\

आंचलिक कविताओं का सुन्दर पुष्प -गुच्छ

छत्तीसगढ़ की लोकभाषाओं — हल्बी, भतरी और छत्तीसगढ़ी — में साहित्य साधना करने वाले महर्षि लाला जगदलपुरी का रचना संसार बस्तर अंचल की मिट्टी की महक और जनजीवन की आत्मा से सराबोर है। उनकी कविताओं का नया संकलन “आंचलिक कविताएँ: समग्र” छत्तीसगढ़ की रंग-बिरंगी बोलियों का साहित्यिक उत्सव है। इस संकलन में उनकी कविताओं का हिन्दी अनुवाद भी प्रस्तुत है, जो हल्बी और भतरी भाषाओं की गहराई और संवेदना को व्यापक पाठक वर्ग तक पहुंचाता है। लाला जी की कविताएँ न केवल क्षेत्रीय संस्कृति को उजागर करती हैं, बल्कि बोली से भाषा की ओर बढ़ते साहित्यिक विकास की मिसाल भी पेश करती हैं।

Read more

प्राचीन भारत में स्त्री शिक्षा और विदुषियों का योगदान

उपनिषदकालीन ब्रह्मवादिनियाँ आज भी हिंदु समाज के विद्वत वर्ग में श्रद्धा से पूजी जाती हैं। ऋग्वेद में गार्गी, मैत्रेयी, घोषा, विश्ववारा, अपाला, अदिति, शची, लोपामुद्रा, सार्पराज्ञी, वाक्क, श्रद्धा, मेधा, सूर्या, सावित्री जैसी वेद मन्त्रद्रष्टा विदुषियों का उल्लेख मिलता है।

Read more

जीवन के विविध रंग पशु पक्षियों के संग

वन्य प्राणी हमारी प्रकृति में संतुलन रखते हैं , वे हमारे खेतों के भी रक्षक हैं । जो वन्य प्राणी हमारे लिए सहायक है और जो मरकर भी हमारे काम आते हैं उनकी रक्षा करना शासन का ही नहीं हर व्यक्ति का परम कर्तव्य है ।

Read more

अलवार संतों की भक्ति में श्रीराम

ईस्वी सदी के आरम्भ में रचित सिलपट्टीकरम, जो तमिल साहित्य की पांच श्रेष्ठ कृतियों में से है, उसमे भी रामायण के अनेक सन्दर्भ मिलते हैं. लेखक ने इसमें राम को विष्णु से पहचान करते हुए लिखा है कि – भगवन विष्णु के पुण्य-चरण जिनसे उन्होंने त्रिविक्रम के रूप में ब्रह्माण्ड को नापा था, वे आज वन में लक्ष्मण के साथ चलते हुए रक्त-रंजित हो गए हैं.

Read more

बन वसंत बरनत मन फूल्यौ : बसंत पंचमी विशेष

बसंत ऋतु कवियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रही है। कालिदास से लेकर आधुनिक हिंदी कवियों तक, सभी ने अपने काव्य में इस ऋतु की छटा बिखेरी है। बसंत को प्रेम, सौंदर्य, उल्लास और नवजीवन का प्रतीक माना जाता है, जो काव्य और साहित्य को मधुरता प्रदान करता है। बसंत पंचमी केवल ऋतु परिवर्तन का प्रतीक ही नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपरा का अभिन्न हिस्सा है। इसका संबंध ज्ञान, प्रेम, सौंदर्य और उल्लास से है। यह पर्व पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति की महानता को दर्शाता है।

Read more

सामाजिक समरसता और भारतीय सांस्कृतिक एकता का महोत्सव महाकुंभ

भारत के इतिहास में जहाँ तक दृष्टि जाती है कुंभ के आयोजन का संदर्भ मिलता है। मौर्यकाल में भी और शुंग काल में भी। गुप्तकाल में तो कुंभ का बहुत विस्तार से वर्णन मिलता है। गुप्तकाल के इस विवरण में ग्रहों की स्थिति के अनुसार कुंभ के आयोजन का उल्लेख है।

Read more