छत्तीसगढ़ का छेरछेरा पुन्नी तिहार एवं सामाजिक महत्व
छत्तीसगढ़ अपनी लोक परंपराओं के लिए जाना जाता है। पौष पूर्णिमा को सुबह से ही गाँव गाँव में बच्चों की टोली घूमने लगती है और छेरिक छेरा छेर बरकतीन छेर छेरा। माई कोठी के धान ल हेर हेरा, की पुकार गूंजने लगती है। क्योंकि यहाँ के पर्व-त्यौहार न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का हिस्सा हैं, बल्कि ये समाज को एकजुट करने, प्रकृति का सम्मान करने और सामूहिकता को बढ़ावा देने का माध्यम भी हैं। छत्तीसगढ़ का छेरछेरा पर्व इन्हीं विशिष्ट पर्वों में से एक है, जिसे राज्य भर में उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह त्यौहार मुख्य रूप से फसल कटाई के बाद सामूहिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। बस्तर, सरगुजा, और छत्तीसगढ़ के अन्य क्षेत्रों में इसे अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है, लेकिन इसका मूल उद्देश्य और भावना समान रहती है।
छेरछेरा के रुप में यह पर्व ग्रामीण बैंक के रुप में भी कार्य करता है। छेरछेरा में मांगे हुए धान को बेचा जाता है तथा उसे प्राप्त नगद को, जिसे आवश्यकता हो उन्हें ॠण मदद के रुप में बांट दिया जाता है। उसके बाद अगले वर्ष छेरछेरा को फ़िर बैठका होता है सब लोग इकट्ठे होते हैं, जिन्होंने ॠण लिया था वह उसे सवैया ब्याज समेत जमा करता है। पिछले रुपये और इस वर्ष के रुपयों को मिलाकर फ़िर एक वर्ष के लिए बांट दिया जाता है। इस तरह ग्रामीण बैंक के रुप में छेरछेरा से प्राप्त राशि से लोगों का सहयोग हो जाता है, यह सहकारिता का उत्कृष्ट उदाहरण है, इसमें ॠण डुबने का कोई जोखिम नहीं रहता क्योंकि यह सामाजिक व्यवस्था एवं सुरक्षा के अंतर्गत होता है। छत्तीसगढ़ में रामकोठी की परम्परा प्राचीन काल से ही चली आ रही है, जिसका उद्देश्य आपातकाल में गाँव एवं ग्रामीणों की आर्थिक सहायता करना ही रहा है। आज भी कई ग्रामों में रामकोठी प्रचलन में है।
छेरछेरा पर्व का महत्व
छेरछेरा पर्व छत्तीसगढ़ की ग्रामीण संस्कृति का प्रतिबिंब है। यह पर्व समाज में परोपकार, सामूहिकता और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता को दर्शाता है। फसल कटाई का उत्सव: छेरछेरा पर्व नई फसल के आगमन का जश्न है। यह किसानों के जीवन में एक महत्वपूर्ण समय होता है, जब खेतों से धान की फसल घर में सुरक्षित हो जाती है। इस दिन घरों में नये चावल के पारम्परिक व्यंजन बनाए, खाये जाते हैं। सामाजिक समरसता: यह पर्व समाज के सभी वर्गों को एकजुट करता है। लोग अपनी खुशी और संसाधन दूसरों के साथ साझा करते हैं। प्रकृति और देवताओं का सम्मान: छेरछेरा पर्व के दौरान ग्राम देवताओं और प्रकृति का धन्यवाद किया जाता है, जिससे यह पर्व धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
छेरछेरा पर्व जैव विविधता संरक्षण में एक अप्रत्यक्ष लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह पर्व प्रकृति, कृषि, और सामूहिकता के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। यहां कुछ बिंदु दिए गए हैं जो इस त्यौहार को जैव विविधता संरक्षण से जोड़ते हैं। छेरछेरा पर्व का मुख्य उद्देश्य प्रकृति और फसल के प्रति आभार प्रकट करना है। यह पर्व लोगों को पर्यावरण की महत्ता और उसके संरक्षण के प्रति जागरूक करता है। पारंपरिक पूजा और अनुष्ठानों के माध्यम से लोग पेड़-पौधों, मिट्टी, और जल संसाधनों का महत्व समझते हैं, जो जैव विविधता का आधार हैं।
इस दिन अगर आपके घर के आस पास “छेर-छेरा….माई, कोठी के धान ला हेर-हेरा” जैसा कुछ भी सुनाई दे तो हैरान होने की जरुरत नहीं, बस मुट्ठी भर अनाज बच्चों को दान कर देना है। जब तक आप दान नहीं देंगे, तब तक वह आपके दरवाज़े से हटेंगे नहीं और कहते रहेंगे, “अरन बरन कोदो करन, जब्भे देबे तब्भे टरन”। जो भिक्षा मांगता है, वो ब्राह्मण कहलाता है और देने वाला को देवी बोलते है। इस दिन लोग अपने-अपने घरों की देवी-देवता का भी पूजा पाठ करते है और महुआ दारू या मन्द की तर्पी देते हैं। छेरछेरा के दिन मांगने वाला याचक यानी ब्राह्मण के रूप में होता है, तो देने वाली महिलाएं शाकंभरी देवी के रूप में होती है।
बस्तर में छेरछेरा पर्व
बस्तर अपनी अद्वितीय सांस्कृतिक पहचान के लिए जाना जाता है, और छेरछेरा पर्व यहां के आदिवासी जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। ग्राम देवता और प्रकृति की पूजा: बस्तर के गांवों में छेरछेरा पर्व ग्राम देवताओं और प्रकृति की पूजा से शुरू होता है। पारंपरिक गीत और नृत्य: यहां के लोग अपने पारंपरिक वाद्य यंत्रों जैसे मांदर, नगाड़ा और तुरी के साथ गीत और नृत्य करते हैं। यह पर्व सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने का माध्यम है। बस्तर में सामूहिक भोज का आयोजन किया जाता है, जहां पूरे गांव के लोग शामिल होते हैं। मेले और पारंपरिक खेलों का आयोजन भी इस पर्व का हिस्सा है।
सरगुजा में छेरछेरा पर्व
सरगुजा क्षेत्र में छेरता (छेरछेरा) पर्व को बड़े उत्साह और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। पारंपरिक उत्सव: सरगुजा में लोग समूह बनाकर घर-घर जाते हैं और “छेरछेरा” की पुकार लगाते हैं। यहां के पर्व में सामूहिकता और आनंद का विशेष महत्व है। ग्राम देवताओं की पूजा के साथ पर्व की शुरुआत होती है। सरगुजा के ग्रामीणों द्वारा गाए जाने वाले पारंपरिक लोकगीत और नृत्य पर्व को और भी आनंदमय बनाते हैं। खेलों का आयोजन किया जाता है, जो युवाओं में उत्साह बढ़ाते हैं।
छत्तीसगढ़ के अन्य क्षेत्रों में छेरछेरा पर्व
छत्तीसगढ़ के अन्य हिस्सों में भी छेरछेरा पर्व समान उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। दान की परंपरा: लोग अपने घरों से धान का दान करते हैं। यह पर्व परोपकार और दान-पुण्य का प्रतीक है। सामूहिकता का भाव: छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में सामूहिक भोज और उत्सव का आयोजन होता है, जिससे समाज में भाईचारे की भावना को बल मिलता है। लोक संस्कृति का संरक्षण: छेरछेरा पर्व के दौरान गाए जाने वाले लोकगीत और नृत्य राज्य की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हैं।
सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव
छेरछेरा पर्व छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति और परंपराओं को सहेजने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह पर्व समाज के सभी वर्गों को एक साथ लाता है और सामाजिक भेदभाव को मिटाता है। छेरछेरा पर्व प्रकृति और कृषि जीवन के प्रति आभार व्यक्त करने का अवसर है। पर्व के दौरान आयोजित मेले और सांस्कृतिक कार्यक्रम स्थानीय कारीगरों और हस्तशिल्पकारों के लिए आय के साधन प्रदान करते हैं।
छत्तीसगढ़ का छेरछेरा पर्व राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और ग्रामीण जीवन की सरलता का प्रतीक है। बस्तर, सरगुजा, और अन्य क्षेत्रों में इसे भले ही अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता हो, लेकिन इसके मूल में एकता, सामूहिकता, और परोपकार की भावना निहित है। यह पर्व न केवल कृषि आधारित समाज की समृद्धि को दर्शाता है, बल्कि समाज के हर वर्ग को एकजुट करने और परंपराओं को जीवित रखने का भी एक माध्यम है। छत्तीसगढ़ का छेरछेरा पर्व हमें सिखाता है कि प्रकृति, परंपरा, और सामूहिकता का सम्मान हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा होना चाहिए।