब बेचने वाली कलारिन को माध्यम बनाया। भूलवश घुरुवा ने शराब पीकर वरदान वाली बात कलारिन से कह दी, मारादेव को उसकी मृत्यु का रास्ता पता चल गया। महानदी में उसने घुरुवा को युद्ध के लिए ललकारा एवं उसका सिर काट दिया। धड़ पानी में था तथा शीश भूमि पर गिर गया। घुरुवा की मृत्यु हो गई। कचना ने भी वियोग में प्राण त्याग दिए।
तब से दोनों को प्रेम का अमर प्रतीक मानकर आज तक पूजा जा रहा है। कचना घुरुवा के मंदिर में लोग मिट्टी के घोड़े बैल आदि चढ़ाते हैं तथा मन्नत मांगते हैं।
कचना घुरुवा से मात्र छ: किमी की दूरी पर वन में चिंगरापगार वाटर फ़ॉल स्थित है। आप यहाँ आकर चिगरा पगार वाटर फ़ाल के आनंद के साथ वन विहार कर सकते हैं तथा प्रेम केअमर प्रतीक कचना घुरुवा के भी दर्शन कर युद्धवीर से मनौती मान सकते हैं।
यह स्थान रायपुर राजधानी से 83 किमी की दूरी पर है। यह बरसात के दिनों में यह पूर्ण यौवन पर रहता है। बरसात प्रारंभ होने से लेकर दिसम्बर तक इस झरने में खूब पानी रहता है। प्राकृतिक वनांचल के बीच खड़मा की पहाड़ियों पर चितईकोना से प्रवाहित होने वाली बरसाती नदी से यह झरना बनता है।
यहाँ पहुंचने के लिए रायपुर से राजिम होते हुए कचना घुरुवा के मंदिर तक पहुंचना होता है, यहाँ से एक फ़र्लांग की दूरी पर बांए हाथ को पुल के पहले जंगल की ओर कच्चा रास्ता जाता है, जिस पर साढ़े तीन किमी चलने पर यहाँ पहुंचा जा सकता है। यदि शहर की भीड़ भाड़ से दूर कुछ समय शांति के साथ प्रकृति के आगोश में बिताना हो तो यहाँ पहुंचा जा सकता है।
यह झरना लगभग 80 फ़ुट की ऊंचाई से गिरता है तथा जब यह अपने यौवन पर रहता है तो इसकी फ़ुहारें तन के साथ मन को भी सराबोर कर देती हैं। झरने की फ़ुहारों से निर्मित अलौकिक वातावरण आनंददायक हो जाता है।
सड़क से यहाँ ट्रेकिंग हाईकिंग करके भी पहुंचा जा सकता है, रास्ते में वन की जैव विभिन्नता के साथ वन्य प्राणियों से भी मुलाकात हो सकती है। इस अंचल में विभिन्न प्रकार की तितलियों की भरमार है। इसके साथ ही प्रकृति प्रेमियों को भिन्न-भिन्न प्रजाति के प्रक्षियों के दर्शन भी हो सकते है।
इसके साथ ही इसी मार्ग पर छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहलाने वाले प्रसिद्ध स्थल राजिम के भी दर्शन कर सकते हैं। राजिम में तीन नदियों (पैरी, सोंढूर एवं महानदी) का संगम, कुलेश्वर महादेव, राजीव लोचन मंदिर, रामचंद्र मंदिर तथा सद्य उत्खनित छीता बाड़ी भी देख सकते हैं, यहाँ प्रति वर्ष माघ पूर्णिमा को कुंभ कल्प का आयोजन किया जाता है।
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कैसे पहुंचे…
रायपुर से दूरी
कचना घुरुवा – 77 किमी (20°43’21.3″N 81°59’35.1″E)
चिगरा पगार – 83 किमी (20°42’48.7″N 82°00’43.5″E)
समीपस्थ एयरपोर्ट : रायपुर
समीपस्थ रेल्वे स्टेशन : रायपुर
कचना घुरुवा एवं चिंगरा पगार पहुंचने के लिए टैक्सी एवं सार्वजनिक वाहन उपलब्ध हैं।
अद्भुत एवँ जीवँत वर्णन। इस बार आपके साथ एक दिन की यात्रा पर यहाँ जरूर जाएँगे।
जय जय….. गुरुदेव आलेख पढ़ कर कचना घुरूवा मंदिर और वाटर फाल देखने की इच्छा हो गई है। सुंदर आलेख
लोककथा और कुदरत का अद्भुत मेल । अपने भी दोनों को अच्छे से प्रस्तुत कीया । पढ़कर वाचक की जाने की इच्छा होनी स्वाभाविक है । गुजरात में भी शराब बनाने बेचने वालोंको कलार ही कहते थे । इतनी दूरी पर भी शब्द एक है । वह गौर करने वाली बात हैं ।
सजीव सुंदर वर्णन वाह