लोक-संस्कृति

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छत्तीसगढ़ में आठे कन्हैया और जन्माष्टमी उत्सव

रायगढ़ के राजा भूपदेवसिंह के शासनकाल में नगर दरोगा ठाकुर रामचरण सिंह जात्रा से प्रभावित रास के निष्णात कलाकार थे। उन्होंने इस क्षेत्र में रामलीला और रासलीला के विकास के लिए अविस्मरणीय प्रयास किया। गौद, मल्दा, नरियरा और अकलतरा रासलीला के लिए और शिवरीनारायण, किकिरदा, रतनपुर, सारंगढ़ और कवर्धा रामलीला के लिए प्रसिद्ध थे। नरियरा के रासलीला को इतनी प्रसिद्धि मिली कि उसे ‘छत्तीसगढ़ का वृंदावन‘ कहा जाने लगा।

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खमरछठ के माध्यम से जैव विविधता संरक्षण का संदेश

कमरछठ पर्व में उपयोग होने वाली सभी वनस्पतियों, जीवों और प्राकृतिक सामग्रियों का संरक्षण और संवर्धन किया जाता है। यह पर्व भारतीय संस्कृति की जैव विविधता संरक्षण की अद्वितीय परंपरा को प्रदर्शित करता है, जिसमें वैज्ञानिकता और धार्मिकता का समन्वय है।

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शहनाई के जादूगर उस्ताद बिस्मिल्लाह खान

सुप्रसिद्ध शहनाई वादक ‘भारत रत्न’ उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ को आज उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र नमन। शहनाई वादन में उनके कला -कौशल को देखकर उन्हें ‘शहनाई का जादूगर ‘भी कहा जा सकता है। उंन्होने बनारस को अपनी कर्मभूमि बनाकर जीवन पर्यन्त माँ गंगा के तट पर शहनाई वादन किया। उनके शहनाई वादन में जादुई सम्मोहन हुआ करता था। श्रोता मंत्रमुग्ध होकर उन्हें सुनते थे।

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शक्ति, संरक्षण और संस्कृति का प्रतीक : रक्षा सूत्र

भविष्य पुराण में बताया गया है कि रक्षा कवच बांधने की प्रथा की शुरूवात महाराज इंद्र की पत्नी शचि ने किया था। जब देव और दानवों के बीच युद्ध चल रहा था तब इंद्राणी ने अपने पति की विजय कामना के लिए उसके दाहिने हाथ में रक्षा सूत्र और चांवल-सरसों को बांधकर उनकी सुरक्षा और विजय की कामना की थी जिससे वे असुरों पर विजय प्राप्त कर सके थे।

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छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर भोजली तिहार

भोजली पर्व सावन महीने में मनाया जाता है। यह पर्व उस प्रकृति के प्रारंभिक सौंदर्य की सुखानुभूति की अभिव्यक्ति है, जिसमें कोई बीज अंकुरित होकर अपने अलौकिक स्वरूप से सृष्टि का श्रृंगार करता है। श्रावण के शुक्ल पक्ष में सप्तमी या अष्टमी के दिन किशोरियों द्वारा गेहूं के दाने पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ बोए जाते हैं। ये उगे हुए पौधे ही भोजली देवी के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं।

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विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में नाग एवं जैव विविधता संरक्षण

नागों की उपस्थिति एवं उनकी पूजा प्राचीन सभ्यताओं एवं संस्कृतियों महत्व स्थान रखती है। भले ही उनकों अलग-अलग रुपों या कारणों से पूजा जाता हो परन्तु वे मानव सभ्यताओं में विशेष स्थान रखते हुए वर्तमान में भी विशिष्ट बने हुए हैं।

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