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क्रेडिट की चकाचौंध या फँसने का जाल? जानिए सच

भारत में तेज गति से हो रही आर्थिक प्रगति के चलते मध्यमवर्गीय नागरिकों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है, जिनके द्वारा चार पहिया वाहनों, स्कूटर, फ्रिज, टीवी, वॉशिंग मशीन एवं मकान आदि आस्तियों को खरीदने हेतु बैंकों अथवा अन्य वित्तीय संस्थानों से ऋण लिया जा रहा है।

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संविधान की प्रस्तावना पर थोपे गए दो शब्द : समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता

आज प्रश्न तो यह भी उभरता है कि धर्मनिरपेक्ष जैसा कोई शब्द होता ही नहीं है – और विशेषतः भारत में तो कोई धर्मनिरपेक्ष हो ही नहीं सकता! हमारी श्रुति, गति, मति, रीति, नीति, प्रवृत्ति, प्राप्ति, स्मृति, कृति, स्तुति – आदि सभी कुछ तो स्थायी रूप से धर्म सापेक्ष है। फिर ‘धर्मनिरपेक्ष’ जैसे ‘अशब्द’ की भला भारत में क्या आवश्यकता है?

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युवा पीढ़ी और नशे का फ़ैलता जाल : जिम्मेदार कौन ?

सामाजिक स्तर पर, हमें नशे को ग्लैमराइज करने वाली संस्कृति को बदलना होगा। मीडिया, फिल्म इंडस्ट्री, और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। नशे को ‘कूल’ दिखाने के बजाय, इसके दुष्परिणामों को उजागर करने वाली कहानियां सामने लानी होंगी।

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जातीय जनगणना: ब्रिटिश नीति की छाया और भारतीय समाज का विखंडन

भारत में जातीय जनगणना का इतिहास एक औपनिवेशिक विरासत है, जिसकी जड़ें 1871 में ब्रिटिश शासन द्वारा कराई गई पहली जातिगत जनगणना में हैं। यह न केवल सामाजिक विभाजन का औजार बना, बल्कि भारतीय समाज की गतिशीलता और समरसता को भी बाधित किया। आज जरूरत इस बात की है कि जातीय पहचान को विभाजन के बजाय सामाजिक सशक्तिकरण का माध्यम बनाया जाए — ताकि इतिहास की गलतियों से सीख लेकर एक समतामूलक भविष्य की ओर बढ़ा जा सके।

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भीड़ प्रबंधन में लापरवाही की कीमत : जश्न या जान

आई.पी.एल. 2025 में आर.सी.बी की जीत के बाद चिन्नास्वामी स्टेडियम बेंगलुरु में आयोजित विजय परेड जिसमें कर्नाटक के मुख्यमंत्री सहित प्रदेश के तमाम उच्च अधिकारी मौजूद थे, में यही तो हुआ।

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भारतीय ज्ञान परम्परा में जल संसाधन का उपयोग, संरक्षण तथा प्रबंधन

मौर्य काल के दौरान, देश के विभिन्न हिस्सों में वर्षा की क्षेत्रीय जानकारी रखने के लिए वर्षा मापक स्थापित किए गए थे और प्राप्त की गई जानकारी के आधार पर, ‘कृषि अधीक्षक’ द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में बीज बोने के निर्देश दिए जाते थे

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