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जातीय जनगणना: ब्रिटिश नीति की छाया और भारतीय समाज का विखंडन

भारत में जातीय जनगणना का इतिहास एक औपनिवेशिक विरासत है, जिसकी जड़ें 1871 में ब्रिटिश शासन द्वारा कराई गई पहली जातिगत जनगणना में हैं। यह न केवल सामाजिक विभाजन का औजार बना, बल्कि भारतीय समाज की गतिशीलता और समरसता को भी बाधित किया। आज जरूरत इस बात की है कि जातीय पहचान को विभाजन के बजाय सामाजिक सशक्तिकरण का माध्यम बनाया जाए — ताकि इतिहास की गलतियों से सीख लेकर एक समतामूलक भविष्य की ओर बढ़ा जा सके।

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भीड़ प्रबंधन में लापरवाही की कीमत : जश्न या जान

आई.पी.एल. 2025 में आर.सी.बी की जीत के बाद चिन्नास्वामी स्टेडियम बेंगलुरु में आयोजित विजय परेड जिसमें कर्नाटक के मुख्यमंत्री सहित प्रदेश के तमाम उच्च अधिकारी मौजूद थे, में यही तो हुआ।

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भारतीय ज्ञान परम्परा में जल संसाधन का उपयोग, संरक्षण तथा प्रबंधन

मौर्य काल के दौरान, देश के विभिन्न हिस्सों में वर्षा की क्षेत्रीय जानकारी रखने के लिए वर्षा मापक स्थापित किए गए थे और प्राप्त की गई जानकारी के आधार पर, ‘कृषि अधीक्षक’ द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में बीज बोने के निर्देश दिए जाते थे

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क्या चेतावनी काफी है? तंबाकू निषेध की अधूरी कहानी

बाज़ार में बिकने वाली हर वह चीज, जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है, क्या उसके पैकेट पर सिर्फ़ एक वैधानिक चेतावनी प्रिंट कर देना ही काफी है?

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कलम में ही वह शक्ति है, जो समाज को बदल सकती है : हिंदी पत्रकारिता दिवस

हिंदी पत्रकारिता का इतिहास न केवल एक भाषा के माध्यम का विकास है, बल्कि यह भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक चेतना का दर्पण भी है।

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काशी में मोहन भागवत ने कहा “सभी हिंदुओं के लिए मंदिर, पानी और श्मशान समान हों”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने काशी (वाराणसी) में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम के दौरान हिंदू समाज में समानता और एकता की जरूरत पर बल दिया। आईआईटी बीएचयू के जिमखाना मैदान में आयोजित इस कार्यक्रम में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि “सभी हिंदुओं के लिए मंदिर, पानी और श्मशान समान होने चाहिए।”

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