लोक-संस्कृति

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फसल उत्सव करमा नृत्य और जैव विविधता का महत्व

करमा नृत्य के बारे में कई पौराणिक कहानियाँ और धार्मिक धारणाएँ प्रचलित हैं। इसका संबंध ‘करम’ देवता से जोड़ा जाता है, जिन्हें कर्म का प्रतीक माना जाता है। करम देवता की पूजा फसलों की अच्छी पैदावार और परिवार की खुशहाली के लिए की जाती है।

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नुआखाई और ऋषि पंचमी का सांस्कृतिक महत्व

ॠषि पंचमी को मनाया जाने वाला त्योहार नुआखाई ओडिशा और छत्तीसगढ़ की समृद्ध कृषि संस्कृति का महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व नई फसल के स्वागत के साथ-साथ भगवान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक माध्यम है। नुआखाई का उत्सव ग्रामीण समाज के बीच सामाजिक एकता और संस्कृति का प्रतीक है। इसके साथ ऋषि पंचमी महिलाओं के लिए आत्मशुद्धि और प्रायश्चित का पर्व है। सप्तऋषियों की पूजा के माध्यम से यह पर्व नारी शक्ति के आध्यात्मिक और सामाजिक उत्थान का प्रतीक है।

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वैदिक काल से राष्ट्रीय जनचेतना तक की यात्रा : गणेशोत्सव विशेष

आदिकाल से गणेश की स्तुति के अलग अलग प्रमाण मिले हैं। इनकी कथा भिन्न-भिन्न है। सतयुग में सिंहासन आरूढ़ विनायक के स्वरूप में पूजा गया जिनकी दस भुजा थी परन्तु मुख तो हाथी का ही था। त्रेतायुग में गणेश मयूरारूढ़, मयूरेश्वर के नाम से विख्यात थे जिनकी छह भुजा थी। द्वापर में इनका वाहन भूषकराज था तब इनकी चार भुजाएं थी। कलि के अंत में ये धुम्रकेत के नाम से अश्व में सवार होंगे इनका वर्ण भी धुम्र होगा।

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आस्था और प्रेम का प्रतीक तीजा तिहार

लोक परंपरा के अनुसार, तीजा के अवसर पर बेटियों को साड़ी उपहार में दी जाती है। छत्तीसगढ़ में एक कहावत भी प्रचलित है: “मइके के फरिया अमोल”—यानि मायके से मिले कपड़े का टुकड़ा भी अनमोल होता है। इस दिन माताएँ अपनी बेटियों के लिए चूड़ियाँ, फीते और सिन्दूर भी लाती हैं। तीजा की इस अनोखी परंपरा को निभाने का महत्व छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में गहराई से बसा हुआ है।

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भारतीय कृषि और जैव विविधता संरक्षण का अनूठा संगम : पोला पर्व

पोला पर्व मुख्य रूप से भारत के छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, और तेलंगाना राज्यों में मनाया जाता है। यह पर्व

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