अटल संकल्प और छत्तीसगढ़ की रजत जयंती यात्रा

हम उस पीढी के लोग हैं, जिन्होंने छत्तीसगढ़ निर्माण के आंदोलन से लेकर छत्तीसगढ राज्य को मूर्त रुप लेते देखा तथा वर्तमान में रजत जयंती मना रहे हैं। छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण की कहानी केवल एक प्रशासनिक परिवर्तन की कथा नहीं, बल्कि अस्सी वर्षों के जनसंघर्ष, आस्था और पहचान की गाथा है। 35 वर्ष से अधिक उम्र के अधिकांश लोग जानते हैं कि यह राज्य कैसे बना, पर नई पीढ़ी, विशेषकर 25 वर्ष से कम उम्र के युवाओं को शायद यह नहीं पता कि इस धरती को अपना नाम और सम्मान दिलाने के लिए कितने दशकों तक लोग संघर्ष करते रहे। यह कोई संयोग नहीं था, न ही किसी राजनीतिक लाभ का परिणाम। यह एक लंबे, शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक आंदोलन की परिणति थी, जिसने अंततः भारत के मानचित्र पर एक नई पहचान दी “छत्तीसगढ़।”
इस आंदोलन की आत्मा उस जनता में थी जिसने अपने हक़ के लिए बिना हिंसा के, केवल विश्वास और धैर्य से लड़ाई लड़ी। और जब यह संघर्ष सफलता में बदला, तो इसका श्रेय निस्संदेह भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी को जाता है। उन्होंने रायपुर के ऐतिहासिक सप्रे मैदान में कहा था “छत्तीसगढ़ की जनता मुझे 11 सीटें दे, मैं छत्तीसगढ़ राज्य दूंगा।” जनता ने सीटें पूरी न दीं, पर अटल जी ने वचन निभाया। यही उनकी महानता थी< राजनीति से ऊपर उठकर देशहित और जनभावना को सर्वोपरि रखना।
छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी उतनी ही गौरवशाली है। रामायण काल में यह कोसल राज्य का हिस्सा था, फ़िर दक्षिण कोसल कहलाया, इसके बाद छठवीं से बारहवीं शताब्दी तक यह क्षेत्र पांडववंशी, सोमवंशी, कलचुरी और नागवंशी राजाओं के अधीन रहा। 11वीं शताब्दी में चोल शासकों ने यहाँ आक्रमण किया, पर यह भूमि अपनी पहचान बनाए रही। 1741 से 1845 तक यह मराठा साम्राज्य के अधीन और 1845 से 1947 तक ब्रिटिश शासन के अधीन रही। पहले रतनपुर राजधानी थी, पर ब्रिटिश काल में रायपुर प्रशासनिक केंद्र के रूप में उभरा। स्वतंत्रता के बाद जब मध्य प्रदेश का गठन हुआ, तो यह क्षेत्र उसका हिस्सा बना रहा। पर छत्तीसगढ़ की भौगोलिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विशिष्टता हमेशा इसे अलग राज्य के रूप में स्थापित करने की मांग को जन्म देती रही।
यह मांग पहली बार 1920 में उठी। रायपुर में कुछ प्रबुद्ध नागरिकों ने स्वतंत्र छत्तीसगढ़ का विचार रखा। हालांकि तब यह केवल एक बीज था, जो भविष्य में विशाल वटवृक्ष बनना था। 1954 में यह प्रस्ताव राज्य पुनर्गठन आयोग के सामने रखा गया, पर अस्वीकृत हो गया। पर आंदोलन की लौ बुझी नहीं। 1950 और 60 के दशक में डॉ. खूबचंद बघेल ने इस विचार को जनचेतना का रूप दिया। उन्होंने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि छत्तीसगढ़ की प्रगति तभी संभव है जब इसे अलग राज्य का दर्जा मिले। 1967 में उन्होंने भारत के राष्ट्रपति को पत्र लिखकर पहली बार संवैधानिक रूप से अलग राज्य की मांग रखी।
धीरे-धीरे आंदोलन गाँव-गाँव तक फैलने लगा। लोककला और गीतों ने इसे जनता के दिलों तक पहुँचा दिया। लोकगीतों में “छत्तीसगढ़ महतारी” की स्तुति होने लगी, और “छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया” नारा आत्मगौरव का प्रतीक बन गया। कॉलेजों के छात्र, शिक्षक, साहित्यकार, लोक कलाकार इत्यादि सब इस अभियान में जुड़ने लगे। आंदोलन की सबसे बड़ी शक्ति थी उसकी शांति और मर्यादा। यहाँ न हिंसा थी, न द्वेष। हर व्यक्ति के मन में बस एक ही आकांक्षा थी कि छत्तीसगढ़ को उसकी अपनी पहचान मिले।
1990 के दशक में आंदोलन ने नई दिशा पकड़ी। रायपुर में “छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण मंच” की स्थापना हुई, जिसने संघर्ष को संगठित स्वरूप दिया। इस दौरान आचार्य नरेंद्र दुबे, दाऊ आनंद कुमार और उदयभान सिंह चौहान जैसे लोगों का अखंड धरना पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बना रहा। उन्होंने रायपुर से दिल्ली तक लगातार सत्याग्रह किया। बालक भगवान साइकिल से गाँव-गाँव घूमे और लोगों में चेतना जगाई। स्वर्गीय चंदूलाल चंद्राकर, वासुदेव चंद्राकर, संत कवि पवन दीवान और विद्याचरण शुक्ल जैसे नेताओं ने भी इस आंदोलन को नई दिशा दी। यह संघर्ष किसी एक दल या व्यक्ति का नहीं, बल्कि जनता की आकांक्षा का था।
1998 के लोकसभा चुनावों में जब छत्तीसगढ़ की 11 में से 10 सीटें भाजपा को मिलीं, तो रायपुर की सभा में अटल बिहारी वाजपेयी मुस्कुराते हुए बोले “आप लोगों ने सीटें जिताने में थोड़ी कंजूसी कर दी, नहीं तो राज्य बनने में देर न होती।” यह वाक्य इतिहास बन गया। 1999 में केंद्र में उनकी सरकार बनने के बाद छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की प्रक्रिया तेज हो गई। विधेयक संसद में पेश हुआ, मध्य प्रदेश विधानसभा ने सर्वसम्मति से पारित किया, लोकसभा और राज्यसभा ने मंजूरी दी, और 25 अगस्त 2000 को राष्ट्रपति ने उस पर हस्ताक्षर कर दिए। 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ भारत का 26वां राज्य बन गया।
उस दिन पूरे प्रदेश में उत्सव का माहौल था। गाँवों में ढोल-नगाड़े बजे, शहरों में जुलूस निकले। जनता का उत्साह देखते ही बनता था, सड़कों पर लोग नाचते-गाते ‘जय छत्तीसगढ़’ का जयघोष कर रहे थे। रायपुर को राजधानी बनाया गया और अजीत जोगी राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बने। 2003 में डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी, जिसने लगातार 15 वर्षों तक शासन किया और विकास की नई रेखाएँ खींचीं। 2018 में कांग्रेस के भूपेश बघेल ने सत्ता संभाली और छत्तीसगढ़ी संस्कृति, भाषा और परंपरा को पुनर्जीवित करने की दिशा में कई प्रयास किए। 2023 में पुनः भाजपा सत्ता में लौटी और अब राज्य अपनी रजत जयंती की ओर अग्रसर है।
बीसवीं शताब्दी के आरंभ में शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यह सपना साकार होने में अस्सी वर्ष लगेंगे। उस समय छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश का हिस्सा था, प्राकृतिक संपदा से भरपूर, पर प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार। यहाँ के कोयले से देश के शहर रोशन होते थे, पर गाँव अंधेरे में डूबे रहते थे। यही पीड़ा धीरे-धीरे आंदोलन का रूप ले गई। और जब जनता ने अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाई, तो पूरी दुनिया ने देखा कि लोकतंत्र में जनशक्ति क्या होती है।
आज छत्तीसगढ़ सिर्फ एक राज्य नहीं, बल्कि आत्मगौरव का प्रतीक है। यहाँ की भाषा, लोककला, बोली और परंपराएँ राष्ट्रीय मंचों पर सम्मान पा रही हैं। लोककला, पंडवानी, राउत नाचा, करमा, भोजली और देवारी जैसे पर्व छत्तीसगढ़ की पहचान बन चुके हैं। राज्य ने कृषि, उद्योग, खनिज, शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यटन के क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है। रायपुर और नवा रायपुर आधुनिक भारत के विकसित शहरों में गिने जाते हैं, वहीं बस्तर, सरगुजा और जशपुर जैसे क्षेत्र अपनी प्राकृतिक और सांस्कृतिक विविधता से गौरवान्वित हैं।
छत्तीसगढ़ की यह यात्रा हमें यह सिखाती है कि कोई भी आंदोलन तब तक जीवित रहता है, जब तक उसमें जनता की आत्मा होती है। यह राज्य इसलिए बना क्योंकि यह आंदोलन किसी वर्ग या दल का नहीं, बल्कि पूरी जनता का था। इसमें न हिंसा थी, न द्वेष, केवल विश्वास, धैर्य और संवाद की शक्ति थी। जब यह राज्य बना, तो यह सिर्फ नक्शे पर एक रेखा नहीं, बल्कि एक सभ्यता की मान्यता थी।
आज जब छत्तीसगढ़ अपनी रजत जयंती मना रहा है, तब यह स्मरण करना जरूरी है कि यह राज्य केवल एक राजनीतिक उपलब्धि नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक है। यह उस धरती का गौरव है जिसने अपने स्वाभिमान की रक्षा शांतिपूर्वक संघर्ष कर की। यह इस बात का प्रमाण है कि जब जनता किसी लक्ष्य को हृदय से स्वीकार कर लेती है, तो कोई शक्ति उसे रोक नहीं सकती।
छत्तीसगढ़ की जन्मकथा लोकतंत्र की परिपक्वता और जनता की आस्था की मिसाल है। यह राज्य जनता की आस्था से बना है, और इसकी आत्मा जनता में ही बसती है। जब भी इस इतिहास को याद किया जाएगा, तब यह कहा जाएगा — “छत्तीसगढ़ का निर्माण केवल ईंट और पत्थर का नहीं, बल्कि जनता के विश्वास, संघर्ष और स्वाभिमान की नींव पर हुआ है।”

