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एक विस्मृत क्रांतिकारी की कहानी

जीवन यापन के लिये भिक्षावृत्ति तक करनी पड़ी। स्वतंत्रता के बाद किसी ने उनकी खबर नहीं ली। उन्होंने अपना पूरा जीवन स्वाधीनता संघर्ष को अर्पण कर दिया था। उन्होंने सशस्त्र संघर्ष में भी भाग लिया और अहिंसक आंदोलन में भी। किन्तु स्वतंत्रता के बाद उनके सामने अपने जीवन  जीने के लिये ही नहीं रोटी तक का संकट आ गया था। पेट भरने के लिये भिक्षावृत्ति भी की और अंत में  सड़क के किनारे लावारिश अवस्था में अपने प्राण त्यागे।

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धर्मांतरण विरोधी आंदोलन के नायक स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की कहानी

स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती ने वनवासी क्षेत्रों में सक्रिय ईसाई मिशनरियों और माओवादी तत्वों के खिलाफ कार्य किया, जिससे उनके ऊपर कई बार हमले हुए। 23 अगस्त 2008 को, स्वामी जी और उनके चार शिष्यों की निर्मम हत्या कर दी गई, जिसे ईसाई मिशनरियों और माओवादियों का षड्यंत्र माना गया। स्वामी जी ने लगभग चालीस वर्षों तक वनवासियों के मतान्तरण और माओवादी गतिविधियों के विरुद्ध संघर्ष किया, जिसके कारण उन्हें कई बार धमकियों और हमलों का सामना करना पड़ा।

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छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता का इतिहास और ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ पत्रिका

जनवरी 1900 में प्रारंभ यह छत्तीसगढ़ की पहली मासिक पत्रिका थी, जिसके माध्यम से राज्य में पत्रकारिता की बुनियाद रखी गयी। पंडित वामन बलीराम लाखे जी इस पत्रिका के प्रकाशक थे। सुप्रसिद्ध साहित्यकार पंडित माधवराव सप्रे और उनके सहयोगी रामराव चिंचोलकर ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ के सम्पादक थे।

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स्वाधीनता संग्राम से सामाजिक जागरण तक का सफर

काका कालेलकर राष्ट्रीय मराठी डेली के संपादकीय विभाग से जुड़े और यहाँ से उनका पत्रकारीय जीवन आरंभ हुआ । इसके बाद 1910 में वे गंगानाथ विद्यालय में शिक्षक बने । लेकिन 1912 में अंग्रेज सरकार ने स्कूल को बंद करवा दिया । गुजरात से महाराष्ट्र तक की अपनी जीवन यात्रा में उन्होंने भारतीय जनों की दुर्दशा देखी । उन्हें अंग्रेजों पर गुस्सा बहुत आता था ।

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अद्वितीय मराठा हिन्दू योद्धा और कुशल रणनीतिकार : बाजी राव पेशवा

बाजीराव पेशवा को एक महान हिंदू योद्धा के रूप में याद किया जाता है, और उनके जीवन और कार्यों ने

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भाषा विज्ञान और हिन्दी साहित्य के चलते-फिरते ज्ञानकोश थे डॉ. रमेशचन्द्र मेहरोत्रा

डॉ. महरोत्रा ने छत्तीसगढ़ी मुहावरों और लोकोक्तियों का एक महत्वपूर्ण संकलन भी तैयार किया। उन्होंने ‘ मानक छत्तीसगढ़ी का सुलभ व्याकरण’ भी लिखा। शब्दों के बारीक से बारीक अर्थ निकालने में उन्हें महारत हासिल थी। भाषाओं में शब्दों का यथायोग्य प्रयोग कैसे किया जाए ,यह उनकी पुस्तकों से सीखा जा सकता है। अपने विद्यार्थियों के लिए वह भाषा विज्ञान और हिन्दी साहित्य के चलते -फिरते विशाल ज्ञानकोश थे।

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